*) - कुछ खिलाडी असल रिकार्ड्स की जगह सिर्फ घरेलु, जूनियर्स लेवल और किवदंतियों का हिस्सा बनने के लिए दुनिया में आते है। हाँ...ये बात और है जिसने भी उन्हें खेलते देखा, वो उन्हें कभी भुला नहीं सका।
*) - जब फिटनेस थी तब अक़्ल का अकाल था। अब अक़्ल आयी तो शरीर पेट कटा ष सा हो लिया...भक!
*) - कहने को तो रजत पदक, कांस्य पदक से ऊपर माना जाता है पर मेडल सेरेमनी के बाद पता नहीं क्यों कांस्य पदक अर्जित करने वाले खिलाडी की नींद मिलीसेकेंड, आधे पॉइंट् को याद कर करवट बदलते रजत पदक जीतने वालो से गहरी होती है। सबसे बदतर स्थिति, सेमीफाइनल में आकर पदकरहित रहने वालों को तो भैया पूरे मोहल्ले की अनिद्रा एकसाथ लग जाती है।
*) - टीम के वर्ल्ड कप फाइनल में पहुँचने का ऐसा जश्न मनाया कि नाच-नाच में टीम के MVP का कंधा डिस्लोकेट हो गया और बाद में उसकी अनुपस्तिथि में कप हारे सो अलग। बन ली नचनियां?... ले ले कददू अब...हप!
*) - कल जो अपने प्रशंषको को अक्सर अपनी सिक्योरिटी से पिटवा दिया करता था, आज अपने धूमिल चर्चों के पुराने अख़बारों की कटिंग फेसबुक-ट्विटर पर बड़ी शिद्दत से स्कैन करके डालता है।
*) - एक औसत देश में पैदा हुआ विश्वस्तरीय खिलाडी अक्सर किसी विश्वस्तरीय (मापदंड देने वाले) देश में पैदा हुए औसत खिलाडी से हार जाया करता है।
*) - कुछ लोग अपने 5-7 प्रदर्शनों के बल पर सुपरस्टार्स बन जाते है जबकि कई पूरे करियर मज़दूरों की तरह तिनका-तिनका यश-सम्मान बटोरते है।
*) - इंसान के एक से अधिक पसंदीदा खेल होने चाहिए। अगर किसी खेल में निराशाजनक सीज़न चल रहा हो तो अन्य जगह से कुछ दिलासा सा मिल जावे।
*) - इस खेल में चोटिल होना आम बात है, पर बीच मैदान में उसकी चीत्कार बता रही थी कि वो चोट अलग थी। करियर का क़त्ल करने वाली विरल चोट!
*) - अगर वो 35 साल तक रिटायर होती तो महान खिलाडी कहलाती पर 42 वर्ष तक खेल को घसीट कर उसने अपने सर्वोत्तम रिकॉर्ड को साधारण बना डाला।
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