दो पडोसी बड़े कबीलों नर्मक और पालेसन के पुराने बैर में न जाने कितनी लड़ाइयां, खून हुए थे। मुख्य वजह थी दोनों कबीलों के धर्म और देवताओं का अलग-अलग होना। इसी दुश्मनी की नयी कड़ी में नर्मक के सेनापति और कुछ बलशाली सैनिको की टुकड़ी, रात के अँधेरे में, पालेसन के लोगो का मनोबल गिराने के लिए उनका धार्मिक स्थल तोड़ने और विशालकाय देव की मूर्ति खंडित करने पहुंचे। अमावस रात्रि किसी पालेसन वासी का धार्मिकस्थल के पास ना जाने की प्रथा के रूप में उन्हें मौका मिला था।
नर्मक सेनापति – “यह धार्मिक स्थल ढहा दो। जितना नुक्सान कर सकते हो करो।”
धार्मिकस्थल उम्मीद से अधिक कमज़ोर था इसलिए कुछ ही देर में ढहने लगा। इतनी जल्दी नर्मक दल के किसी सदस्य को स्थल ढहने की अपेक्षा नहीं थी। गिरते विशालकाय पत्थरों में सबको मौत दिखने लगी। सेनापति की वीरता पानी भरने चली गयी। तभी पालेसन देव की प्रतिमा इस कोण पर नर्मक दल पर गिरी की सब स्थल के बीचो बीच दबने के बाद भी बच गए।
पालेसन वासियों ने घायल नर्मक दल को बाहर निकाला और पालेसन प्रमुख ने उन्हें यह कहकर वापस नर्मक जाने दिया।…
“अंतर हम इंसान करते है, भगवान नहीं!”
नर्मक दल ने जाने से पहले पालेसन धार्मिकस्थल के दोबारा निर्माण में अपना श्रम दान दिया और अपनी जनता, प्रमुख को समझाने का वायदा किया।
समाप्त!
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