July 2009 (RC Forums, Website) *I later realized and reviews on website confirmed that this is more towards THS than Anthony....
सन् 1947 रूपनगर के पास जंगलों और समुद्र से सटे तटवर्ती इलाके मे दो बड़े स्थानीय कबीलों ने विद्रोह किया जिसके दमन के लिए कर्नल मार्क डिकोस्टा के नेत्रत्व मे 50 सैनिको वाली एक 'डूम पलाटून' को भेजा गया....उनका लक्ष्य था उस स्थान और कबीले मे ब्रिटिश राज को कायम करना.
पर लगभग उस ही हफ्ते इंग्लैंड की सरकार ने भारत छोड़ने की अपनी आधिकारिक घोषणा की. पर डूम पलाटून अपने मिशन के बीच मे थी जहाँ उन्हें भारत की स्वतंत्रता की जानकारी नहीं मिली. अंग्रेजो से चिढे बाकी कबीले भी डूम पलाटून को मिलकर ख़त्म करने मे उन दो कबीलों के साथ मिल गए. पलाटून को उम्मीद थी की उनकी मदद के लिए इंग्लैंड सरकार कुछ करेगी पर बड़ी घटनाओ के बीच ये बात दब सी गयी और डूम पलाटून के सारे सिपाही कुछ दिनों के संघर्ष के बाद मारे गए. कुछ दिनों बाद उन तटवर्ती इलाकों मे बसे कबीलों और जंगलो मे अजीब घटनाये होने लगी और वहां के सारे कबीले एक के बाद एक रहस्यमय तरीके से ख़त्म हो गए. कुछ महीनो बाद वहां रूपनगर से गुज़रती नदी की बाढ़ का ऐसा असर हुआ की वो पूरा इलाका जलमग्न हो गया जो समय के साथ धीरे-धीरे ठीक होता गया. बहुत सालो बाद रूपनगर का विस्तार करने को जगह ढूँढ रहे उद्योगपतियों और सरकार की नज़र उस तटवर्ती इलाके और जंगलो पर पड़ी...जंगल के कुछ हिस्सों की कटाई और निर्माण का काम शुरू हुआ.....जहाँ हजारो मजदूरों के सामने फिर से आई डूम पलाटून क्योकि वो अभी भी ब्रिटिश सरकार के आदेशानुसार उन इलाकों मे सिर्फ ब्रिटिश राज स्थापित करना चाहते थे. हजारो मजदूरों मे से कुछ को मार कर डूम पलाटून ने मजदूरों मे अपनी दहशत फैलाई और वहाँ आई बहुत सी निर्माण सामग्री से मजदूरों को ब्रिटिश कालीन इमारते बनाने का निर्देश दिया. उन्होंने मजदूरों और उनके मालिको मे कोई भेद-भाव नहीं किया और सभी से बंधवा मजदूरी शुरू करवायी.
क्या है डूम पलाटून -
*) - डूम पलाटून के सभी सैनिक अपनी लाल वर्दी मे है और उनका मुखिया है कर्नल मार्क डिकोस्टा.
*) - ये सभी 1947 मे रूपनगर के तटवर्ती और जंगली इलाकों मे मर चुके है.
*) - इनके हथियार इनकी पुरानी बंदूके है जिनकी गोलियां कभी ख़त्म नहीं होती.
*) - इस पलाटून को इंग्लैंड सरकार से आदेश मिला था की उन तटवर्ती और जंगली इलाकों मे ब्रिटिश राज दोबारा स्थापित हो ये आज भी उस आदेश पर चल रहे है और जो भी इनके रास्ते मे आएगा उसे ये मार देंगे.
*) - ये बिना थके सालो से उस इलाके की रक्षा कर रहे है और ब्रिटिश सरकार की मदद का इंतज़ार कर रहे है.
प्रिंस के सौजन्य से ये खबर कुछ ही देर मे एंथोनी तक पहुंची....और एंथोनी तुंरत रूपनगर के उस निर्जन इलाके तक पहुंचा जहाँ आज काफी हलचल थी. एंथोनी को डूम पलाटून की कहानी पता चली और उसका और डूम पलाटून का संघर्ष शुरू हो गया......ये संघर्ष अंतहीन सा लग रहा था....पर जल्द ही प्रिंस की खबर पर वेनू उर्फ़ सजा भी एंथोनी की मदद करने आ गयी. एंथोनी ने वेनू के तिलिस्म की मदद से डूम पलाटून को एक जगह बाँध कर उनपर एकसाथ ठंडी आग का प्रहार किया वो आत्मायें कुछ देर तड़पने के बाद गायब हो गयी. एंथोनी को लगा की समस्या सुलझ गयी और उसने वहाँ फसे ही लोगो को निकला और वापस रूपनगर शहर के मुख्य इलाकों की और चल पड़ा.
पर कुछ ही समय बाद उसे पता चला की उस जंगली इलाके के आस-पास बनी रिहाइशी कॉलोनियों मे डूम पलाटून अपना आतंक मचा रही है और वहाँ के लोगो को ज़बरदस्ती पकड़ कर जंगल मे अधूरे पड़े निर्माण को बनाने.....ऐसा इसलिए हो रहा था क्योकि उद्योगपतियों और सरकार ने जंगली इलाकों की काफी कटाई करवा दी थी जिस वजह से डूम पलाटून को वो कॉलोनियां भी अपने क्षेत्र का हिस्सा लगने लगी. एंथोनी फिर वहाँ पहुंचा और एक बार फिर से थोड़े संघर्ष के बाद डूम पलाटून गायब हो गयी.....ये सिलसिला चलता रहा. एक लडाई के दौरान एंथोनी के ये पूछने पर की सब ख़त्म हो जाने के इतने साल बाद भी डूम पलाटून वो क्षेत्र छोड़ कर जाती क्यों नहीं तो कर्नल मार्क डिकोस्टा का कहना था की उन्हें ब्रिटिश सरकार का आदेश मिला है......आखिरकार बहुत सोच-विचार के बाद एंथोनी दिल्ली से इंग्लैंड के दूतावास से कुछ ब्रिटिश अधिकारीयों को लाया और उनसे आतंक मचा रही डूम पलाटून को ये आदेश दिलवाया की वो अब किसी भारतीय को परेशान ना करे और ये क्षेत्र छोड़ कर पास ही समुद्र मे बने छोटे से निर्जन दहलवी द्वीप पर रहे.....डूम पलाटून ने तुंरत ही ब्रिटिश अधिकारीयों के आर्डर का पालन किया.
....डूम पलाटून आज भी दहलवी द्वीप पर 19 शदाब्दी के ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा कर रही है....क्या आप दहलवी द्वीप पर जाना चाहेंगे?
The End!
सन् 1947 रूपनगर के पास जंगलों और समुद्र से सटे तटवर्ती इलाके मे दो बड़े स्थानीय कबीलों ने विद्रोह किया जिसके दमन के लिए कर्नल मार्क डिकोस्टा के नेत्रत्व मे 50 सैनिको वाली एक 'डूम पलाटून' को भेजा गया....उनका लक्ष्य था उस स्थान और कबीले मे ब्रिटिश राज को कायम करना.
पर लगभग उस ही हफ्ते इंग्लैंड की सरकार ने भारत छोड़ने की अपनी आधिकारिक घोषणा की. पर डूम पलाटून अपने मिशन के बीच मे थी जहाँ उन्हें भारत की स्वतंत्रता की जानकारी नहीं मिली. अंग्रेजो से चिढे बाकी कबीले भी डूम पलाटून को मिलकर ख़त्म करने मे उन दो कबीलों के साथ मिल गए. पलाटून को उम्मीद थी की उनकी मदद के लिए इंग्लैंड सरकार कुछ करेगी पर बड़ी घटनाओ के बीच ये बात दब सी गयी और डूम पलाटून के सारे सिपाही कुछ दिनों के संघर्ष के बाद मारे गए. कुछ दिनों बाद उन तटवर्ती इलाकों मे बसे कबीलों और जंगलो मे अजीब घटनाये होने लगी और वहां के सारे कबीले एक के बाद एक रहस्यमय तरीके से ख़त्म हो गए. कुछ महीनो बाद वहां रूपनगर से गुज़रती नदी की बाढ़ का ऐसा असर हुआ की वो पूरा इलाका जलमग्न हो गया जो समय के साथ धीरे-धीरे ठीक होता गया. बहुत सालो बाद रूपनगर का विस्तार करने को जगह ढूँढ रहे उद्योगपतियों और सरकार की नज़र उस तटवर्ती इलाके और जंगलो पर पड़ी...जंगल के कुछ हिस्सों की कटाई और निर्माण का काम शुरू हुआ.....जहाँ हजारो मजदूरों के सामने फिर से आई डूम पलाटून क्योकि वो अभी भी ब्रिटिश सरकार के आदेशानुसार उन इलाकों मे सिर्फ ब्रिटिश राज स्थापित करना चाहते थे. हजारो मजदूरों मे से कुछ को मार कर डूम पलाटून ने मजदूरों मे अपनी दहशत फैलाई और वहाँ आई बहुत सी निर्माण सामग्री से मजदूरों को ब्रिटिश कालीन इमारते बनाने का निर्देश दिया. उन्होंने मजदूरों और उनके मालिको मे कोई भेद-भाव नहीं किया और सभी से बंधवा मजदूरी शुरू करवायी.
क्या है डूम पलाटून -
*) - डूम पलाटून के सभी सैनिक अपनी लाल वर्दी मे है और उनका मुखिया है कर्नल मार्क डिकोस्टा.
*) - ये सभी 1947 मे रूपनगर के तटवर्ती और जंगली इलाकों मे मर चुके है.
*) - इनके हथियार इनकी पुरानी बंदूके है जिनकी गोलियां कभी ख़त्म नहीं होती.
*) - इस पलाटून को इंग्लैंड सरकार से आदेश मिला था की उन तटवर्ती और जंगली इलाकों मे ब्रिटिश राज दोबारा स्थापित हो ये आज भी उस आदेश पर चल रहे है और जो भी इनके रास्ते मे आएगा उसे ये मार देंगे.
*) - ये बिना थके सालो से उस इलाके की रक्षा कर रहे है और ब्रिटिश सरकार की मदद का इंतज़ार कर रहे है.
प्रिंस के सौजन्य से ये खबर कुछ ही देर मे एंथोनी तक पहुंची....और एंथोनी तुंरत रूपनगर के उस निर्जन इलाके तक पहुंचा जहाँ आज काफी हलचल थी. एंथोनी को डूम पलाटून की कहानी पता चली और उसका और डूम पलाटून का संघर्ष शुरू हो गया......ये संघर्ष अंतहीन सा लग रहा था....पर जल्द ही प्रिंस की खबर पर वेनू उर्फ़ सजा भी एंथोनी की मदद करने आ गयी. एंथोनी ने वेनू के तिलिस्म की मदद से डूम पलाटून को एक जगह बाँध कर उनपर एकसाथ ठंडी आग का प्रहार किया वो आत्मायें कुछ देर तड़पने के बाद गायब हो गयी. एंथोनी को लगा की समस्या सुलझ गयी और उसने वहाँ फसे ही लोगो को निकला और वापस रूपनगर शहर के मुख्य इलाकों की और चल पड़ा.
पर कुछ ही समय बाद उसे पता चला की उस जंगली इलाके के आस-पास बनी रिहाइशी कॉलोनियों मे डूम पलाटून अपना आतंक मचा रही है और वहाँ के लोगो को ज़बरदस्ती पकड़ कर जंगल मे अधूरे पड़े निर्माण को बनाने.....ऐसा इसलिए हो रहा था क्योकि उद्योगपतियों और सरकार ने जंगली इलाकों की काफी कटाई करवा दी थी जिस वजह से डूम पलाटून को वो कॉलोनियां भी अपने क्षेत्र का हिस्सा लगने लगी. एंथोनी फिर वहाँ पहुंचा और एक बार फिर से थोड़े संघर्ष के बाद डूम पलाटून गायब हो गयी.....ये सिलसिला चलता रहा. एक लडाई के दौरान एंथोनी के ये पूछने पर की सब ख़त्म हो जाने के इतने साल बाद भी डूम पलाटून वो क्षेत्र छोड़ कर जाती क्यों नहीं तो कर्नल मार्क डिकोस्टा का कहना था की उन्हें ब्रिटिश सरकार का आदेश मिला है......आखिरकार बहुत सोच-विचार के बाद एंथोनी दिल्ली से इंग्लैंड के दूतावास से कुछ ब्रिटिश अधिकारीयों को लाया और उनसे आतंक मचा रही डूम पलाटून को ये आदेश दिलवाया की वो अब किसी भारतीय को परेशान ना करे और ये क्षेत्र छोड़ कर पास ही समुद्र मे बने छोटे से निर्जन दहलवी द्वीप पर रहे.....डूम पलाटून ने तुंरत ही ब्रिटिश अधिकारीयों के आर्डर का पालन किया.
....डूम पलाटून आज भी दहलवी द्वीप पर 19 शदाब्दी के ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा कर रही है....क्या आप दहलवी द्वीप पर जाना चाहेंगे?
The End!
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