सबका उचित आदर-सम्मान, प्रकृति के करीब रहना, भलमनसाहत, अंतिम समय तक युद्ध के बारे मे ना सोच कर अन्य तरीको से हल निकालना कुछ ऐसी विशेष बातें रही जो पहले के युगों में सनातन धर्म की मज़बूती बनी। जिस कारण हमारा देश भारत और धर्म विश्व में युगों-युगों तक सर्वश्रेष्ठ रहे। पर कलियुग में यह विशेषतायें ही विषमताओं में बदल गयी। उग्र, क्रूर तरीकों अपना संप्रदाय बढ़ाने आ रहे लोगो को रोका ना जा सका, स्थानीय लोगो द्वारा जैसे सब भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। उन्हें लगा जैसे वो भोले भाले है (आम तौर पर) वैसी ही दुनिया होगी। ना जाने कितने ही वीरों ने डट कर लोहा लिया पर आम जन के बिना उनके प्रयास निष्फल रहे। चाणक्य जैसे कुछ विद्वानो ने चेताया भी था बहुत पहले से पर सब कलयुगी माया में आया गया हो गया।
एक विशेषता और परिवर्तन अनुसार ढल जाना, जिसमे दूसरो को अपने गुण-संस्कृति देने में शर्माना, दकियानूसी समझना और दूसरा के कूड़े को भी इज़्ज़त से देखना। जिस से समय के साथ सांस्कृतिक आयात अधिक हुआ और निर्यात कम। कहने का तात्पर्य यह नहीं की क्रूर, दमनकारी बन जायें पर अपने गुणों, संस्कृति को पहचाने। बाहर से आयातित बातों का और अपनी बातों का संतुलित संगम बनायें।
- Mohit Trendster #mohitness
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