"क्या अम्मा, कैसे हुआ यह?" सहानुभूति भरे स्वर में इलाके के नेता ने पूछा।"
"बस भईया भगवान की मर्ज़ी थी, उन्हें अपने पास बुला लिया।" बुढ़िया ने सुबकते हुए बताया।
गाँव में एक वृद्ध की प्राकृतिक मौत के बाद यह नेता और इसके गुर्गे वैसी ही तेज़ी से वृद्धा के पास पहुंचे जैसे किसी ख़ुशी के अवसर पर जाने कहाँ से किन्नर आ जाते है। यह पहला मौका नहीं था, इस से पहले इस गाँव और आस-पास के गाँवो में अनेकों जगह नेता जी ऐसी शोक की घड़ियों का हिस्सा बने थे।
नेता ने बात बनती देख काम जल्दी निपटाने का फैसला किया। "ओये सुदामा! अम्मा जी को पैसे दे और बॉडी को रखवा गाडी में तरीके से।"
अम्मा को ढाई हज़ार रुपये पकड़ा कर सुदामा एक खरीददार के जैसे हक़ से मृत शरीर की तरफ बढ़ा।
अम्मा संकोच से बोली - "बेटा ज़रा..."
नेता ने आदतानुसार बात काटी - "अम्मा, काका जी, मेरे भी पिता सामान थे। पूरी रीति से करेंगे उनका अंतिम संस्कार, अब कहाँ भागती फिरोगी इंतज़ाम के लिए बुढ़ापे में और यह पैसा सरकार दे रही है आपको, रख लो। यह तो आपका हक़ है।"
यह कहकर वृद्धा का आशीर्वाद लेते हुए टोली वहां से निकली।
नेता - "वाह! आज काम कितनी जल्दी हो गया, इस अम्मा की तरह बाकी सब नहीं मिलते घंटो झिक-झिक करते है। चल अब संभावली को मोड़ गाडी।"
एक जूनियर गुर्गा बोला - "नेता जी वहां लगातार पाँच किये है, किसी और गाँव चलते है।"
फिर इस टोली ने एक अलग गाँव में जगह छाँट कर मृत वृद्ध के गले में फंदा डाल के पेड़ से लटका दिया। अगले दिन तहसीलदार एवम बाकी अधिकारीयों को बताया गया कि एक और कर्ज़े में डूबे किसान ने फसल बर्बाद होने की वजह से आत्महत्या कर ली। वृद्धा के नाम पर मिले एक लाख रुपये का मुआवज़ा कुछ सरकारी अफसरों के साथ बाँट कर नेता एंड पार्टी ने बचे 50 हज़ार गटके और किसी दूर दराज़ इलाके में अगली मौत का इंतज़ार करने लगे। पर नेता अनुसार वो शरीफ था क्योकि कम से कम वो मुआवज़े के लिए लोगो के मरने का इंतज़ार तो करता था, नहीं तो कुछ जगहों पर ऐसे नेता बूढ़े, लाचार और बेसहारा लोगो की हत्या तक कर रहे थे सरकार से राहत राशि पाने के लिए।
समाप्त!
- मोहित शर्मा (ज़हन)
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