अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Wednesday, September 22, 2021

मेरे देश की टीम बनाम निजी संस्था की टीम! (भारतीय क्रिकेट)

Japan (Women) cricket team - 2010 Asian Games Bronze Medalists

 जो बीत गया, उसे बदला नहीं जा सकता - लेकिन उससे सीख ज़रूर लेनी चाहिए। जहां पदक तालिका में जापान, अफ़गानिस्तान जैसे उभरते देशों को देखना अच्छा रहा, लेकिन फिर याद आया कि किसी द्विपक्षीय सीरीज़ की वजह से भारत ने एशियाई खेलों में जैसे थाली में सजा के रखे गए चार पदकों को नहीं लिया। पुरुष टीम का कैलेंडर आईपीएल आदि की वजह से समझ में आता है (वैसे यह वजह भी सही नहीं), पर महिलाओं को 2010 और 2014 के दो स्वर्ण पदक जीतने के लिए क्यों नहीं भेजा गया, मेरी समझ से परे है। अगर भारत अपनी रिज़र्व टीमें भी भेजे, तो स्वर्ण न सही पर पदक ज़रूर आ सकते हैं। 

उस समय इस बात पर काफ़ी हंगामा और कोर्ट केस भी हुआ था। अंत में लचीले कानूनों पर अमीर बीसीसीआई बोर्ड की जीत हुई और फ़ैसला दिया गया कि तकनीकी रूप से भारतीय क्रिकेट टीम - भारत की टीम न होकर, बीसीसीआई संस्था की टीम है। यह खबर जानकार बड़ी निराशा हुई। इस बाबत मैंने लल्लनटॉप मीडिया के एक कार्यक्रम में नामी भारतीय महिला क्रिकेटर शिखा पांडे से सवाल किया (और उन्हें जापान जैसे देशों के क्रिकेट में पदक जीतने का उदाहरण भी दिया), तो उन्होंने डिप्लोमेटिक से जवाब में बताया कि एक क्रिकेटर होने के नाते उनका मुख्य काम क्रिकेट खेलना है और बोर्ड की नीतियों या प्रबंधन के फ़ैसलों की उन्हें खास जानकारी नहीं है...सार्वजनिक मंच पर मुझे ऐसे ही जवाब की उम्मीद थी।

अब देखना है कि 2022 के खेलों में बीसीसीआई का क्या रुख रहता हैं।

Monday, September 20, 2021

स्वर्ण पदक वाले चोकर - दक्षिण अफ़्रीका क्रिकेट टीम



अपने देश के अलावा हम सभी की 1-2 पसंदीदा टीम होती हैं। अगर हमारी टीम आईसीसी टूर्नामेंट जैसे वर्ल्ड कप, चैंपियंस ट्रॉफ़ी या एशिया कप में हार जाती है, तो मन करता है कि खास हमारी दूसरी पसंदीदा टीम जीत जाए। भारत के बाद मेरे लिए वह टीम हमेशा दक्षिण अफ़्रीका रही। कुल जीत-हार के अनुपात में दक्षिण अफ़्रीका का रिकॉर्ड काफ़ी अच्छा है (लगभग 60% जीत की दर)। 1990 के दशक की शुरुआत में वापसी के बाद से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट भारत, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान जैसे देशों से कई सीरीज़ जीती हैं।

हालांकि, आईसीसी टूर्नामेंट में उन्हें चोकर का ताना मारा जाता है - कई बार बड़े टूर्नामेंट में सामने वाली टीम के अलावा डकवर्थ लुइस, बारिश आदि किस्मत के घटकों से इस टीम को हार मिली है, लेकिन कई देशों वाले एक गैर-आईसीसी टूर्नामेंट में उन्हें जीत मिली। मलेशिया में हुए 1998 के कॉमनवेल्थ या राष्‍ट्रमंडल खेलों में 16 देशों वाले फ़ॉर्मेट में क्रिकेट को शामिल किया गया था। फाइनल में उस समय जैसे अश्वमेघ यज्ञ का रथ दौड़ा रही ऑस्ट्रेलिया की लगाम दक्षिण अफ़्रीका ने पकड़ी और स्वर्ण पदक अपने नाम किया। इससे पहले सेमी-फाइनल में फिर लगने लगा था कि श्रीलंका उन्हें चोकर का तमगा पहना देगी। आखिर में, एक विकेट से जीत कर दक्षिण अफ़्रीका ने किस्मत को ठेंगा दिखा दिया। इस टूर्नामेंट में भारत ने अपनी कुछ हल्की टीम भेजी थी जिस वजह से हम पहला दौर पार नहीं कर पाए, लेकिन एक जांबाज़ टीम को मैडल जीतते देखना सुखद था। इस बात का दूसरा पहलु यह है कि दक्षिण अफ़्रीका ने फिर भी पदक जीता, बड़े टूर्नामेंट की ट्रॉफ़ी अभी बाकी है...देखते हैं, कितना इंतज़ार करना होगा।

#ज़हन

Saturday, February 27, 2021

पीएचडी वाले डॉक्टर (लघुकथा)

 

वर्ष 1998

वैसे तो संदीप जी की किराना दुकान थी, पर वे दुकान के बाहर भी बड़े जुगाड़ू इंसान थे। खुद का पढ़ने में मन कभी लगा नहीं, इसलिए 10वीं के बाद दुकान पर बैठ गए, लेकिन समय के साथ पास ही हाईवे पर बने विश्वविद्यालय में उनकी अच्छी जान पहचान हो गई थी। अब दुकान के साथ-साथ उन्होंने उस विश्वविद्यालय में छात्रों के एडमिशन पर कमीशन लेने का काम शुरू किया। कुछ सालों बाद, अच्छे संपर्कों और कुछ घूस के साथ संदीप ने अपनी औसत बुद्धि धर्मपत्नी को डॉक्टरेट की उपाधि दिलवा दी। इस उपलब्धि से उत्साहित होकर उन्होंने अपनी साली, बहन, जीजा को भी पीएचडी धारक बनवा दिया। इन डॉक्टरेट डिग्री के बल पर इन "डॉ" को शिक्षा, अनुसंधान से जुड़े सरकारी विभागों में नौकरी मिल गई। इस तरह संदीप ने कई जानने वालों को फर्ज़ी सम्मान और नौकरियां दिलवाने में मदद की। 

वर्ष 2021

संदीप की 30 साल की बेटी, हेमा का किसी काम में मन नहीं लगता था। ऊपर से वह भी औसत बुद्धि। अब पुराना ज़माना जा चुका था। वर्तमान में, पीएचडी करने के लिए कड़े नियम लागू थे और इस डिग्री में चयन से लेकर अंतिम शोध लिखने की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं थी कि कोई भी डॉक्टरेट की उपाधि पा ले। इतना ही नहीं, उस विश्वविद्यालय पर भी ऐसे मामलों में कुछ जांच चल रही थीं। संदीप के संपर्कों ने अब जो इक्का-दुक्का जगह उपलब्ध बिकाऊ पीएचडी का दाम बताया वो आम इंसान की पहुंच से बाहर था। फिर इतने पैसे देने के बाद भी मेहनत और समय लगना ही था...जो संदीप को सिस्टम की बेईमानी लगता था। 

एक दिन किसी शुभचिंतक ने संदीप की दुखती रग पर हाथ रख दिया। 

"आपके परिवार में इतने पीएचडी वाले डॉक्टर हैं, बिटिया को भी कहिए...कुछ देखे इसमें।"

संदीप ने मन ही मन पहले हालात और फिर शुभचिंतक को गाली देकर लंबी सांस ली...और कहा -

"आजकल के बच्चों में...वह पहले जैसी बात कहाँ?"

समाप्त!

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#ज़हन

Sunday, January 17, 2021

1000 wins (Chess24)

 

Win rate - 71.90% - Loss rate - 17.18%

Draw rate - 10.92%

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Reached my personal best ranking in classical.

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TWG World ranking #57. Top 50 in sight!

Wednesday, January 13, 2021

Intro page and Back cover - Colorblind Balam (कलरब्लाइंड बालम)

 

"अक्सर कुछ बातें छूट जाती हैं...कब?

जब काम की जल्दबाज़ी में किसी अपने के साथ चल रही चाय...थोड़ी छोड़नी पड़ती है।

जब किसी खूबसूरत अनजान राह पर उतरने के ख्याल भर को दुनिया की बंदिशें रोक देती हैं।

जब किसी के पास रहने की आदत के बीच एक दिन वह हमेशा के लिए चला जाता है।

जब बरसों किसी से बताने को मन के किसी कोने में संभाल के रखी बातों से ज़रूरी कुछ आन पड़ता है...

बड़ी बातों का लिहाज कर छोटी बातें घूंघट कर लेती हैं।

समय के साथ...यूं ये कुछ बातें कई बन जाती हैं। बस इन्हीं कुछ या कई बातों को 'कलरब्लाइंड बालम' संग्रह में पिरोया है। ज़रा ठहर कर पढ़ें शायद इससे कोई छूटी बात आपको भी याद आ जाए..."

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Tuesday, January 12, 2021

Back cover and Intro page - Kuch Meter par Zindagi (कुछ मीटर पर ज़िन्दगी)

 

"ज़िन्दगी दो चीज़ों की मोहताज होती है - एक रोटी का कौर और दूसरा सही दौर। जहां रोटी की अहमियत रोज़ महसूस होती है वहीं दौर को समय की सुई इतना भगाती है कि बैठकर उसको महसूस करने या उसकी अहमियत समझने का वक़्त ही नहीं मिलता। इसी तरह हम अक्सर खुद से पूछते हैं कि कोई बात, कोई याद...कहीं हुआ एक वाकया या घटना मामूली सा तो था पर मुझे क्यों याद है। ऐसा क्या खास था इसमें? कुछ भी नहीं! यह शायद आपके दिमाग का आपसे बदला लेने का तरीका है कि "मन को सुकून देने वाली ज़िन्दगी की अहम बातों को याद नहीं रखोगे, तो फिर भुगतो!" या शायद उसकी नम अर्ज़ी है कि "साहब जी/मैडम जी, बहुत भाग लिए ज़िन्दगी में...कभी तो ठहरकर अपनी संजोई यादों को निहारो!" इन कहानियों में ऐसे बारीक लम्हों को पिरोने की कोशिश की है। मुझे नहीं पता कि आपकी ज़िन्दगी में कौनसा दौर चल रहा है पर मैं उम्मीद करता हूं कि इन कहानियों को पढ़ने के बाद आप ऐसे लम्हों की डोर पकड़े हर दौर में अपने दिल को दिलासा देंगे..."


Great work by designer Nishant Maurya and team.