अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Thursday, July 4, 2013

सावन से रूठने की हैसियत ना रही...


One of the poem from my entry in second round of Freelance Talents Championship.

 सावन से रूठने की हैसियत ना रही।

सख्त शख्सियत  अब नहीं लेती अब मौसमो के दख्ल
अक्सर  आईने बदले  अपने अक्स की उम्मीद में ... 
हर आईना दिखायें अजनबी सी शक्ल।

अपनी शिनाख्त के निशां मिटा दिये कबसे ...
बेगुनाही की दुहाई दिये बीते अरसे ....
दिल से तेरी याद जुदा तो नहीं !
मुद्दतों तेरे इंतज़ार की एवज़ में वीरानो से दोस्ती खरीदी,
ज़माने से रुसवाई के इल्ज़ाम की परवाह तो नहीं !
सावन से रूठने की हैसियत ना रही।

रोज़ दुल्हन सी सवाँर जाती है मुझको यादें ....
हर शाम काजल की कालिख़ से चेहरा रंग लेती हूँ ....
ज़िन्दगी को रूबरू कर लेती हूँ ...
कभी उन यादों को दोष दिया तो नहीं ...
सावन से रूठने की हैसियत ना रही।

इज़हार रे याद,
हाल ए दिल बयाँ करना रोजाना अमल लाये,
कैसे मनाएँ दिल को के आज तुम सामने हो ...
रोज़ सा खाली दिन वो नहीं ...

उस पगडंडी का सहारा था,
वरना रूह ख़ाक करने में कसर न रही ....
ज़हर लेकर भी जिंदगी अता तो नहीं ....
सावन से रूठने की हैसियत ना रही।

इल्जामो में ढली रुत बीती न कभी,
जाने कब वो मोड़ ले आया इश्क ...
बर्दाश्त की हद न रही।
अरसो उनकी बदगुमानी की तपिश जो सही ....

सरहदें खींचने
में माहिर है ज़माना,
दोगली महफिलों से गुमनामी ही भली ..
खुद की कीमत तेरी वरफ़्तगी से चुनी ...
जिस्म की क़ैद का सुकून पहरेदारों का सही ...
ख्वाबो पर मेरे बंदिशें तो नहीं ...
सावन से रूठने की हैसियत ना रही। 

- Mohit Sharma Trendster

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