स्कूल जाने को तैयार होती शिक्षिका सुरभि पड़ोस के टीवी पर चलता एक गाना सुनकर ठिठक गई। पहले इक्का-दुक्का बार उसे जो भ्रम हुआ था आज तेज़ गाने की आवाज़ ने वो दूर कर दिया। जाने कब वो सब भूलकर सुनते-सुनते उस गाने के बोल पड़ोस के घर के गेट से सटकर गुनगुनाने लगी। अपनी धुन में मगन सुरभि का ध्यान पडोसी की 4 साल की बेटी पीहू के अवाक चेहरे पर गया और वह मुस्कुराते हुए सामान्य होकर वहाँ से स्कूल की तरफ बढ़ चली। आज स्कूल में सुरभि का मन नहीं लग रहा था, वो तो यादों के सागर में गोते लगा रही थी। किस तरह वह अपने गायक, गिटारिस्ट बॉयफ्रेंड घनश्याम के गानों, रियाज़ को घंटो सुना करती थी। उसके दर्जनों गानों के बोल सुरभि को आज भी याद थे।
ज़िन्दगी को सुलझाते हुए जाने कब दोनों का रिश्ता उलझ गया और अपने सपनो का पीछा करता घनश्याम सुरभि से अलग हो गया। सुरभि में अपने परिवार से बग़ावत करने की हिम्मत नहीं थी। दूर जाने का दर्द तो दोनों को बहुत था पर अक्सर चल रहे पल इंसान के सामने कुछ ऐसे दांव रखते हैं कि बीते लम्हों की याद आने में काफी समय लग जाता है। कभी दो जिस्म, एक जान यह जोड़ा अब एकल जीवन में व्यस्त एक-दूसरे के संपर्क में भी नहीं था। दोनों का लगा शायद वक़्त एक मौका और देगा पर कुछ सालों बाद सुरभि की शादी हो गई। आज वो खुश थी कि देर से सही पर कम से कम उसके पूर्व प्रेमी को अपनी मंज़िल तो मिली। शाम को लौटकर सबसे पहले उसने इंटरनेट पर इन गानों और घनश्याम का नाम ढूँढा। सुरभि हैरान थी कि इन गानों के साथ घनश्याम का नाम कहीं नहीं था। उसे लगा शायद घनश्याम ने मायानगरी जाकर अपना नाम बदल लिया हो पर गायको, म्यूजिक टीम की तस्वीरों, वीडिओज़ में घनश्याम कहीं नहीं था। सुरभि के आँसुओं की धारा में एक से अधिक दुख बह रहे थे। प्यार को जलाकर रिश्ते की आँच पर जो सपने पकायें थे उनके व्यर्थ जाने का दुख, घनश्याम की तरह हिम्मत ना दिखाने का दुख, उसका प्रेमी ज़िंदा भी है या नहीं यह तक ना जान पाने की टीस...
उधर लालगंज से दूर फ़िरोज़ाबाद में चूड़ी की दूकान पर खरीददार महिला को कंगन पहनाते घनश्याम के कानो पर रेडियो में किसी और द्वारा गाये अपने गानों का कोई असर नहीं पड़ रहा था। उसकी आँखों की तरह उसकी बातें भी पत्थर बन चुकी थीं।
समाप्त!
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