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अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...
Saturday, October 13, 2012
Comic Article in Amar Ujala (October 2010)
2
years back...Rupayan (Amar Ujala) popular Hindi Newspaper published excerpt from my blog post
in a Community Blog "Comics Diwane : हम बड़े नहीं होंगे,
कॉमिक्स-जिंदाबाद". Some uber talented, passionate about comics people
are in that community blog.
Read full blog post -
कॉमिक्स काफ़ी सारी विविधता और किरदारों के साथ आती है. साथ ही कॉमिक्स
का सबसे बड़ा फायदा किसी बच्चे (खासकर slow learners or differently
abled) के विकास मे होता है. सिर्फ बच्चे ही क्यों बड़ो को भी समान रूप से
कॉमिक्स पढने का फायदा होगा. पर ज्यादातर अभिभावक कॉमिक्स को समय, पैसे,
आदि की बर्बादी समझते है. जैसा की वो अब तक सुनते आ रहे है. उन्होंने कभी
कॉमिक्स को खुद नहीं परखा जो सुन लिया वो मान बैठे. ये बहस तो लम्बी है की
कॉमिक्स को सिर्फ बच्चो के लिए क्यों समझा जाता है पर यहाँ मै आप सबका
ध्यान कॉमिक्स से होने वाले एक बड़े फायदे की ओर करना चाहता हूँ. विकसित
होते और निरंतर कुछ न कुछ सीखते मस्तिक्ष को कॉमिक्स किस तरह विकास मे मदद
करती है.
कॉमिक्स एकलौता ऐसा
multimedia का साधन है जिसमे लगभग हर कोई आराम से अपनी सुविधा अनुसार
चित्रों और कहानी को relate कर सकता है और उनमे हो रहे frame wise changes
को समझ सकता है. ये खासियत बच्चो के दिमाग के विकास मे मदद करती है. क्या
और किसी मनोरंजन के साधन मे है ये खूबी? अभिभावक अगर कॉमिक्स का
सही तरीके और सोच से इस्तेमाल करें तो उनके बच्चो का बहुत बढ़िया विकास हो
सकता है. साथ ही उनकी creativity और logical approach भी विकसित होता है.
बस कॉमिक्स चुनते वक्त उसके मैटर पर एक बार उपरी नज़र डाल कर उसे देख लें.
कुछ बढ़िया कॉमिक सीरीज़ आपके बच्चे को बहुत अच्छी सीख दे सकती है. यहाँ भी
मै कहूँगा की अपने हिसाब से खुद कॉमिक्स चुनिये...हर बार की तरह सिर्फ
दूसरो की मत सुनिये. कई अभिभावक और आलोचक शिकायत करते है की कुछ कॉमिक्स मे
व्यसक दृश्य, बातें, खून-खराबा बहुत होता है. मेरा कहना ये है की सारी
कॉमिक्स ऐसी नहीं होती, मनोरंजन के बाकी साधन जैसे टी.वी., इंटरनेट,
पत्रिकाएँ यहाँ तक की अख़बार आदि भी इस मामले मे कॉमिक्स से कहीं ज्यादा
आगे निकल गये है.....और कम से कम कॉमिक्स मे अंत मे अच्छाई की बुराई पर जीत
तो होती है.....है ना? अब तक तो
हाल ये है की साहित्यिक गलियारों मे बच्चो की चीज़ कहकर नकार दी जाने वाली
कॉमिक्स को बाल साहित्य की श्रेणी तक मे जगह नहीं मिलती. तो क्यों ना नयी
पीढ़ी से एक नयी शुरुआत की जाये जहाँ कॉमिक्स को भी साहित्य जैसा सम्मान
मिले (क्योकि कॉमिक्स के पीछे भी कई प्रतिभाएं दिन-रात मेहनत करती है).
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