मैंने लोगो को मलाल करते देखा है कि वो किन्ही कारणवश औरों के सामने अपना पक्ष ठीक से नहीं रख पाये, या अपनी बात नहीं समझा पाये और सामने वाला अपनी गलत सोच, बात, कुतर्क, उदाहरण आदि पर खुश होते हुए, यह सोचता हुआ आगे निकल गया कि वह सही था और उसे समझाने वाले या उसके विरोध में खड़े लोग गलत। अगर ऐसा कुछ दफ़े हो जाये तो अपने अभिमान में लोग यह तक मान बैठते है कि वो हमेशा सही होते है जिस कारण अक्सर वो विषय को पूरा समझना ही नहीं चाहते। ऑनलाइन जगत का जैसे-जैसे प्रभाव मानवीय जीवन पर बढ़ा है उसमे ऐसी बातें रोज़मर्रा की सी हो गयी है। बात यहाँ ख़त्म नहीं होती, वह व्यक्ति जो किसी विषय/विषयों पर अपनी सोच अनेक वर्षो से सही मानता और अमल में लाता आ रहा है उसको अगर कोई समझा नहीं पाता, या वह किसी की नहीं सुनता तो भी उसे समय द्वारा गहरा सबक मिलता है। अगर बात बड़ी है जिस से उसका लाभ या मतलब जुड़ा है तो सबक और बुरी चोट करके जाता है।
जैसे मेरे एक रिश्तेदार को लगता था कि संयुक्त परिवार में स्वर्ग है बिलकुल हम साथ-साथ है, हम आपके है कौन वाली छवि, साथ ही आजकल कि न्युक्लीअर फैमिलीज़ (एकल परिवार) कलियुग! लोगो ने समझाया कि जल्दबाज़ी ना करें थोड़ा और देख-समझ कर रिश्ता करें पर आँखें चकाचौंध तो लगी रही गौंद, और जल्दबाज़ी में उनकी लड़की का रिश्ता एक संयुक्त परिवार में हुआ। अब उस परिवार में भाइयों-उनकी पत्नियों और माता-पिता में छोटी-छोटी बातों में क्लेश, पैसो-संपत्ति पर विवाद, घर की मरम्मत से लेकर राशन की खरीद तक कोई पैसे नहीं खर्चना चाहता क्योकि वो तो "पब्लिक प्रॉपर्टी" हो जायेगी जो सब इस्तेमाल करेंगे। जिस स्तर पर उनकी पुत्री उनके साथ रह रही थी वह अब उस से काफी दयनीय हालत में किसी तरह समझौता करके रह रही है। इस दौर में सपनो के (या टेलीविजन, फिल्मो वाले) संयुक्त परिवार तब होते है जब आपकी आय और संपत्ति अच्छी-खासी हो ताकि ऐसी छोटी बातों पर रोज़ की झिक-झिक ना हो इसका मतलब यह नहीं कि बाकी संयुक्त परिवार सब बेकार और एकल परिवार बेहतर, यहाँ तात्पर्य यह है कि एक बँधे दायरे कि सोच में बड़े फैसले ना लें। चाहे मेरे रिश्तेदार अपने अहं के चलते खुद को अब भी सही कहें पर अंदर ही अंदर वो सच जानते है, उन्हें गहरी चोट के साथ सबक मिला जो अब उनके किसी काम का नहीं।
यह सिर्फ एक उदाहरण था जीवन में ऐसे छोटे-बड़े सबक लोगो को मिलते रहते है, कोशिश यह रहनी चाहिए कि हम ऐसी सीख मिलने से पहले संभल जाएँ। किसी के हित में उसे समझाने कि कोशिश करें अगर वह अड़ा रहे तो वक़्त और ईश्वर पर छोड़ दें और बाद में उसे चिढ़ाएं... :p :) (kidding)
- मोहित ट्रेंडी बाबा
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