अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Friday, October 17, 2014

मोहित शर्मा (ट्रेंडी बाबा) October 2014 Logs # 3

1) - माता-पिता का नजरिया

एक सिनेमा टिकट खिड़की पर माध्यम वर्गीय एक दंपत्ति और उनके किशोर लड़का, लड़की थोड़ा दूरी पर थे। उन्होंने कुछ स्वाभाविक सवाल पूछे बच्चो और आज के हिसाब से जैसे बेटे प्लैटिनम वाला लें या गोल्ड? या ये कूपन लें लें, पॉपकॉर्न वाला-कोल्ड ड्रिंक वाला? आदि ऐसे सवालो पर बच्चे बड़े रूखे और थोड़े गुस्से वाले जवाब दे रहे थे। जैसे ये सवाल पूछ कर उनके माता-पिता आस-पास के लोगो के सामने बेइज़्ज़ती कर रहे है।
ये वाकये अक्सर देखने में आते है जब बच्चे खासकर किशोरावस्था में माँ-बाप को अपने विरुद्ध मानते है या ज़माने से पीछे मोटी बुद्धि वाले। पर उनका यह व्यवहार रोटी कमाने से लेकर, जीवन की छोटी-बड़ी मुश्किलों का सामना करने के बाद बनता है। पीढ़ियां और ज़माना बदलने के बाद कुछ बातें उनके लिए नयी, अनजान होती है इस वजह से वो कुछ करने से पहले वो अपने निकटतम लोग यानी अपने बच्चो से उन बातों के बारे में जानकार निश्चिन्त होना चाहते है जैसा ऊपर के उदाहरण में वो माँ-बाप सिनेमा की सीट्स आदि की बातें एक बार बस कन्फर्म कर रहे थे अपनी संतानो से। क्योकि जीवन में कई बार उन्होंने बिना पूरी बात जाने कदम उठाये और उन्हें नुक्सान हुआ जिस कारण ये उनकी आदत में आ गया, एक आदत और बनती है उनकी वो यह की काम आसानी से हो या बिना पैसे हो तो उन्हें शक होता ही है, ये गुण भी जीवन के ज़िन्दगी की ठोकरों ने उन्हें सिखाया। उन्हें अपने नज़रिये से बात दिखाने के बजाये उनके नज़रिये को भी ध्यान में रखें, याद रहे वो आपकी उम्र का पड़ाव देख चुके है…आप नहीं।
तो अगली बार उनके स्वाभाविक सवालो पर खीज या गुस्सा ना दिखाएँ। नहीं तो कहीं फिर माता-पिता आपसे सवाल या बात करने में ही कतराने लगें। उन्हें इज़्ज़त दें, प्यार दें और उनके तजुर्बे से सीख लेते रहे क्योकि आपकी तरक्की से पूरी दुनिया ज़्यादा या कम जलेगी ज़रूर सिवाए आपके माता-पिता के।
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2) - कुछ बड़ी मल्टीनेशनल देसी कंपनियों जैसे अमूल, पतंजलि फर्म्स, विक्को, डाबर, बजाज, विप्रो आदि का मार्किट शेयर अपने ही देश मे चिंताजनक है। मैं ये नहीं कह रहा की घरवाले केट्बरी, हैंको, यूनिलीवर के उत्पाद लें आएं तो उनका सामान वाला थैला उठाकर बाहर फेंक दें (ही ही ही…वैसे ऐसा करेंगे तो मज़ा आएगा) पर ज़्यादा से ज़्यादा भारतीय कंपनियों के बारे में पढ़े और जानकारी रखें ताकि जब आप टूथपेस्ट मांगने जाओ और दुकानदार पूछे कौनसा तो कोलगेट, पेप्सोडेंट की जगह पतंजलि मेडिकेटिड, विक्को हर्बल आदि नाम निकले। साथ ही केमिकल बेस्ड प्रोडक्ट्स की जगह हर्बल-आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स को तरजीह दें, जिनकी पैकिंग-लेबलिंग तो उतनी चमक दमक वाली नहीं होती पर अंदर का माल सेहत को नुक्सान नहीं पहुँचाता।
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3) - वैसे तो रियलिटी शोज़ अब सिर्फ नाम के रियलिटी शो रह गए है पर इस सीरीज़ की बड़ी (और अंतर्राष्ट्रीय) फोल्लोविंग को देखते हुए लिख रहा हूँ। कौन बनेगा करोड़पति के इस सीजन (2014) में देख रहा हूँ की कई सामाजिक बुराईयों, शारीरिक कठिनाइयों का सामना कर चुके लोग हॉट सीट पर आ रहे है और लगभग हमेशा ऐसे वाक्यों में 25 लाख से ऊपर की धनराशि ही जीत रहे है। एक सीजन में इतने सारे ऐसे सर्वाइवर कंटेस्टेंट्स, यह असंभव है। मुझे अच्छा लगा स्टार प्लस का यह अप्रोच जो ज़रूरतमंदों को पैसा दिया जा रहा है पर फिर सीरीज़ का प्रारूप बदलें इसको रियलिटी शो ना रखकर थोड़ा सेमी-रियल बतायें, जहाँ फाइनलिस्टस का चयन ऐसी मुश्किलों से झूझें हुए लोग हों। जब यह थीम कम TRP देने लगे तो अगले सीजन में कुछ नया प्रयोग।
- मोहित ज़हन

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