मोहन बाज़ और चंचल हिरण राजन वन्य क्षेत्र की शान थे क्योकि अपनी बुद्धिमता और कौशल से वो दोनों लंबे समय से अलग-अलग और संयुक्त रूप से राजन जंगल के लिए कई सामान्य ज्ञान, विज्ञानं, लेखन, क्विज आदि प्रतियोगितायें जीतते आ रहे थे। उम्र और कक्षा बढ़ने के साथ उनकी प्रतियोगिताओं का स्तर बड़ा हो रहा था पर दोनों घनिष्ट मित्र अब भी पहले की भाँती विजयी हो रहे थे।
राजन जंगल का नन्हू गिद्ध ऐसी प्रतियोगिताओं के लिए आवेदन करता पर मोहन और चंचल के कारण कभी उसके चयन नहीं हो पाता। नन्हू ने स्थिति बदलने के लिए दोनों में फूट डालने की सोची। उसने मोहन बाज़ से कहा कि चंचल पीठ पीछे उसकी निंदा करती है और चंचल को समझाया कि संयुक्त टीम प्रतियोगिताओं में मेहनत तुम करती हो पर श्रेय मोहन को मिलता है, इसके अलावा निंदा और अफवाह से नन्हू ने दोनों के कान भर दिए। धीरे-धीरे मोहन बाज़ और चंचल हिरण में द्वेष, ईर्ष्या की वजह से मतभेद होने लगे, जब भी स्थिति सामान्य होने को या सुलझने को होती तो नन्हू फिर से उनके मतभेद बढ़ा देता और एक दिन बात इतनी बढ़ गयी तीखी बहस के बाद दोनों ने मित्रता तोड़ ली। उन्होंने अपने टीम तोड़ दी और इस बात का असर उनके एकल प्रदर्शन पर पड़ा और दोनों एक के बाद एक प्रतियोगिता हारने लगे। जबकि नन्हू ने अपनी टोली के साथ राजन जंगल के प्रतिनिधित्व में उन दोनों की जगह ले ली। एक बार शेखी में नन्हू गिद्धने यह बात अपनी मंडली को सुनाई कि कैसे उसने दो मित्रों को अलग कर दिया। यह बात पास ही विश्राम कर रही नटखट गिलहरी ने सुनी और मोहन बाज़, चंचल हिरण को कह सुनाई।
तब चंचल और मोहन में सुलह हुयी और उन्हें पता चला कि ईर्ष्या और संवाद की कमी के कारण कितना नुक्सान होता है। दोनों फिर साथ आये और उन्होंने नन्हू की टीम को हराकर राष्ट्रीय विज्ञानं ओलम्पियाड में क्वालीफाई किया। इस से मोहन, चंचल और हम सबको यह शिक्षा मिलती है कि बिना विचार किये और जाँच-पड़ताल किये दूसरों की बातों पर पूर्ण विश्वास नहीं करना चाहिए, साथ ही मित्रों में संवाद की कमी मित्रता तोड़ सकती है।
समाप्त!
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