Population of undivided India in 1947 was approx 390 million. After partition, there were 330 million (84.62%) people in India, 60 million (15.38%) in East-West Pakistan. Total area of Pakistan after partition was 943665 square kilometers - 22.3% of 4.23 Million square kilometers (area of undivided India before partition), 7% difference between population and area. Pak occupied Kashmir area - 13,297 km² further increases stats mismatch in favor of Pakistan....and then there is article 370 in Jammu & Kashmir....useless gangrene affected limb. This increased burden on India directly-indirectly affects our standard of living in general and kills millions of people annually. Collateral damage ki chinta kiye bina, "nationalism" k liye na sahi par lakho marte logo k liye, kuch karna chahiye. Kashmir chahiye-aazadi chahiye...udhaari leke ulta udhaar dene waale se sood maang rahe hain....Human rights dekho par phir poore context, anupaat k saath dekho....
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*) - शनि शिंगणापुर मामला
हिन्दू धर्म / सनातन धर्म में कई बातें, रीती-रिवाज़ एकसार हैं, जबकि कुछ रिवाज़ स्थानीय मान्यताओं, लोगो के हिसाब से अलग-अलग होते हैं। जैसे कुछ स्थानों में विजयादशमी पर साधारण पूजा की जाती है, रावण दहन नहीं होता। उत्तरप्रदेश के एक कसबे में पुरुष होली नहीं खेल सकते, यहाँ रंगवाली होली सिर्फ महिलाओं द्वारा खेली जाती है। ऐसे ही अलग-अलग मान्यता, त्यौहार, रिवाज़ पर कुछ स्थानों पर थोड़े बदल जाते हैं। कुछ जगह पुरुषों को कुछ करने की मनाही है, तो कहीं महिलाओं को - तो कहीं पूरा का पूरा गांव त्यौहार नहीं मनाता। जिनका कारण वहां के बड़े बूढ़े विस्तार से बताते हैं। यह स्वतंत्रता - एक जैसे अधिकारों की बात है तो ठीक है, फिर सब जगह, धर्म, प्रांतो में एकसाथ लागू होनी चाहिए। क्या ऐसा होगा? या आज़ादी-दकियानूसी-खुली सोच एक धर्म को कोसने तक सीमित रह जायेगी? सबकी आज़ादी के पक्ष में हूँ, खुली सोच के पक्ष में हूँ पर फिर सबके लिए एकसाथ "आज़ादी" लागू करने के पक्ष में भी हूँ।
भारत में अक्सर लोग एक अच्छे सामाजिक आंदोलन की आड़ में खुद (या अपनी संस्था) के लिए फंडिंग और खुद को सेलेब्रटी बनाने का पिग्गीबैकिंग काम करते है। नारीवाद के साथ अक्सर ऐसा होता देखता हूँ। लोग अपने निजी मतलब के लिए "महिलाओं के अधिकारों, उत्थान" की बात करते है। मामूली कलाकार जो वैसे कुछ ना कर पाते अपने जीवन में बड़े ऊँचे स्थान पर पहुँच जाते है, (ध्यान रहे यह बात मैं सब एक्टिविस्ट के बारे में नहीं कह रहा)। किसी को गूगल पर पता चला कि इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है तो पहुँच वहां गए एक्टिविस्ट बनने। पता है इसके बाद देश-दुनिया में फ्री की पब्लिसिटी, अवार्ड्स और ज़िन्दगी भर की अच्छी फंडिंग मिलनी है। इस मामले में मुझे इस्लाम धर्म पसंद है, जो विरासत में मिला है वो मानो या रहने दो, बदलो मत। शाह बानो बेगम मामला इसकी एक मिसाल है, जहाँ सुप्रीम कोर्ट को धार्मिक मान्यताओं से नीचे माना गया।
तो मेरा यह निवेदन है आंदोलनकारियों, स्वयंसेवी संस्थाओं, कानून और सरकार से कि करिये तो सबके लिए करिये। सबको एक पैमाने पर रख कर करिये, जो आसान शिकार मिल गया, जहाँ बैकफायर होने का कोई चांस नहीं वहां नौटंकी ना बखारें। जाते-जाते आसान शिकार हिन्दुओ के बारे में बता दूँ। मतलबी और लालची लोग होते हैं अधिकतर। उन्हें खुद से मतलब है, उनके घर तक अगर कोई बात नहीं आ रही तो चाहे आप उनकी देवी माँ का इतिहास बदल कर राक्षस महिषासुर का महिमामंडन कर दो, इतिहास की किताबों से सबका सम्मान और खुद को हेय दृष्टि से देखने की आदत डलवा दो, अपराध को इतना त्राहि-त्राहि मोड में दिखाओ की 200 देशों में अपराध दर में कहीं बीच में मौजूद भारत सबको पहले स्थान पर दिखने लगे और अपने देश-देशवासियों से ही घृणा करवा दो। कुछ बैकफायर नहीं होना, उल्टा सेलिब्रिटी बनना पक्का!
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