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सन् 1848 अब के पूर्व उत्तर भारत के हजारो वर्ग मील मे फैले नागोर राज्य का राजा विन्धेव तत्कालिन ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत मे अपना राज फैला रहे अंग्रेजो और पडोसी राज्यों की साजिश का शिकार होकर मारा गया था. अब राज गद्दी पर आसीन था उनका युवा 19 वर्षीय पुत्र जयेश..
नागोर राज्य की ये रीत थी की 25 वर्ष के ब्रह्मचर्य पालन के बाद ही किसी व्यक्ति का विवाह होता था. अंग्रेजो और पडोसी राज्यों को यही सही मौका लगा जयेश की हत्या करके नागोर राज्य हथियाने का. क्योकि तब ईस्ट इंडिया कंपनी ने 'Doctrine of lapse' की निति अपना रखी थी जिसके तहत अगर किसी राज्य पर राज करने वाले राजा का कोई वारिस नहीं होता था उस राज्य को ईस्ट इंडिया कंपनी हथिया लेती थी. और जयेश का विवाह होने मे अभी 6-7 वर्ष लगने वाले थे. तब नागोर के कुछ मंत्रियों ने अपने मित्र और शांतिप्रिय राज्य उल्लासनगर जाकर वहाँ के रक्षक तिलिस्मदेव को सारी स्थिति से अवगत कराया और उनसे मदद मांगी.
तिलिस्मदेव समझ गए की ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियाँ समस्त भारत के विरूद्व है. उन्होंने पाताल लोक मे अपने राज्य नागलोक के सभी सर्पो को नागद्वीप भेजने का प्रबंध किया.....वो चाहते थे की सालो तक भारतवर्ष की रक्षा के दौरान कोई बुरे इरादों वाला शक्तिधारक नागलोक के अद्भुत सर्पो का गलत इस्तेमाल ना करे. तब तिलिस्मदेव नागोर की रक्षा करने लगे. और उन्होंने कई बार पडोसी राज्यों और अंग्रेजो की टुकडियों को खदेडा..... तब एक पडोसी राजा शीलनाथजो तिलिस्मदेव का रहस्य जानता था उसके गुप्तचरों ने उसे सूचना दी की नागलोक के सभी सर्प कहीं पलायन कर रहे है...शीलनाथ ने अपने गुप्तचरों को ऐसे किसी नाग से ये भेद लेने को कहा की वो कहाँ जा रहे है.....और जल्द ही शीलनाथ के सामने नागद्वीप का रहस्य खुल गया. तब शीलनाथ ने विषंधर के साथ मिल कर एक योजना बनायीं. विषंधर ने अपने विश्वासपात्र सर्पो की मदद सेनागद्वीप मे ये खबर फैला दी की धरती पर नागो के एकछत्र एकाधिपत्य के लिए नागलोक के सारे सर्प नागद्वीप पर हमला करने आ रहे है....पहले तो किसी नागद्वीप वासी ने इस बात को नहीं माना पर जब उन्हें समुद्र से नागद्वीप की तरफ आते नागलोक के हजारो नागो को देखा तो उनमे अफरा-तफरी मच गयी...नागलोक के सर्पो के नागद्वीप पर आते ही नागद्वीप के नागो ने उन पर बिना कोई मौका दिए हमला कर दिया और दोनों दल ये समझ कर एक दूसरे से लड़ने लगे की दूसरा दल धरती पर नागो का एकाधिपत्य चाहता है. तिलिस्मदेव तक ये बात पहुंची तो वे तुंरत नागद्वीप पहुंचे और नागलोक व नागद्वीप के सर्पो का घमासान रुकवाया. इस युद्ध मे दोनों दलो के हजारो नाग मारे गए. तब तिलिस्मदेव ने वहां दोबारा नागो की बस्ती बसवायी.
कुछ दिनों बाद जब तिलिस्मदेव नागोर राज्य लौटे तो उन्हें पता चला की पिछली ही रात उनकी अनुपस्थिति का फायदा उठाकर अंग्रेजो और पडोसी राज्यों के राजाओ ने जयेश की भी धोखे से हत्या कर दी और अगली सुबह वो अपनी सेना के साथ नागोर राज्य को हतियाने वाले थे. तिलिस्मदेव युवा शूरवीर राजा का मृत शरीर देख कर विषाद मे डूब गए. वो समझ गए की नागलोक और नागद्वीप के सर्पो मे युद्ध करवा कर उन्हें वहाँ जाने पर मजबूर करने की किसी की चाल थी जो उनके ना रहने पर जयेश को मारना चाहता था. जयेश की मृत्यु की खबर अभी नागोर की आम जनता तक नहीं पहुँची थी. अगले दिन अंग्रेज़ और पडोसी राज्य के राजा अपने दल-बल के साथ नागोर की तरफ बढे.....पर उनका रास्ता नागोर की सीमा पर नागोर की सेना और उसके राजा जयेश ने रोक लिया. वो सब जयेश को जिंदा देख कर हतप्रभ रह गए. फिर भी उनकी संयुक्त बड़ी सेना ने नागोर की सेना से युद्ध किया. जिसमे जयेश ने अपनी कुशलता से अपने दुश्मनों को हराया. दरअसल अब तिलिस्मदेव जयेश के शरीर मे आकर नागोर राज्य संभाल कर पूरे भारत मे अंग्रेज़ विरोधी अभियान चलाना चाहते थे जिस वजह से उन्होंने जयेश का शरीर चुना. इस से अंग्रेजो का Doctrine of lapse के आधार पर नागोर पर कब्ज़ा करने का विचार भी चला गया. इस तरह तिलिस्मदेव ने नागद्वीप और भारत के दुश्मनों के विरूद्व अपनी लडाई स्वयं शुरू की.
The End!
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