अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Wednesday, August 14, 2013

अजीब सरज़मीं है मेरे वतन की...

Happy Independence Day!!!!! India :)

अजीब सरज़मीं है मेरे वतन की जो बिना शिकायत ज़माने की बुराई जज़्ब करती है ...

...और अजीब रस्मे इस निज़ाम की... बन्दे अपने गुनाह वतन पर लाद देते है ..

फिर इत्मीनान से उन्ही गुनाहों को भीड़ की आड़ लेकर कोसते है।


कदमों को शर्म दे कोई ...देखो छूट रहे निशान ...

आज हम बेगैरत ...कभी गुज़रा यहीं से आज़ादी का कारवाँ।


अपने गुनाहों को दफ़नाने की कोशिशें ....

हर खता की अर्ज़ी यूँ की रफा दफा .....

खुद की इजाज़त से खुद पर बंदिशें ...


....वायदा किया था शहीदों से, मेरी आज़ादी के लिए लड़ने वालो से ...

माना मुझ पर लगे इल्जामो की फेहरिस्त लम्बी है ...

बुराईयाँ हमेशा ज़हन मे सिमटी रहेगी ....वतन पर नहीं आयेंगी!

मेरे जीते जी ...और मेरे मिट्टी मे मिलने के बाद भी ...


जय हिन्द!


Is kavita se yahi sandesh hai mera aap sabhi ko ki maana desh mey bahut burai hai par "Kya fark padta hai?" kehkar apni chhoti-chhoti buraiyon se desh bhar ki burai mey decimal points ka izafa bhi na hone dene ki kosish kijiye....aur na kar paayen to kum se kum kosiye mat desh ko...basharte sheeshe mey aapka aks saaf aata ho. Jai Hind!

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