"जीवन में कुछ भी मुफ्त का खाने वाले मुझे बिलकुल नहीं पसंद ! अरे मेहनत करो, संघर्ष करो दुनिया में, अपनी पहचान बनाओ।" नीतू ने पिकनिक में लंच करते हुए, यूँ ही डिस्कशन कर रही मित्रमण्डली के सामने अपने विचार रखे।
माहौल हल्का करने के लिए उसकी पुरानी बेस्टी सरिता ने कहा - "देखो मैडम को मुफ्त का खाने वाले नहीं पसंद और बातों-बातों में परांठे के एक कौर में ढक कर मेरा आचार ही गायब कर दिया।"
सबके चेहरों पर मुस्कराहट आ गयी पर बातों को समझने में समय लगाने के कारण ग्रुप की ट्यूबलाइट कही जाने वाली लड़की रीमा अब भी नीतू की बात का विश्लेषण करते हुए बोली - "पर नीतू तुम खुद भी तो कितना मुफ्त का खाती हो! तो दूसरो से शिकायत क्यों?"
सरिता - "लो बहनजी ने सिग्नल लेट तो पकड़ा ही आज गलत भी पकड़ा। तेरा बॉयफ्रेंड निगल लिया क्या नीतू ने फ्री में?"
रीमा ने सरिता को नज़रअंदाज़ करके नीतू से कहा - "देखो नीतू मैं हमेशा तुम्हे किसी समूह की ओट लिये देखती हूँ, उनकी सामूहिक साख या उनके इतिहास का सहारा लिए देखती हूँ। जैसे "मुझे गढ़वाली होने पर गर्व है", "प्राउड टू बी ए गर्ल", "ब्राउन पीपल आर द बेस्ट", "पक्की ठाकुर लड़की हूँ" और भी बहुत कुछ। ऐसा अकेली तुम नहीं करती, ये आम आदत है लोगो में। यह सब क्या है? जिन बातों पर हमारा बस नहीं, केवल हमारे जन्म से हमसे जुड़ गयी...उनपर गर्व या शर्म करने का क्या मतलब? कुछ गिनाना है तो अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियाँ, प्रतिभा, मेहनत से मिली चीज़ें गिनाओ, ऐसे समूह की आड़ लेकर खुद को महान घोषित करना भी अव्वल दर्ज़े की मुफ्तखोरी है।
कुछ देर के लिए बगले झांकती सहेलियाँ आज "ट्यूबलाइट" की चमक में फ़ीकी पड़ गयीं।
समाप्त!
मोहित शर्मा (ज़हन)
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