अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Wednesday, November 22, 2017

ग्राहक ज़रा बचके (लेख)


सामान, सेवा बेचने वाले व्यापारियों की एक श्रेणी अधिक पैसा कमाने के लिए कई ग़लत तरीके आज़माती है। आज उनमे से एक तरीके पर बात करते हैं। हर व्यक्ति के लिए अपनी पहचान, अहं का कुछ मोल होता है। जैसे अगर आप किसी बड़े होटल में खाना खा रहे हों तो आप अपने घर जैसे इत्मीनान, मौज से नहीं खायेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि आप वहाँ भोजन कर रहे अन्य लोगो के सामने शालीन बने रहने चाहते हैं। हालांकि, उनमे कोई आपको जानता नहीं और शायद आगे कभी जीवन में सामने भी ना आये पर फिर भी असहज ना लगे और इस आधे-एक घंटे अपनी अच्छी छवि बनी रहे इसलिए थोड़ा एडजस्ट करना चलता है। ये जो ईगो-इमेज वाली असहजता है कुछ दुकानदार इसका फायदा उठाते हैं। मान लीजिये आपको एक ख़ास तरह का टूथपेस्ट पसंद है जो आस-पास नहीं मिलता। जब तक आपका उस टूथपेस्ट लेने वाली जगह जाना नहीं होता तब तक काम चलाने के लिए आप कोई और टूथपेस्ट लेने जाते हो। अब वो दुकानदार आपको 150 रुपये का टूथपेस्ट उठाकर दे देता है। आप सोचते हो कि मेरे वाला प्रोडक्ट जल्द लेना ही है तो क्यों ना छोटा, सस्ता टूथपेस्ट ले लूँ। झिझक के साथ आप मना करने को बड़बड़ाते हो तो दुकानदार झूठी हँसी, या तंज भरे स्वर में 'भोला' सवाल करता है कि अन्य ग्राहक, दुकानकर्मियों का ध्यान आप दोनों पर जाता है। 

अब "ज़रा सी बात" पर आपको ताकते लोगो के सामने झेंपकर आप कहते हो कि "लाओ ये ही दे दो!" या फिर आप मन ही मन दुकानदार की ट्रिक समझ उसे कोसते हुए कहीं और से टूथपेस्ट खरीदने निकल जाते हो। अधिकतर पहली स्थिति होती है इसलिए दुकानदार ये रिस्क ले लेता है। थोड़ा वह आपके हावभाव, आदत के अनुसार अपनी बात रखता है। केवल कुछ अधिक बेचने में ही नहीं उत्पाद से सम्बंधित ग्राहक के सवालों को ख़त्म करने के लिए भी "ये बचकाने सवाल हैं" की हँसी या बर्ताव का स्वांग करता है। 

तीसरा और दुर्लभ तरीका है दुकानदार पर पलटवार - "घर में फलाना (काफी महँगे) टूथपेस्ट के बॉक्स पड़े हैं। वो तो ख़ास डीलर पर मिलता है आपके यहाँ होगा नहीं तो सोचा एक बार के इस्तेमाल के लिए फलाना छोटा साइज ले लूँ...टीवी पर इसके बड़े एड देखे हैं। ये बड़ा साइज जो आप दे रहे हो ये तो पड़ा-पड़ा ख़राब होगा! है क्या आपके पास फलाना प्रोडक्ट? (तंज वाली हँसी जोड़ें)" यह बस एक उदाहरण भर है। स्थिति अनुसार ऐसे जवाब देने और व्यापारी को इस तरह फायदा ना देने के लिए हमेशा तैयार रहें। 
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#ज़हन

Monday, November 13, 2017

केस स्टडी: बदलते दौर में ढलता स्टारडम


इंटरनेट (अंतरजाल) जो पहले मिलने-जुलने, कोडिंग, हल्के मनोरंजन और जानकारी का साधन था वो धीरे-धीरे दुनियाभर के कलाकारों के लिए एक अथाह मंच बन गया। हालाँकि, इस मंच में कई कमियाँ हैं पर फिर भी इसका लाभ करोड़ों लोगो को मिला है। आज अंतरजाल की दुनिया से एक रोचक केस अध्ययन। इंटरनेट सर्फ करते हुए श्रद्धा शर्मा के यूट्यूब चैनल पर जाना हुआ। अप्रैल 2011, 15 साल की उम्र में इस लड़की ने बॉलीवुड गानों के कवर यूट्यूब पर डालने शुरू किये जो उस समय भारत में अनसुनी तो नहीं पर एक नयी बात थी। कुछ समय बाद श्रद्धा के गाये चौथे अपलोड "हाल ए दिल" गाने के कवर को कम समय में 10 लाख से अधिक व्यूज़ मिले और रातों-रात श्रद्धा का नाम हो गया। स्थानीय , राष्ट्रीय अखबारों-पत्रिकाओं ने उसपर सुर्खियाँ बनायीं, कई कॉलेज फेस्ट से न्यौते आने लगे। जहाँ उसके प्रशंसकों की कमी नहीं थी वहीं आलोचक भी बढ़ रहे थे। जिनका मत था कि श्रद्धा टैलेंट के बदले नोवेल्टी के कारण चल रही है, नहीं तो लाखों भारतीय गायक-गायिकाएँ जो यूट्यूब पर नहीं हैं या जिन्हे एडिटिंग आदि का ज्ञान नहीं है इस प्रसिद्ध गायिका से कहीं बेहतर हैं। उसके बाद 2013-14 की खबर थी कि श्रद्धा की डेब्यू एल्बम आ रही है जिसका निर्माण और संगीत निर्देशन लेस्ली लुईस कर रहे हैं। 2014 में एल्बम आने के बाद से श्रद्धा शर्मा के कुछ वेब विज्ञापन, कोलैबोरेशन आये पर कोई बड़ी अपडेट नहीं मिली। 

हैरानी की बात यह है कि अब 6-7 वर्ष बाद श्रद्धा के यूट्यूब चैनल के सब्सक्राइबर्स 2 लाख 34 हज़ार हैं यानी शुरुआती बूम के बाद बहुत कम लोग श्रद्धा के चैनल से जुड़े। उस दौर में जो बड़ी बात थी अब हज़ारों भारतीय चैनल्स, तरह-तरह के कलाकारों को श्रद्धा की तुलना में कहीं अधिक प्रशंसक और प्रतिक्रिया मिलती हैं। कभी अग्रिम पंक्ति में खड़ी श्रद्धा कंटेंट क्रिएटर्स की भीड़ में कहीं गुम सी हो गयी। ऐसा क्यों हुआ? इसपर कुछ बातें -

*) - जहाँ इंटरनेट ने सबको मंच दिया वहीं बढ़ती प्रतिभावान भीड़ के साथ प्रतिस्पर्धा का स्तर भी बढ़ गया है। जो बातें आज से कुछ वर्ष पहले चल जाती थी उनका आज के परिवेश में हिट होना काफी मुश्किल है। हर क्षेत्र में गिने चुने लोग ही चोटी पर बने रह सकते हैं। उनके अलावा आम जनता का ध्यान उस क्षेत्र में सक्रीय अन्य कलाकारों पर कम जाता है। एक शैली अगर लोग पसंद करेंगे तो कुछ ही दिनों में उस से ऊबकर कंटेंट क्रियेटर से कुछ नया करने की मांग करेंगे। अगर कलाकार कुछ नया नहीं कर पाता तो लोग अन्य विकल्पों की तरफ बढ़ जाते हैं। 

*) - अगर आर्टिस्ट के काम में मौलिकता की कमी हो और वह अधिकांश अन्य कलाकारों के काम को आधार बनाकर कुछ करता हो तो एक समय बाद उसका काम आकर्षण खोने लगता है। ऐसे में अगर उसके मौलिक काम का स्तर औसत या उस से नीचे हो तो ना सिर्फ उसके प्रशंसक बल्कि वह खुद अपने आप में विश्वास खोने लगता है। अगर ऐसा हो रहा है तो उसे अपनी कमियों को पहचान कर उनपर काम शुरू कर देना चाहिए और ऐसे तरीकों पर काम करना चाहिए जिनका पालन कर उसके मौलिक काम का स्तर स्वीकार्य स्तर तक आ सके। 

*) - एक महत्वपूर्ण बात ये है कि किसी व्यक्ति के लिए सफलता और उस स्तर पर बने रहने का मोल क्या है? अगर जीवन में सफलता जल्दी मिल जाये तो उसका मोल आसान लगने लगता है जबकि बड़े स्तर पर बने रहने के लिए निरंतर पापड़ बेलते रहने पड़ते हैं। थोड़ा बहुत आलस्य या ब्रेक अपनी जगह ठीक है पर मेहनत के विकल्प या काल्पनिक दिलासे ढूँढ लेने से आप एक भूला-बिसरा नाम बनकर रह जाते हैं। 

*) - जगह और माहौल बदलने के बाद आर्टिस्ट को अपने क्षेत्र से जुड़े कई घटक पता चलते हैं। उसे लगता है कि अभी कुछ बनाने से पहले कितना कुछ सीखना बाकी है। इस कारण जिस खुलेपन से कलाकार पहले काम करता था वो बरक़रार नहीं रहता। लोगों के साथ-साथ उसकी खुद की अपेक्षा होती है कि हर बार वह पहले से बेहतर करे और अगर किसी वजह से ऐसा नहीं हो पाता तो वह अपने सीमित दायरे में बँध जाता है। इस घेरे से निकलने के लिए ज़रूरी है कि धीमी ही सही पर कुछ रचनात्मक गति बनी रहे, प्रयोग होते रहें। 

भविष्य में क्या होगा ये कहा नहीं जा सकता पर अगर श्रद्धा गायन की अन्य विधाओं, शैलियों को सीखकर नये प्रयोग करें तो स्थिति में काफी सुधार हो सकता है। आशा है ऐसा ही हो!
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#ज़हन

Monday, November 6, 2017

खौफ की खाल (नज़्म) #ज़हन - पगली प्रकृति कॉमिक


Poetry and artwork from Pagli Prakriti (Vacuumed Sanctity) Comic

खौफ की खाल उतारनी रह गयी,
...और नदी अपनों को बहा कर ले गयी!
बहानों के फसाने चल गये,
ज़मानों के ज़माने ढल गये...
रुक गये कुछ जड़ों के वास्ते,
बाकी शहर कमाने चल दिये। 

खौफ की खाल उतारनी रह गयी,
गुड़िया फ़िर भूखे पेट सो गयी...
समझाना कहाँ था मुश्किल, 
क्यों समीर को मान बैठे साहिल?
तिनकों को बिखरने दिया,
साये को बिछड़ने दिया?

खौफ की खाल उतारनी रह गयी,
रुदाली अपनी बोली कह गयी...
रौनक कहाँ खो गयी?
तानो को सह लिया,
बानो को बुन लिया। 
कमरे के कोने में खुस-पुस शिकवों को गिन लिया। 

खौफ की खाल उतार दो ना...
तानाशाहों के खेल बिगड़ दो ना!
शायद उतरी खाल देख दुनिया रंग बदले,
एक दुकान में गिरवी रखा हमारा सावन... 
शायद उस दुकान का निज़ाम बदले!
घिसटती ज़िन्दगी में जो ख्वाहिशें आधी रह गयीं,
कुछ पल जीकर उन्हें सुधार दो ना!
खौफ की खाल उतार दो ना...
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#mohitness #mohit_trendster #abhilash_panda #freelance_talents