अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Monday, April 6, 2015

मासूम ममता - लेखक मोहित शर्मा (ज़हन) from Bonsai Kathayen

Bonsai Kathayen (2013) katha sangrah ki pehli laghu katha.



मासूम ममता

"हद है यार ... कुतिया ने परेशान करके रखा है। अभी सिंधी साहब ने अपने बागीचे से इसको भगाया, ज़रा सी देर को मैंने फ्यूज़ बदलने के लिए गेट खोला होगा और ये मेरे आँगन मे घुस आई।"


"हाँ! गर्ग भाई साहब! आदत जो बिगड़ गयी है इसकी, रोटी-बिस्कुट खा-खा कर बिलकुल सर पर ही चढ़े जा रही है। कल से नोट कर लो आप और मै जब भाभी जी लौटकर आएँगी उन्हें भी बता दूँगी इसको अब से कुछ नहीं देना है।"



कुतिया अब भी मासूम नज़रों से पूँछ हिलाती हुई और लगातार कूं-कूं करती मिस्टर गर्ग को देख रही थी। 



एक पल को तो गर्ग जी मासूमियत  से हिप्नोटाइज से हुए पर फिर कुतिया को रोष से घूरती हुई सिंधी  भाभी की भाव-भंगिमाओं से सहमति जताते हुए गर्ग जी ने कुतिया के मुँह पर एक लात रसीद की। 



"सही किया भाई साहब! अब से दरवाज़े पर डंडा रखूंगी।"



सिंधी मेमसाब तो जैसे दर्द से सिसकारी मारती कुतिया को डपटते हुए बोलीं।



रात मे गली मे कुत्तो के भोकने-गुर्राने और लड़ने की तेज़ आवाजों ने पूरे मोहल्ले को जगा दिया। 



पर इस बार अपने घरो से पहले बाहर निकलने वाले थे श्रीमती गर्ग और श्रीमान सिंधी 



"क्या हुआ गर्ग भाभी?" 



"गली की कुतिया ने सामने नाले किनारे बच्चे दे दिए और साथ की गली वाले कुत्तों बच्चो को मार कर उठा ले गए। थोड़ी देर कुतिया सबसे लडती रही जब तक उन्हें कॉलोनी वालो ने भगाया तब तक तो उन्होंने इसका भी आधा सर खा ही लिया .....लगता है ये भी नहीं बचेगी। 



अब तक आँखें मॉल रहे श्रीमान गर्ग और श्रीमती सिंधी की मामला समझ आने पर नज़रें मिली और दोनों ने ही तड़पती कुतिया को देख कर अपनी गलती की मोन स्वीकृति दी। 

समाप्त!

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