रात के 3 बजे सरोर पुलिस थाने से सटे कमरे में सोते दीवान जी की किवाड़ ज़ोर से धड़धड़ाई। यकायक हुई तेज़ आवाज़ से दीवान जी उठ बैठे। उन्होंने तो जूनियर मुंशी को थाने पर किसी इमरजेंसी के लिए बैठाया था फिर ऐसा क्या हो गया जो उनकी ज़रुरत आन पड़ी? शायद कहीं रोड होल्डअप या डकैती पड़ गई। असल में 62 वर्ष और कागज़ पर साढ़े 59 साल की उम्र में रिटायरमेंट के करीब दीवान जी को किसी झंझट में पड़ना पसंद नहीं था इसलिए वो नौकरी में कम से कम जोखिम चाहते थे। आजकल लोग पुलिस पर केस भी बहुत करने लगे थे। उन्होंने मन बनाया कि अगर संभव होगा तो वो अपनी जगह जूनियर मुंशी को भेज देंगे।
जब किवाड़ धड़-धड़ कर टूटने को हुई तो दीवान जी चिल्लाये।
"अरे! रुको यार आ रहा हूँ। ऐसा कौनसा मंत्री मर गया यहाँ छोटे से सरोर में....वो भी आधी रात को?"
अँधेरे में दीवान जी को अपने थाना इंचार्ज दरोगा जी की झलक सी दिखी और उनके पीछे बनल थाने के इंचार्ज इंस्पेक्टर साहब थे, जिनके थाने की सीमा सरोर से मिलती थी।
"ओह जय हिन्द साहब! किसी हमराह सिपाही को भेज दिया होता आपने। मैं वर्दी पहन कर अभी आया।"
मुँह-हाथ धोकर वर्दी पहनने में दीवान जी को 6-7 मिनट लगे, उन्हें अजीब लगा कि इस बीच थाने में बैठने के बजाए के बजाये दोनों अफसर उनके निवास के बाहर अँधेरे में खड़े रहे।
इंस्पेक्टर साहब खरखराती आवाज़ में बोले - "हमारे साथ एक मौके पर चलना है।"
दोनों तेज़ कदमों से कुछ लंगड़ाते हुए से चलने लगे। आधी नींद से जगे दीवान जी को लगा कि या तो कोई पैसे की बात है या कहीं हाथ से निकली वारदात पर लिखा-पढ़ी कैसे की जाए इसलिए पूरे थाने में बिना किसी सिपाही को बुलाये सिर्फ उन्हें उठाया गया। जीप में दोनों अधिकारी आगे बैठ गए और दीवान जी पीछे आ गए। बैठने पर उन्हें एक व्यक्ति बंधा हुआ दिखा जिसके मुँह में कपडा ठूँसा हुआ था। उसे देखकर लगा किसी अपराधी का फर्जी एनकाउंटर होने वाला है।
सीनियर अफसरों के सामने दीवान जी ने लिहाज़ में कुछ पूछना उचित नहीं समझा। बिजली की किल्लत वाले कसबे में अमावस की रात का अँधेरा ऊपर से जीप की जर्जर बैटरी से मोमबत्ती सी जलती हेडलाइट्स में कुछ देखना मुश्किल था। जीप तेज़ गति से बनल थाने की ओर बढ़ रही थी। बँधे हुए व्यक्ति को हिलते हुए देख इंचार्ज के सामने पॉइंट बनाने को आतुर दीवान जी बोले।
"सर आपको तो ड्राइवर की ज़रुरत ही नहीं! एकदम एक्सपर्ट! और तू भाई नीचे पड़ा रह शान्ति से....अब हिलने उं-उं करने का क्या फायदा? जो पाप तूने किये होंगे साहब लोग उसी की सज़ा दे रहे हैं तुझे। मरने से पहले क्यों तकलीफ दे रहा है अपने-आप को?"
जीप दोनों थानों की सीमा पर एक सुनसान मोड़ पर आकर रुकी।
दीवान जी ने कुछ नोटिस किया।
"सर आप दोनों की वर्दी से खून टपक रहा है। कुछ किया था क्या इस बदमाश ने?"
जवाब में जीप की बैटरी में जाने कैसे जान सी आ गयी और दीवान जी को सब साफ़ दिखने लगा। उं-उं करके हिल रहा व्यक्ति कोई अपराधी नहीं बल्कि बनल थाने का दीवान था। दोनों अफसरों की वर्दी से खून इसलिए रिस रहा था क्योकि दोनों के शरीर को बीच में से आधा काटा गया था और अब बनल थाना इंचार्ज का आधा दांया भाग सरोर के दरोगा के बायें भाग से जुड़ा था और सरोर दरोगा का दायां हिस्सा बनल इंचार्ज इंस्पेक्टर के बायें हिस्से से जुड़ा था। इस कारण ही ये दोनों शरीर लंगड़ा कर चल रहे थे और इनकी आवाज़ें भी सामान्य से अलग थीं।
भयावह मुस्कान बिखेरते चेहरों को देख डर से गिर पड़े और दूर घिसटने की कोशिश कर रहे दीवान जी के पास आकर दोनों शरीर बैठ गए और बोले - "पिछले हफ्ते यहाँ पड़ी डकैती तो याद होगी दीवान जी? डकैत यहाँ एक एस.यू.वी. गाडी रोक एक परिवार के 8 लोग लूट कर सबको गोली मार गए थे। यहाँ से गुज़र रहे राहगीरों ने 100 नंबर कण्ट्रोल रूम फोन किया तो सूचना दोनों थानों पर गई। अब चूँकि यह इलाका दोनों थानों की सीमा है तो दोनों ने मामला काफी देर तक एक-दूसरे पर टाल दिया और तड़पता हुआ परिवार मदद की देरी में दम तोड़ गया। वो बेचारी आत्माएं लौटी और ना इसका ना मेरा करके हम दोनों को आधा-आधा काट गई जैसे हम अपनी ज़िम्मदारी को काट गए थे। पुलिस कण्ट्रोल रूम ने फ़ोन किया आपको और बनल के दीवान जी को और दोनों ने अपने-अपने थाना इंचार्ज को ये आईडिया दिया कि क्यों झंझट में पड़ना। वो आत्माएं उन डकैतों को निपटाने गई हैं हम दो जिस्म, दो जानों को एक काम सौंप कर... जैसे हम अधकटे एक-दूसरे से चिपके हैं, वैसे ही तुम दोनों दीवान के शरीर हमें काट कर, अलग-अलग जोड़ने हैं एकदम जैसे हम दोनों के शरीर जोड़े उन आत्माओं ने।
फिर उन दोनों लंगड़ाते शरीरों ने बनल के दीवान और सरोर के दीवान जी के शरीर बीच से फाड़ने शुरू किये जिस से आस-पास का समां मौत से पहले की चीखों से भर गया। दोनों मृत शरीर को एक-दूसरे के आधे हिस्सों से जोड़ दिया गया। अगले दिन उस सीमांत मोड़ पर लोगो को चार लाशें मिली। हर लाश में 2 अलग-अलग इंसानो की आधी लाशें थी।
समाप्त!
- मोहित शर्मा ज़हन
Artwork - Thanh Tuan
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