(Picture - Bidholi, Dehradun)
नोट - इस कहानी का निरंतर कॉमिक्स की कालाबाज़ारी करने वाले और फिर भी कॉन्फिडेंस-अकड़ में रहने वाले जैसे इतिहास में प्राण कुमार शर्मा जी के बाद उन्ही का नाम आयेगा ऐसे बंधुओं से कोई संबंध नहीं है।
बहुत समय पहले की बात है कुछ राज्यों में कला से जुडी वस्तुओं का संग्रह का विशेष चलन था। महान कलाकारों की रची वस्तुओं को सभी पाना चाहते थे पर उनकी संख्या सीमित रह जाती जिसके चलते जगह-जगह अनैतिक कालाबाज़ारी शुरू हुयी। फिर राज्यों ने ऐसी तकनीक अपनायी जिसमें एक कला की अनेको नक़ल जनता के लिए उतारी जाती पर जनसँख्या अधिक होने के कारण थोड़े समय बाद कम मूल्य की वस्तुऍ उनसे कई गुने दामो पर बेचीं जाती।
प्रशासको ने जनता को धैर्य से वस्तुएँ संग्रह करने की सलाह दी और यह भी बताया की नए समय में असंख्य नए प्रतिभावान कलाकार कृतियों को बेचने के लिए आतुर है पर जनता को जैसे पुराने काल का मोह हो गया है, आवश्यक नहीं कि एक ख़ास तरह का संग्रह बाकी तरह के संग्रह से अच्छा या ख़राब हो। नयी-पुरानी कलाकृतियों का मिश्रित संग्रह भी एक अच्छी और सम्मानजनक बात है क्योकि आज जो नया है वह थोड़े वर्षो उपरांत पुराना होगा। वैसे भी धैर्य के साथ कुछ वर्षो में मनचाहा संग्रह बनाया जा सकता है पर कई प्रजाजन दूसरो से स्वयं को बेहतर दिखाने, रौब जमाने वर्षो के काम को कुछ महीनो में करने की ठाने थे इसलिए कालाबाज़ारी अब भी फल-फूल रही थी। अंततः सभी राज्यों ने बिचौलियों को चिन्हित कर उनपर 3 वर्षो का प्रतिबंध लगा, सभी को अपनी संयुक्त परिधि से बाहर निकाल दिया।
जो व्यक्ति अब तक पूरी तरह निर्भर होकर इसको एक व्यवसाय कि तरह चला रहे थे उनका गुज़र बसर कुछ अरसे तक अपनी बचत पर चला फिर उन्हें जीवन-यापन के लिए कुछ "असल" काम ढूँढना पड़ा। प्रतिबंध की अवधि उपरांत उनमे से अधिकतर अपने नए काम में लीन हो चुके थे। इस बीच कुछ ऐसे समूहों को बढ़ावा मिला जो बिना किसी लालच के एक-दूसरे का संग्रह बढ़ाने पर ज़ोर देते थे। तत्कालीन विचारको ने कहा कि आगे समय में प्रजा को ही प्रशासको का काम करना होगा और धैर्य रखते हुए ऐसे कालाबाजारियों को अनदेखा कर उन्हें कोई "असल" काम करने के लिए प्रेरित करना होगा।
- मोहित शर्मा (ज़हन)
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