Artwork - Kedar Naik
पंखे की आवाज़ से ध्यान हटाकर मनोज कुछ महीनो पहले की अपनी मनोस्थिति सोच रहा था। तब गाँव से शहर आकर पढाई और सरकारी नौकरियों की प्रतियोगी परीक्षाओं तैयारी करना मनोज को जितना कठिन लग रहा था, असल में उतना था नहीं। यहाँ बने घनिष्ठ मित्रों, शिक्षको के सहयोग से मनोज का सफर कुछ आसान हो गया था। हालांकि, कुछ बातों में उसका मत और पसंद अपने मित्रो के समूह से अलग होते थे। अक्सर उसके दोस्त उसे मांसाहार खाने की ज़िद करते पर वह हमेशा उन्हें टाल देता। जब मनोज कहता कि उसने बचपन से नहीं खाया इसलिए खाने का मन नहीं होता तो उसके मित्र कहते कि "जीवन में कभी ना कभी तो कोई चीज़ पहली बार करते ही हो, यह भी कर के देख लो।" एक बार मनोज के मुँह से निकल गया कि वह पंडित है तो सब हँसते हुए बोले कि "अरे! आजकल पंडित ही तो सबसे ज़्यादा खाते हैं।" बहस करने और उसमे जीतने की मनोज को आदत नहीं थी। ऐसी कोई स्थिति आने पर वह असहज होकर वहाँ से निकलने के बारे में सोचता रहता था। उसके घर के माहौल और निजी मत के अनुसार मांसाहार वर्जित था। उसे यह बात खटकती थी कि जब वह अपने दोस्तों पर मांसाहार छोड़ने के लिए दबाव नहीं डालता तो वो लोग उसके पीछे क्यों पड़े रहते हैं?
एक दिन मनोज के मित्रों ने धोखे से उसे एक मांसाहार व्यंजन, पनीर-मशरूम की ख़ास डिश कहकर खिलाया। मनोज ने जब खाने के स्वाद की तारीफ़ की तो सबने उसका मज़ाक उड़ाया और बताया कि मांसाहार खाने के बाद भी वह इंसान ही है और उस में कुछ नहीं बदला। उस जैसे इंसान मांस खाते हैं और बिना किसी परेशानी के जीते हैं। मनोज को इस बात से बड़ी ठेस पहुंची और पर उसने मित्र मंडली के सामने अपनी निराशा नहीं जताई। समय बीतने के साथ सब आगामी एग्जाम की तैयारी मे जुट गए और एग्जाम होने के बाद मनोज ने सबको अपने कमरे पर आमंत्रित किया। मनोज तरह-तरह के व्यंजन लाया था और सबने बड़े चाव से दावत का मज़ा लिया। हालांकि, धोखे से मनोज मांसाहार खा चुका था पर उसने आज अपने लिए शाकाहार व्यंजन ही रखे। दावत ख़त्म होने के बाद मनोज बोला....
"बिरयानी के साथ कुत्ते का शोरबा, छिपकली की चटनी कैसी लगी?"
इतना सुनना था कि सबके कुत्ते वाले मुँह बन गए। पहले तो मित्रो ने विश्वास नहीं किया पर फिर मनोज की मुस्कराहट देख कर कोई उल्टी करने दौड़ा तो किसी ने मनोज का गिरेबान पकड़ लिया। मनोज ने अपने दोस्तों की टोन में जवाब दिया - "चिंता मत करो...कुत्ता या छिपकली चीन, म्यांमार, ताइपे देशो में इंसानो द्वारा खाये जाते हैं और इन्हें खाने के बाद भी तुम सब इंसान ही रहोगे, तुम्हारे अंदर कुछ नहीं बदलेगा।"
समाप्त!
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