चाणक्य सीरीज के लिए कुछ काव्य लिखा था, यहां साझा कर रहा हूं। बाकी कुछ यहां भी मिल जाएगा - (अलविदा, मेरे दोस्त बन चुके प्रोजेक्ट...)
“दूर कहीं छाये युद्ध के बादल,
आँखों ने नम किया प्रियम्वदा का आँचल।
प्रसव की घड़ी है पास,
कैसे छोड़े चंद्र नंदिनी का साथ?
कर्तव्यनिष्ठा का अतुल प्रमाण,
शशांक ने थामी सेना की कमान!”
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“दक्षिण की रणभूमि में था रक्तरंजित मंज़र,
शशांक की पीठ पर अपनों ने ही घोंपा खंजर।
तूफ़ान से पहले आई ये एक शांत घटा है,
बरसो बाद चंद्र के क्रोध का ज्वालामुखी फटा है!
अपनों के आंसुओं से छलनी चंद्र ने शपथ खाई!
अश्वपुर के बहाने देखो दक्षिण की शामत आई।”
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प्रतिशोध निराधार, गरल का वार।
तिल-तिल चन्द्रगुप्त को निगल रही युद्ध की दलदल,
सोने से ज़्यादा अनमोल चाणक्य के लिए पल-पल!
भीषण द्वन्द छिड़ा है दोनों ओर,
बताएगा आने वाले पहर…
जीवन जीतेगा या ज़हर!
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महल में बिन्दुसार की किलकारी गूंज उठी,
नंदिनी अपना जीवन हार कर भी जीत गई।
योद्धा चंद्र जब तक प्रेमी के रूप में आया,
राह तकती नंदिनी से अंतिम बार भी नहीं मिल पाया।
शोक में डूबा मगध और विमुख हुआ चंद्र,
अपनी ही संतान से हुआ मोहभंग!
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#ज़हन