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अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...
Saturday, April 20, 2013
आक्रोश को आंदोलन बनाइये!!
एक
बड़े राज्य का इंसाफ पसंद राजा था पर उसे एक अजीब श्राप था कि वो महीने के
आरम्भ में केवल 2 दिन जागे बाकी पूरे महीने सोता रहे। (इस बीच कोई उसे मार
नहीं सकता था) जब वो जागता था तो महीने भर के अपराधो में से कुछ बड़े और
विभत्स अपराधो पर सही फैसला सुनाकर न्याय करता था और फिर सो जाया करता था।
राजा को हमेशा ये भ्रम रहता कि उसके राज्य में न्याय होता है पर उस अधूरे
न्याय का क्या फायदा जो इतनी जनता में कुछ अभागो को ही देख पाये?
जब कोई विभत्स अपराध हो तभी क्यों जनता, सरकार, मीडिया कि नींद टूटती है?
और फिर उसको ले कर बैठ जाते है। गुडिया के दुष्कर्म की घटना से हम सब दुखी
है।
मै हत्या को बलात्कार से बड़ा अपराध मानता हूँ क्योकि
बलात्कार के बाद पीड़ित के पुनर्वास के आसार रहते है, दोबारा शुरुआत की जा
सकती है सही माहौल मिले तो पर हत्या के बाद नही। गुडिया काण्ड के बाद से
केवल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 73 हत्याएँ हो चुकी है, क्या उनके लिए
कोई मीडिया चैनल फरियादी बनेगा? उनमे से कितनो को इन्साफ मिलेगा? उनके
इन्साफ का क्या?
मानता हूँ करोड़ो कि आबादी और ऐसी राजधानी जहाँ
कुछ इलाके ऐसे भी है जहाँ एक किलोमीटर वर्ग मे 12000 लोग तक ठुंसे हों में
अपराध होंगे पर इस घटना विशेष गुस्से का क्या फायदा, अपने स्तर से आन्दोलन
शुरू कीजिये। उन स्वयं सेवी संस्थाओं का हिस्सा बनिए जो वाकई काम करती है,
सूचना के अधिकार के अंतर्गत अपने इलाके के पार्षद, विधायक, सरकारी
व्यवस्था एवम निजी संस्थाओं पर सवाल कीजिये, उन्हें बदलने पर मजबूर कीजिये
....ऐसे नींद से जागकर चिल्लाना और फिर सो जाना ठीक नहीं। आक्रोश को आंदोलन
बनाइये!!
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