"क्या हुआ चौबे साहब, कुछ चिंतित लग रहे है?" तहसीलदार ने शहर के दानी उद्योगपति श्री लोमेश चौबे से पूछा।
चौबे जी ने गंभीर स्वर में कहा, "कुछ लोगो को शहर के रैनबसेरे, धार्मिक स्थलों आदि कहीं पर भी ठोर ठिकाना नहीं दिया जाता था उनके चाल-चलन की वजह से, ऐसे बेसहारा लोगो के लिए शहर में कुछ जगह शेड्स लगवाये थे।"
तहसीलदार उनके सामने अपने पॉइंट्स बनाते हुए बोला, "वाह! धर्मात्मा हो तो आपसा, जिनको सबने दुत्कार दिया उनके लिए आपने सोचा। वैसे कौन अभागे लोग हैं वो?"
लोमेश चौबे - "स्मैकिया-नशेड़ी-चरसी लोग, जो शेड्स लगवाये थे वहां लगे बाकी सामान के साथ बेच कर उन गधो ने उसका भी नशा कर लिया।"
यह बात सुनकर सहमे खड़े तहसीलदार की हँसी नहीं छूटी बल्कि पूरा ठहाका निकल गया। जो पॉइंट्स उसने चौबे जी की तारीफ़ करके बनाये थे उनसे ज़्यादा कट कर उसका अकाउंट माइनस मे चला गया। इधर चौबे जी की ज़मीन पर खुले आकाश के नीचे नशेड़ी लोट लगा रहे थे, ऐसी लोट लोग अपने बाप के यहाँ भी नहीं लगाते।
समाप्त!
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