मीडिया की जवाबदेही?
मुंबई आतंकी हमले के बाद आंतरिक गलतियों को सुधारा गया, कई जाँचे बैठायी गयी। नौसेना ने त्वरित कार्यवाही करते हुए कुछ अफसरों पर दंड लगाया पर हम एक दोषी घटक को दंडित करना या उस पर जवाबदेही सुनिश्चित करना भूल गए। हमले के बाद आतंकियों के पीछे तुरंत मीडिया वाले लाइव कवर करने लगे विभिन्न घटनास्थलों को।
*) - लाइव स्थिति क्या है? एक्सक्लूसिवपने के चक्कर मे कुछ बेवकूफ चैनल्स तो ज्ञात लिंक्स और जानकारी से जगह-जगह अर्धसैनिक बलों के पास मौजूद विकल्पों की भी विस्तार से चर्चा करने लगे।
*) - पिछले हमलो का कितना और कैसा असर हुआ। इसने एक मनोबल बढ़ाने वाली घुट्टी सा असर किया होगा। आगे क्या-क्या हो सकता है?
*) - पाकिस्तान से इन्हे मॉनिटर कर रहे और निर्देश दे रहे हेड्स को सटीक जानकारी मिलती रही।
इस गलती की वजह से देश के कितने ही नागरिको, पुलिसकर्मियों, अर्धसैनिक बलों और एन.एस.जी. कमांडोज़ की जान गयी या वो गंभीर रूप से घायल हुए। एक ख़ास विजुअल मुझे याद है लाइव फीड बंद होने से पहले का। नरीमन पॉइंट (Chabad House) पर कमांडोज़ उतर रहें है हेलीकॉप्टर से और एक कमांडो द्वारा ऊपर का दरवाज़ा खोलने पर एक एक्सप्लोजन होता है शायद हैंड ग्रेनेड का, मुझे नहीं पता उसके बाद क्या हुआ, लाइव रिले कट गया। भगवान करे वो कमांडो ज़िंदा हो।
यह सिलसिला कुछ घंटे बाद सुरक्षा अधिकारीयों, सरकार के कहने पर चैनल्स द्वारा बंद किया गया। मेरा पहला सुझाव इन चु#*यो को ये है की अपनी डिग्रियां टॉयलेट पेपर की जगह इस्तेमाल कर लें कुछ दिन, जब पता है इन लोकेशंस पर क्राइसिस चल रहा है तो ज़रूरी है वहीँ कैमरा लगाये रखा जाये? दूरदर्शन स्टाइल में भी कवर किया जा सकता था जिसमे सुरक्षा विकल्प पर चर्चा, लाइव विजुअल्स कम रहते और टैलिप्राम्प्टर रिपोर्ट ज़्यादा रहती, या कैमरा एंगल्स अलग रहते जिनके साथ कुछ तस्वीरों को फ़्लैश किया जा सकता था।
क्या इस जान-माल की ज़िम्मेदारी लेगा मीडिया जो सबको कठघरे में खड़ा करने को उतावला रहता है? क्या मीडिया उन परिवारो को भरपाई कर पायेगा जिनका सब कुछ उनके कुछ मिनट्स की फ़ुटेज की बलि चढ़ गया? यह तो एक उदाहरण भर है प्रिंट मीडिया, टी वी, इंटरनेट पर गलत रिपोर्टिंग अक्सर हो जाती है पर दूसरो के फिसल जाने तक पर सवाल करने वाले अपनी गलतियों को मानने तक का जिगर नहीं रखते। थू है तुम्हारी पहुँच पर और थू है तुम्हारे एक्सक्लूसिवपन पर।
- मोहित शर्मा (ज़हन)
---------------------------------------
*) - दयातलोव पास घटना
दयातलोव पास घटना (Dyatlov Pass Incident) के बारे में जितने तथ्य पता चलते उतनी ही यह दुखद पर हद से ज़्यादा रोचक गुत्थी उलझती चली जाती है। यूरल पहाड़ो की चढ़ाई करते अनुभवी पर्वतारोहियों की रहस्यमय मौतें और काफी बड़े घटनास्थल का अजीब दृश्य जिसको देख कर लगता है की ये अनुभवी ना होकर नौसिखिये या पहाड़ो से अनजान लोग थे। उनके टेंट को अंदर से काटा गया जैसे किसी बड़ी मुसीबत से बचने के लिए पर्वतारोही भागे हों। कुछ लाशो पर बाहर चोट निशान नहीं पर अंदर से हड्डियाँ टूटी हुई।
उनके कैमरे का आखरी फ़ोटो जिसमे एक यति मानव सी छवि है, कुछ लाशों पर रेडिएशन के निशान जिस से उनकी खाल नारंगी और बाल सफ़ेद हो गये। पास ही एक पेड़ पर कुरेदा गया की "अब हमे पता है हिम मानव होते है।" यह अमेरिका और पूर्व सोवियत संघ के शीत युद्ध दौर की बात है। कई थिओरीज़ सोची गयी पर इतनी जटिल बातें है सीन पर की कोई थ्योरी फूलप्रुफ नहीं जमती।
कुछ काल्पनिक किताबें और एक फिल्म आई है इसपर आधारित। पिछले २-३ दिनों से इसी से ओब्सेसड हूँ। सोवियत संघ के जांचकर्ताओं के कुछ बातें छुपाई भी जिनमे प्रमुख है 9 की जगह 11 लाशों का मिलना पर 2 लाशें तुरंत ही उच्च प्रशासन के आदेश से घटना से हटा दी गयी। सबसे बड़ा मत यह है की इन दुर्भाग्यशाली लोगो ने सरकार की कोई गुप्त जगह या कोई राज़ जान लिया जिस वजह से इन्हे एक संघर्ष में मार दिया गया, मुख्य बात यह है की रूस काफी बड़ा देश है तो अगर वो स्वयं शामिल होते तो वीरान पहाड़ की घटना आराम से दबा सकते थे वो भी उस समय 1959 में, दूसरा अगर घटना सामने आती भी तो इतनी डिटेल्स पब्लिक ना होने देता सोवियत संघ। तीसरा इस केस में अपनी नाकामी उस उन्नत देश ने खुद मानी जो उस वर्ष इंसान को अंतरिक्ष में भेज चुका था, तो थोड़ा संदेह होता है इस थ्योरी पर। इस केस पर थोड़ा समय दें, जाया नहीं जाएगा।
- मोहित ज़हन
------------------------------------
*) - दिमाग के खेल
दिमाग की कई परतें चौंकाती है और मुझे विश्वास है की कई अभी तक खोजी भी नहीं गयी है। जैसा मैंने पहले बताया, दयातलोव घटना के बारे मे जानते हुए एक अजीब बात पता चली। हाइपोथर्मिया एक ऐसी स्थिति है जो शरीर का तापमान बेहद कम हो जाने पर होती है जिसमे पीड़ित की जान भी जा सकती है, ये ठंडी जगहों, बर्फीले-नमी के क्षेत्रो में बाहर बिना सही पहनावे के या भीग जाने से या काफी अधिक समय रहने से होती है।
इसकी मौत से कुछ मिनट्स पहले अंतिम स्टेज में इंसानी दिमाग बड़ी अजीब प्रतिक्रियाएँकरता है। अजीब बर्ताव दिखाते हुए ठंड में ठिठुर रहा इंसान अपने कपडे उतार देता है। बात यहाँ ख़त्म नहीं होती फिर वो व्यक्ति को संकरी जगह जैसे बैड के नीचे, कार के नीचे, कबर्ड में, अलमारी में घुस जाता है और मर जाता है। जिन हालात में ऐसे पीड़ितों मिलती है अक्सर पुलिस या जांचकर्ता हाइपोथर्मिया के बजाये लूट, हमला, बलात्कार जैसे एंगल्स सोचने लगते है। सार ये की शायद कभी-कभी जिसे हम पारलौकिक बात समझते है वो वाकई उस इंसान में पागलपन होता है...
No comments:
Post a Comment