अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Thursday, October 25, 2012

Weird-Epic Feud : Story War





Feud Duration : 5-29 June 2012 
(Story War : 19-29 June 2012)
Shekhar Srivastav vs. Mohit Sharma 
Groups/Commmunities - ICUFC, ICFJ, RC.
Result : Double Disqualification or N/C, A member leaves groups, communities.

बात है इस साल जून की जब मेरी इंटर्नशिप चल रही थी और टाइम कम मिलता था इसलिए मै सिर्फ 1 - 2 कॉमिक्स, आर्ट  ग्रुप्स विजिट कर लेता था. तभी कॉमिक्स को लेकर कुछ मुद्दों पर एक व्यक्ति विशेष के विचार मुझे लगे. मैंने देखा की उसकी आदत थी की कुछ बातों के बल पर पूरी कॉमिक इंडस्ट्री पर इलज़ाम लगाना, बिना पूरे तथ्यों अपने निष्कर्ष देना या अपनी सोची बातें, विचार बाकी लोगो पर थोपना, बातें अगर मानी जाए तो आवेग मे आकर अपने कॉमेंट्स मे पर्सनल हो जाना .....ऑनलाइन ये बातें मेरे लिए नयी नहीं है इसलिए मैंने उन्हें कुछ दिन उदाहरण, विचार, रिकार्ड्स आदि बताकर समझाने की कोशिश की पर नाकाम रहा....हास्यास्पद स्थिति तब आती थी जब किसी छोटी बात से मुद्दा भारत की कमजोरी और भारतीय लोगो की मानसिकता, कामचोरी आदि पर ला दिया जाता था

वो कभी-कभी अपनी बात एक शोर्ट कहानी या राईटअप मे देते थे.....उनकी इंटेंसिटी और हरकतें अब बढती जा रही थी...मैंने हारकर उसी तरह उन्हें समझाने की कोशिश की...जिसका नतीजा उल्टा हुआ और मुझे जवाब कहानी से ही आया...तो ये बहस अब पर्सनल ले ली गयी...कुल पाँच (2 उनकी और 3 मेरी) कहानियाँ और बहुत सारे discussions हुए हमारे बीच. मेरी आखरी कहानी के बाद उन्होंने दोनों ग्रुप्स छोड़ दिए जहाँ हम दोनों की जंग जारी थी. ये बात मुझे थोड़ी खली की ये सब नहीं होना चाहिए था. अब 4 महीनो बाद, वो दोबारा कुछ जगह एक्टिव है और शायद उन ग्रुप्स के भी मेम्बर बन चुके है. मेरी शुभकामनायें उनके साथ है...साथ ही उनका शुक्रिया जो मै ये तीन कहानियाँ लिख पाया. :)

Enjoy this 5000 word epic!

Mohit Sharma· · · June 19 at 9:14 PM
ये कहानी आप लोगो के लिये... :)

सोच

श्यामा-पुर क़स्बा उत्तर-प्रदेश के आम कस्बो की तरह एक जिंदादिल और विरोधाभासो से भरा क़स्बा था...वहाँ एक किशोरों का एक स्कूली दल तय जिनका नजरिया भोजपुरी फिल्मो के काफी प्रभाव मे था...हालाकि, वैश्वीकरण बढ़ने से उनके पास अब और भी भाषाओ मे अनेक मनोरंजन के साधन थे पर उनकी रूचि अभी भी भोजपुरी साहित्य, सिनेमा मे थी जिसके लिए उन्हें अपने बाकी सहपाठियों, नुक्कड़-गली के युवको से सराहना मिलती थी...और मिलनी भी चाहिए क्योकि अपनी स्थानीय कला की कद्र होनी बहुत ज़रूरी है. बस उस अच्छे दल की एक ही कमी थी की उनका एक सदस्य सुमन...अपने मत, बात, सोच, बात, विश्वास और निष्कर्ष के विपरीत या अलग किसी और की सोच या बात को सिरे से नकार देता था...किसी मुद्दे के दूसरे पहलु जैसे उसके लिये थे ही नहीं.... जिस वजह से कई बार उस दल की बेवजह छोटे मुद्दों दूसरो से और आपस मे बड़ी बहस हो जाती थी.

शहर से वहाँ के एक मेनेजमेंट कोंलिज मे नया सत्र शुरू हुआ और नए लड़के आये...एक दिन कुछ मेनेजमेंट छात्र चाय की दूकान पर फिल्मो पर ही बातें कर रहे थे ये जगह-जगह की फिल्मो का एक तुलनात्मक मुद्दा था....पास ही अपना स्कूली दल भी नाश्ता कर रहा था. सुमन भी इस बहस मे आ गया और फिर दोस्ती का फ़र्ज़ निभाते हुए उसके दोस्त भी उसका साथ देने लगे...उनका भोजपुरी सिनेमा का ज्ञान अच्छा था पर बाकी जगहों के सिनेमा पर उनका ज्ञान सीमित था...हालाकि, ज्ञान तो मेनेजमेंट के छात्रो को भी पूरा नहीं था पर वो किसी बात या फिल्म, अभिनेता का वर्गीकरण नहीं कर रहे थे. सुमन की वजह से ये तुलनात्मक बहस अपने मुद्दे से भटक कर भारत की कमजोरी और भारतियों की खुदगर्जी, कामचोरी, आदि पर आ गयी. कुछ बड़े "भाईयो" ने उसको कई तरह से समझाने की कोशिश की पर वो हर बार बात को घुमाकर खुद को सही साबित करने पर तुला रहा...साथ ही उसकी एक और कोशिश थी की बहस मे आखरी बात उसकी ही रहे चाहे वो कितनी भी बे सर-पैर रहे...ताकि उसके साथियो, बाकी लोगो और बहस करने वालो के सामने वो ऑफिशियल विजेता रहे. आखिर मे उसे कुछ न सूझा तो उसने प्रश्न कर डाला (ये उसका आखरी दांव था..जिसमे उसको हमेशा सफलता मिलती थी)

"आप होते कौन हो मुझे सही-गलत ठहराने वाले?"

जवाब आया..

"सही कहा..इस दुनिया मे "ओवरआल" कोई सही-गलत नहीं होता...पर कुछ बातों मे किसी एक व्यक्ति का ज्ञान दुसरे व्यक्ति से ज्यादा होता है जबकि कुछ मे दूसरे व्यक्ति का पहले से और जिसको उस बात मे ज्ञान या अनुभव ज्यादा होता है वो लगभग हमेशा सही होता है...अब जैसे मैंने मुंबई मे रहकर कुछ साल झोलाछाप टेली-फिल्मो, आदि मे काम किया है और बचपन से फिल्मे चाहे वो किसी भी भाषा की हों हमारी दीवानगी रही है...यहाँ मेरे कुछ दोस्त थेयटर से भी जुड़े है जहाँ वो अभिनय के अलावा रिसर्च, लेखन आदि कामो मे भी लगे है."

सुमन का हाल ऐसा था की जैसे विराट कोहली बड़े कांफीडेंस से केन्या के खिलाफ मैच से पहले प्रेस कांफरेंस सेंचुरी का दावा करके आया हो और क्रीज़ पर आते ही थोमस ओडोयो की बोल पर क्लीन बोल्ड हो गया हो...उसका दांव हर बार चलता था अब क्या हुआ. उसने फिर बात घुमाई..अपनी गाडी चलाई पर कुछ मेनेजमेंट छात्रो मे इतनी सेहनशीलता कहाँ थी....फिर जो धुलाई शुरू हुई उसकी...स्कूल के पास सारा बना-बनाया स्टारडम दमक गया...उसके चक्कर मे उसके दोस्त भी नप गए.

इस से ये निष्कर्ष निकलता है की हमे दूसरो की सोच का सम्मान करना चाहिए. साथ ही अपनी सोच का दायरा बढाने के अलावा किसी मुद्दे, बात का अपने निष्कर्ष, अनुभव और सोच के हिसाब से वर्गीकरण नहीं करना चाहिए क्योकि दुनिया बहुत बड़ी है...

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Shekhar Srivastav · · June 20 at 12:10 AM
कहानी कृपया सभी पढ़े टाइटल
"भ्रम " ;-
"एक छोटी सी दीवार पर रेगने वाली छिपकली जिसके घर के बगल में एक बहुत बड़ी नदी थी वो हमेशा अपने आँगन में ही रमता था मस्त और अपने चारो दीवारोमे अपनी तारीफ की पूल लिखता फिरता था तरह तरह के कलि -ग्राफी, कलि दीवाना , फलाना धमाका आदि इत्यादि , वो नदी को दूर से ही देखता था क्युकी वहा वो जा नहीं सकता था क्युकी उसके पास अल्प ज्ञान था जिसे अर्ध ज्ञान कहते है , वो हमेशा से दूसरो की नक्कल करता था , उसके आस पास मंडराते उसके कथित दोस्त लोग उसको राजा कहते थे यह सुन वो फुला न समाता था वो हमेशा दूरबीन से नदी की और देखता था वहा नदी में उसको अनेको मगरमच्छ दिखाई देता था , कभी वो नदी की ओरदेखता तो तो कभी आइनेमे अपने को देखता चुकी दूरबीन से चीज़े छोटी दिखाई देती है इसलिए सभी मगरमच्छ उसे अपनी तरह ही लगता और वो भी अपने को नदी का राजा समझता था ..!!!

भले ही सभी दोस्तों उसको नदी का राजा कहते थे पर मन ही मन सब लोग उसकी हंसी उड़ाते थे, पर वो अर्ध ज्ञान हमेशा यही सोचता की वो भी नदी का राजा है , एक बार एक साधू अपने ही धुनमे राम राम करते हुवे उसके घर के बगल से नदी की तरफ जा रहा था , छिपकली को यह बात नागवार गुजरी की एक छोटा सा साधू उसको बिन देखे उसकी अवहेलना करके जा रहा है उसने साधू को रुकने को कहा ....!!!
उसकी बात सुनकर साधू रुक गया फिर उसने पूछा भाई क्या बात है..? छिपकली ने अपनी छाती फुलाते हुवे बड़े गर्व से पूछा ऐ कहा जा रहे हो ? साधू ने कहा नदी की ओर यह सुनकर छिपकली ने फिर गर्व से कहा उस नदी का मैं राजा हूँ मुझसे इजाजत लेकर ही तुम नदी पे जा सकते हो उसकी बात सुनकर एक बार तो साधू को हंसी आ गई , उसको हँसता देख उसके अगल बगल के दोस्तों ने साधू से कहा " अबे हंस क्यों रहा है बे नहीं जानता की यह कौन है साधू ने कहा नहीं बिलकुल नहीं आप ही बता दो भाई यह जनाबे आली कौन है ..........राजाओ के राजा , शहंशाहओ के भी शहंशाह श्री श्री श्री छिपकली महाराज जो तुम नदी देख रहे हो न वहा पे रहने वाले सब मगरमच्छ इनको जानते है और मानते है यह सुनकर छोटी सी छिपकली की छोटी सी छाती पर हवा भरने लगी वो और छाती फुलाते हुवा अपनी गर्दन ऊँची करके गर्वीली मुस्कान होंठो पे लिए मंद मंद मुस्कुराता रहा ,

छिपकली के हाथो दूरबीन को देखते ही साधू को सारा माजरा समझ में आ गया उसने ने बिना कुछ कहे नमस्कार करते हुवे वहा से चल दीया फिर अपनी ही धूनमे मगन होकर राम राम करते हुवे वो नदीसे लौट रहा था रस्तेमे साधू ने देखा की छिपकली के घरके आगे वाली रस्तेमे एक छोटी सी डोरी रस्ते को रोक रखी थी, डोरी इतनी छोटी थी की जो कोई भी उसे लांघ कर बड़ी आसानी से जा सकता था जैसी ही साधू रस्सीकी निकट पंहुचा उसको कुछ खुसर फुसर की आवाज सुनाई दी , साधू खिड़की झाँक कर देखने लगा , उसने देखा छोटा सा छिपकली गरुए वस्त्र धारण करके राम राम करते हुवे साधू का नक्कल कर रहा था , साधू को हंसी तो बहुत आई फिर बड़े जोर से अपनी हंसी छिपा कर वो डोरी के रस्ते से न होकर दूसरी रस्ते से जाने लगा फिर कुछ बात सोच कर साधू फिर उसी डोरी को लांघते हुवे अपने रस्ते चल दिया , अब आप ही बताइए छोटी सी छिपकली की एक छोटी सी सोच यह थी की साधू अब वापस जा नहीं पायेगा डोरी रास्ता रोक लेगी , साधू दुसरे रास्ता भी जा सकता था लेकिन साधू ने ऐसा नहीं किया उसने जान बुझ कर ही डोरी तोड़ते हुवे उसी रस्ते को गया क्युकी उसने निश्चय कर लिया था की वो छिपकली के सारे भ्रम तोड़ देगा ......!

भाइयो नदी सभी के लिए बनी है जो भी जाके प्यास बुझा सकता है और अर्ध ज्ञान और भ्रम यह दो चीज़ हम सभी के लिए बहुत ही घातक है इनसे सभी को बचना चाहिए ......!!
अब ये देखना बड़ा रोमांचक होगा की कब छोटीसी छिपकली फिरसे साधू की नक्कल करते हुवे अपनी राम राम कहानी बताएगा ...!!!
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Mohit Sharma.....june 23  6:10 pm
साथियो, मै ये कहानी लिखना नहीं चाहता था पर फिर मैंने खुद से और कुछ बंदो पूछा की क्या मै इस मामले मे गलत हूँ...जवाब मिला नहीं, तो ये एक जवाबी कहानी लिख दी...जो लोग इस चीज़ को शुरुआत से देख रहे है शायद वो ही समझ पाये...वैसे तो भैंस के आगे पीपणी बजने से कोई फायदा नहीं और मै व्यस्त भी हूँ पर अगर टाइम मिला तो और दिल ने कहा तो ये कड़ी आगे बढ़ाउंगा...

Suplex -

विभोर एक युवा उद्योगपति होने के साथ-साथ एक शोकिया पहलवान भी थे....एक ड्रॉप आउट मेडिकल छात्र होने के कारण वो अपने एक प्राइवेट अस्पताल मे वो काफी रूचि लेते थे.

योगी जी - "तुम पागल कुत्ते हो!!!"

"हाँ योगी जी, बिलकुल बल्कि मुझे रेबीज़ और खुजली भी बहुत होती है..."

विभोर - "क्या केस है डॉक्टर पियूष? (पेशेंट की तरफ इशारा करते हुए) आप टिपिकल सुनील शेट्टी की तरह लार क्यों टपका रहे है...."

डॉक्टर पियूष - "इस बंदे की कुछ सेट सोच, फिलोसोफी है....उसके बाहर की हर बात और उसको सोचने वाला इंसान इसके लिए बेकार है. अब दिक्कत ये है की दुनिया इतनी बड़ी है की वहां अनगिनत निष्कर्ष, सोच और बातें सामानांतर चलती है...बस यही बात इनको समझ नहीं आती..."

विभोर - "तो ऐसे तो कई लोग है दुनिया मे जिनको अपनी बात, सोच ऊपर रखने की आदत होती है..."

डॉक्टर पियूष - "ये..एक्सट्रीम केस है, सर. पहले-पहल तो आम इंसान ही लगता है फिर अगर इसकी बात या आइडियोलोजी न मानी जाये तो भड़क जाता है...आक्रामक हो जाता है...इसने अपनी एक दुनिया बना ली है जिसमे ये एक योगी है जिसको परम-ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी है.....इनके दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं पड़ना चाहिये...जो ये कहे उसको एंकरेज करते रहिये...बस इनकी बात मत काटिए...शायद अब तक ये ऐसे हो माहौल मे रहा है जहाँ इसको खुश रखने के लिए इसको कभी टोका नहीं गया और उस बात को इसने गलत तरीके से ले लिया...आज मुझे पागल कुत्ता बताया है...और अब आप आये है तो...."

योगी जी - "छिपकली..."

विभोर - "...हुँह एंकरेज....हाँ..योगी जी मै एक कटखनी, बदतमीज़ और निहायती मोटी छिपकली हूँ.....कमोडो ड्रेगन...जो ठुमक-ठुमक के चलती है वो वाली.."

योगी जी - "रुक..तूने भी पानी गिलास से पिया...तू मेरी नक़ल करता है...पहले मै लेख लिखता था, कहानियाँ तबसे अख़बार वाले, बाकी लोग भी लेख-कहानियाँ लिखने लगे...मेरी नक़ल करके पैसा बनाने लगे.... "

विभोर - "इसको नक़ल नहीं कहते...अगर आपकी लिखी थीम या आइडिया जैसा कोई लिखे तब उसको नक़ल कहते है....यार इनको एक शब्दकोष लाकर दो..."

डॉक्टर पियूष - "नहीं! सर, एंकरेज कीजिये....एंकरेज..."

विभोर - "....ओह! माफ़ कीजिये योगी जी....हाँ मै तो जबसे इस कमरे मे आया हूँ तबसे आपकी नक़ल कर रहा हूँ ताकि आप जैसा महान बन सकूँ....बल्कि आप साँस ले रहे है...पलके झपका रहे है...उन सबकी यहाँ आने वाले लोग नक़ल करते है..."

योगी जी - "ओये...मोटी छिपकली..तुम्हारा प्रोफेशन क्या है..."

विभोर ने योगी जी का मन बहलाने के लिए अपने बारे मे बताना शुरू किया..उसको लगा की वो थोड़ी देर योगी जी का मन बहला देगा....जिस से उनके दिमाग को थोडा सुकून मिलेगा...

विभोर - "मै मोटी-छिपकलियों की पहलवानी लीग मे हूँ...मेरा पसंदीदा मूव है सुप्लेक्स (Suplex)..."

योगी जी - "चुप....सुप्लेक्स-वुप्लेक्स कुछ नहीं होता...सिर्फ D.D.A. (Dehli Development Authority) का डुप्लेक्स (Duplex) होता है जिसमे मै रहता था..."

वार्ड बॉय - "सर, मेडिसिन और इंजेक्शन का टाइम हो गया है..."

योगी जी - "ओहो...बार डांसर...नाच..."

डॉक्टर पियूष - "हाँ...नाचो..नंदू...नाचो..एंकरेज..."

वार्ड बॉय - "भक...ये योगी का बच्चा कभी कुछ बना देता है कभी कुछ...कल फायर ब्रिगेड कर्मी बना दिया और आपने इसको "एंकरेज" करने के लिए मुझे इस 5 मंजिल के बाहर खिड़की के कमज़ोर छज्जे पर खड़ा करवा दिया...अरे..इतना रिस्क तो असली वाली फायर ब्रिगेड वाले भी नहीं लेते होंगे...आज बार डांसर..अरे मेरी भी कोई सेल्फ रेस्पेक्ट है...और इसकी आदत मै जान गया हूँ....अभी नाचने को कह रहा है...फिर फीलिंग मे आके नोट फेंकता हुआ कपडे भी उतरवा देगा...मै नहीं नाचूँगा...वैसे भी फटे कच्छा-बनियान देख कर आप लोगो को ही शर्मिंदा होना पड़ेगा......आप एक डॉक्टर है ये बात मनवाने के लिए हम हॉस्पिटल के लोग जमा हुए तो उस दिन हमको आपका चेला और आपको तमराज किलविष बताकर घूमते हुए फक-फक-फक-फक...करके आवाज़ निकालने लगा और सॉरी शक्तिमान कहने पर ही शांत हुआ.....इसको आप ही संभालो..."

डॉक्टर पियूष - "अब तो आपको ही मदद करनी पड़ेगी, विभोर जी."

योगी जी - "तूने मेरी नक़ल वाली बात काटी थी ना...मोटी छिपकली....मै तुझे नहीं छोडूंगा..."

डॉक्टर पियूष - "देखा...मैंने कहा था ना..आपने ध्यान बंटाने इतनी कोशिश की पर इनका ग्रामोफोन तो उसी धुन पर बजता रहेगा ना...."

योगी जी आक्रामक हो गए...हाथ-पैर-मुंह...सब चलने लगे...काफी देर सँभालने के बाद जब बात नहीं बनी तो मोटी-छिपकली...(ओअफ...बताओ नरेटर भी गया...ही-ही...) मेरा मतलब विभोर ने योगी जी को पकड़ा और...दिया एक इंवरटिड धोभी-पछाड़...

विभोर - .....योगी जी इसको कहते है सुप्लेक्स....

योगी जी अचेत से हो गए..

डॉक्टर पियूष - "...बहुत गेर-जिम्मेदाराना रवैया है यह....भला कोई किसी पेशेंट के साथ ऐसा करता है...ये क्या किया आपने?"

विभोर - "परम-ज्ञानी योगी जी को परमआनंद की अबुभुती करायी...जो वो डिजर्व करते है...और सुप्लेक्स और डुप्लेक्स का अंतर प्रेक्टिकलि समझाया..."

*Jai Shri Hari !!*
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Shekhar Srivastav................June 23 at 10:31pm

देखा आप लोगो ने कैसी भाषा इस्तेमाल हुई है. देखा... मैं कुछ नहीं कहूँगा भाइयो शायद यह मेरा आखरी पोस्ट होगा उस नासमझ के लिए जिसे खुद पता नहीं वो सही है या गलत , जानने के लिए दूसरो से पूछना पड़ता है हा हा हा हा हा हा

उसने खुद अपना जवाब अपने लेख में लिख दी है, मैं अपनी उर्जाका इस्तमाल अब इस सस्ते चीजमे नहीं करूंगा .......!!!
उस नासमझ की भाषा पर जरा ध्यान दीजियेगा ...... !!!

कितनी छोटी सोच है उस बेचारेमे, पहले गुस्सा आता था , फिर हंसी , अब दया आ रही है .......!!

यह मेरा आखरी पोस्ट है , मैं नहीं समझता की वोह इस काबिल है की उसके बारे मैं ००००००.१ सेकंड भी सोचु ...!

"उसके बारेमे सोचने का मतलब होगा अपने सोच को "अपमान " करना और मैं अपनी सोच को हमेशा से " इज्जत " करता आया हूँ ..!!

बचपनमे हम लोगो ने एक कहानी पढ़ी थी शायद आप लोगो को याद होगा " साधू और बिच्छु "

एक बिच्छु पानी में डूब रहा था , यह देख एक साधू उसे बचाने के लिए अपने हथेली से उसे बाहर निकालता है बिच्छु साधू को डंक मारता है , दर्द के मारे साधू के हाथ से बिच्छू छुट जाता है, हर बार साधू बिच्छु को हथेली से उठाता, हर बार बिच्छु उसको डंक मारता येही कर्म साधू बार बार दोहराता , यह देख वह बैठे आदमियों ने साधू से कहां , अरे भाई साब इसको छोड़ दो यह आप को घायल कर रहा है , क्यों बेकार में यह सब कर रहे है रहे है , दो चार लोग इस चीज़को बड़ी चाव से देख रहे थे ,

शायद उनलोगों के यह देखना मज़ा आ रहा था लेकिन साधू ने उनसब पर ध्यान नहीं दिया और अपने कर्म करता रहा और आखिरमे उसने बिच्छु को पानी से बहार निकाल ही लिया " तब उसने उन सब पर पलट कर देखा और कहा
"बिच्छु की आदत है डंक मारना , वो उसका कर्म है और साधू का कर्म होता है, धर्म करना
जब एक छोटा सा जिव दीमाग न होकर भी जब वो अपना कर्म नहीं छोड़ रहा है तो भाई मैं तो एक दीमागवाला इंसान हु और वो भी साधू , तो भाई मैं क्यों अपना कर्म , धर्म छोड़ दू ..!!
उसने वोही किया जो उसका आता है और मैं वही करूंगा जो मुझे आता है...!!!

"बड़े बड़ाई ना करे , बड़े न बोले बोल
रहिमन "हीरा" कब कहे "लाख टका" मेरा मोल .........!

जो "बड़े" को "लघु " कहे , नहीं रहीम " घट " जाए
"गिरधर" " मुरलीधर " कहे " कछु दुःख " मानत नायी , रहीमा " कछु दुःख " मानत नायी .......!!

"ज्ञानीसे " कहिये कहा कहेत कबीर " लजाये "
"अंधे " आगे नाचते "कला अकारत" जाये कबीरा " कला अकारत " जाए .......!!

ऐसी " बाणी " बोलिए " मन का आपा " खोये
" औरो को शीतल " करे " आपहु शीतल " होए कबीरा " आपहु शीतल होए " .............!!!


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Mohit Sharma· · · 29 JUNE near New Delhi, Delhi.

Friends, is story feud ko aage badhate hue ye ek aur kadi hai. Kaisi lagi ye zaroor bataiye. :) Mera message bhi saaf hai isme...mai request karunga ki is story feud ki sabhi kahaniyan dono taraf ki koi banda save kar le...

The End of Social Man (Trendy Baba Series)

स्थान - कौशाम्बी मेट्रो स्टेशन

समय - रात के पोने बारह बजे.

एक आकृति स्टेशन परिसर के बाहर की सड़क पर कुल्हाड़ी लेकर खड़ी थी..

ऑटो ड्राईवर - "हाँ भई..आनंद विहार..आनंद विहार...आनंद विहार..."

आकृति - "ना भई...नहीं जाना...नहीं जाना...नहीं जाना.."

ऑटो ड्राईवर सर हिलाता, दो-चार शीतलता प्रदान करने वाले शब्द कहकर चला गया और अँधेरे मे वो आकृति कंक्रीट के मोटे खम्बे पर ताबड़तोड़ कुल्हाड़ी चलाने लगी...किसी उंघते मेट्रो सफाई कर्मचारी ने पुलिस को सूचना दी...और कुछ ही देर मे आ गयी एक पुलिस जिप्सी कुछ तोंदू सिपाहियों और अपनी त्वचा की लिमिट तक फूले विशालकाय फुटबाल रुपी सब-इंस्पेक्टर तनवीर सिंह को लेकर..

तनवीर - "ओ भाई..काम ना है कोई तन्ने..या जादा टेंशन घुस री है तेरे मे..जिस रेट से तू कुल्हाड़ी चला रहा है और जैसी तेरी जीरो फिगर वाली बॉडी है…. उसमे तो आधे घंटे मे ख़त्म हो ले गा तू....रुक जा ताऊ....बता क्या नाम है थारा..क्यों कर रिया है यो सब?"

वो आकृति - "म्हारा...मेरा नाम है महाशक्ति कपूर...ये मेट्रो रूट गलत बना है...मै इसको सही करूँगा..मेरी सोच के हिसाब से होना चाहिए ये...देखो कितनी भीड़ रहती है...सब गलत है..तभी पिछड़ रहा है हमारा देश...बाकी सबकी सोच जो गलत है..मेरी विचारधारा, मेरा द्रष्टिकोण, मेरी नीतियों पर ये देश चले तो ये एक महाशक्ति बन जाएगा मेरी तरह...तुम सब बेवकूफ और नासमझ हो जिनकी वजह से हमारा देश दुसरे देशो से पिछड़ रहा है...देखो कितने मोटे हो तुम..घूस खा-खा के...शर्म करो...बेगैरत!!"

तनवीर - "देख भई...सुपरशक्ति कपूर...तेरे जैसा महा-सेक्सी तो कभी ना बने ये देश..मै भगवान् से यही मनाऊंगा..मेरे हरयानी स्टाइल से तेरा टेम्पर बढेगा..तुझे प्लेन हिंदी मे समझाता हूँ...पुलिस मे आने से पहले मैंने सिविल इंजिनियरईंग की थी...वहाँ मेपिंग, सर्वे, रुट्स, आदि के बारे मे पढाया गया था...कोई भी पब्लिक काम होने से पहले आबादी, भविष्य, नक़्शे, सड़क, सुविधाएँ, ज़मीन, आदि के हिसाब से पूरा सर्वेक्षण और जांच होती है जिसके हिसाब से ही ये मेट्रो लाइंस बिछायी गयी है...अगर ऐसा ना होता तो अव्यवस्थित लाइंस मे ये भीड़ और अधिक होती..साथ ही जनसाधारण को और सरकारी सुविधाओं जैसे पानी की लाइन, रोडवेज, मे भी दिक्कतें आती....अब दिल्ली और आस-पास के इलाको की आबादी का घनत्व ही 4000 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर है कुछ इलाको मे तो ये 15,000 पार है...इतने सीमित क्षेत्र मे इतने लोग होंगे तो भीड़ तो बढती ही जायेगी...हाँ, और मेट्रो लाइंस बन रही है और धीरे-धीरे स्थिति सुधर रही है पर लोगो को भी जनसँख्या पर काबू करना, पब्लिक सुविधाओं और सामान का सलीके से उपयोग करना अपनी ज़िम्मेदारी की तरह समझना होगा...अब हर घर मे सरकार नहीं घुसती...नियम मनवाने के लिए...तुम्हारी सोच की तरह यहाँ करोडो सही-गलत सोच है लोगो की..इस वक़्त तुम्हारी सोच और गली के कुत्ते की शोच मे ज्यादा अंतर नहीं लगता मुझे...अगर इतनी ही मिर्ची लगी है तो किसी बड़े स्तर पर जाकर बदलाव लाओ.."

महाशक्ति कपूर - "देखा..देखा..इस आदमी के शब्द देखे तुम लोगो ने..कैसी भाषा प्रयोग कर रहा है ये...कैसे वाक्य बोलता है ये..देखा..देखा.."

हवलदार - "तन्वील सल, आप्टे चलन कहाँ है...किन्ना प्याला बोलते हो आप...ओल तू महासस्ती धतूर अपने उपल वाला संटेंस देख तुने ही शुलू किया था...हम सबको बेवतूफ़, बेगेलत, नासमझ बोल के..."

तनवीर - "तुम मत झुको हवलदाल..आई मीन..हवलदार..ढलान है गिर गए या फिसल गए तो लुडककर सीधे गाज़ियाबाद निकल जाओगे...और हाँ, कुछ लोग ऐसे होते है जिनको दूसरो की वाणी मे कटुता तो तुरंत दिखती है पर स्वयं बोलते वक़्त वो चाहे दूसरो को कुछ भी कहें...वो सब उन्हें महसूस ही नहीं होता क्योकि वो उनके लिए नहीं होता ना...अब जैसे मेरे बारे मे बिना जाने इसने मेरा वर्गीकरण कर दिया...जैसे पहले इसने इस देश का का वर्गीकरण किया था...मै मोटा इसलिए हूँ क्योकि मुझे थायराइड की समस्या है..अगर मै ये बोलोंगा की मै घूस नहीं लेता तो भी ये मानेगा नहीं क्योकि इसके दिमाग मे मीडिया ने भर रखा है की सब पुलिसवाले घूस लेते है...तो (शक्ति कपूर की पावर टू) जी आपसे बस इतना कहूँगा की सबकी सोच का सम्मान करना सीखिए हो सकता है कईयों की सोच मे आपसे बेहतर विकल्प हों...अपनी सोच के अनुसार लोगो का वर्गीकरण मत कीजिये और ये जो गन्दी-नाली की कीड़ी पुलिस है ना ये किसी दुसरे गृह के प्राणी नहीं है..ये भी समाज से ही पुलिस मे जाते है.."

महाशक्ति कपूर - "इसकी..इसकी..भाषा देखी....इसके शब्द सुने...कैसे-कैसे...वाकय..भाषा देखी इसकी तुम लोगो ने...ये..ये मेरी नक़ल करता है..नक़ल की है इसने बोलने और समझाने मे मेरी नक़ल.."

हवलदार - "सर, जिप्सी के वायरलेस से मेसेज आया है की आक्रामक और गेर-कानूनी तरीको से अपनी बात और सोच दूसरो पर थोपने वाला "सोशल मेन" (Social Man) नामक खतरनाक मानसिक रोगी पास के मानसिक अस्पताल से भाग निकला है...अब कहाँ ढूँढेंगे उसको..."

तनवीर - "अरे obvious..वो सामने तो खड़ा है..सुपर-शक्ति बना.."

हवलदार - "सर, इसकी कुल्हाड़ी पकड़ लो...मेरी तरफ आ रहा है..."

तनवीर - "हाँ, तो अपने पेट पर इसका वार ले लेना..तुम्हारे फेट की लेयर्स को कहाँ भेद पाएगी ये अदनी सी कुल्हाड़ी...हा हा...."

सिपाहियों ने सोशल मेन को किसी तरह पकड़ा..पर वो बुरी तरह संघर्ष कर रहा था..की तभी...

ट्रेंडी बाबा - "सुप्लेक्स (Suplex) ले लो....छोटे-बड़े-मोडिफाइड-इन्वर्टेड सुप्लेक्स वालेयाह....दर्द भरे सुप्लेक्स....दम घोटू हेडलोक़ (Head Lock) वालेइयाह...."

तनवीर - "रे बाबा जी...ये बड़ा फुदक रहा है..इसको दे दो..."

श्री श्री 1008.5 ट्रेंडी बाबा जी ने अपने खूबसूरत फिनिशिंग मुव्स से महाशक्ति कपूर को अचेत कर दिया और मंत्रमुग्ध हवलदार ताली बजाने लगे.

नरेटर - "ओफो!! ये ट्रेंडी बाबा कितनी फुटेज लेते है..बिना रोल के स्टोरी मे आ गए...भला ये भी कोई बात होती है.....तनवीर हीरो है इस कहानी का और लास्ट मे फिनिश देके सारा क्रेडिट ले लिया बेचारे का....कितने अनप्रोफेशनल है ये...आ..आ..नहीं...मुझे माफ़ कर दो ट्रेंडी बाबा...माफ़ी..हेडलोक़ मत दो...सांस नहीं आ रही..सुप्लेक्स नहीं..आ…"

ट्रेंडी बाबा - हे भगवन! सब तेरी माया है...मेरी तो बस सोनी..ओह! अहम...अहम...

समाप्त!!!!!

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