अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Monday, June 27, 2016

शोबाज़ी (कहानी) - मोहित शर्मा ज़हन


छात्रों के पास से गुज़रती प्रोफेसर के कानो में कुलदीप की एक बात पड़ी। 

"हमारे पूर्वजो ने तुम्हे बचाया। तुम लोगो के घर-बार और तुम्हारी बहु-बेटियों की इज़्ज़त लुटने से बचाने वाले हम लोग ही थे। अगर हम न होते तो क्या होता तुम्हारे समुदाय का?"

प्रोफेसर के कदम थम गए, ऐसा वाक्य उन्होंने पहली बार नहीं सुना था। वो उन लड़को के समूह के पास गईं और बोलीं। 

"तो क्या अपने पूर्वजो के कामो की अलग से रॉयल्टी चाहिए?" 

प्रोफेसर को उग्र देख कुलदीप सहम कर बोला - "ऐसी बात नहीं है मैम...मैं तो बस..."

प्रोफेसर - "देखो कुलदीप, जिन समुदाय-लोगो की तुम बात कर रहे हो उनकी संख्या करोड़ो में थी और इतिहास देखोगे तो हर धर्म के लोगो ने अनेको बार एक दूसरे पर एहसान और अत्याचार किए हैं। यह संभव है जिन पूर्वजो की तुम बात कर रहे हो उनके पूर्वजो या उनसे भी पहले उस मज़हब के लिए किसी और समुदाय ने कुछ अच्छे काम किए हों जिनसे उनके जीवन मे सकारात्मक बदलाव आए हों। इतिहास जानना ज़रूरी है पर पुरखों से शान उधार लेकर अपने नाम पर लगाना गलत है। खुद समाज के लिए कुछ करो फिर यह शोबाज़ी जायज़ लगेगी...हाँ, माता-पिता या दादा आदि की संपत्ति, गुडविल, रॉयल्टी अलग बात है पर 1492 में कुलदीप से ऊपर 32वी पीढ़ी ने क्या तीर मारे वो किताबो तक ही रहने दो, उनका क्रेडिट तुम मत लो...क्योंकि ऐसे हिसाब करोगे तो फिर कभी हिसाब होगा ही नहीं।"

समाप्त!

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