जून 2015 में एक बार फिर महाराष्ट्र में ज़हरीली शराब पीने के बाद कई लोग मारे गए और कई अन्य अंधे हो गए व कुछ की आंतें फट गयी। परिजनों के विरोध के बाद राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को 1 लाख रुपये देने की घोषणा की। पर जो अंधे हुए या जिसकी आँत फटी उनकी सहायता या पुनर्वास के लिए सरकार द्वारा कुछ नहीं किया गया। मृतकों के परिवारों से मेरी सहानुभूति है कि कुछ नियम, कानून और जागरूकता बढ़ा कर ये मौतें कम की जा सकती थी। इस विषय पर ये कटाक्ष काव्य। शब्द जानबूझ कर तीखें किये है, इनका बुरा मानें, इसको दिल पर ज़रूर लें - आवाज़ उठायें.....पर सही जगह!
जुग-जुग मरो बेटा!
रसमलाई क्या जलेबी भी लगे अब फीकी ,
जो शराब लखपति बनायें....
वो ज़हर नहीं अमृत सरीखी।
मलाल है क़ि पूरी क़ि पूरी क्रिकेट टीम को खड़ा क्यों ना किया,
फालतू में "हम दो, हमारे दो" स्लोगन को इतना seriously ले लिया।
जबसे ट्रेजेडी का मुआवजा बँट गया,
तबसे साला हर शराबी चलती फिरती FD बन गया।
अजीब देश है, शहीदो की विधवाएं पैसो के लिए कितनी दौड़ लगातीं है,
जबकि शराबियों के घर सरकार खुद चेक लेकर आती है।
जब लोगो को लाख का चेक मिलते देखा,
चौल का हर बूढा आशीर्वाद देता फिरता - जुग-जुग मरो बेटा!
जनता में अचानक समाजसेवा की जगने लगी है इच्छा,
गोद लेना चाहते है लोग पियक्कड़ यतीम बच्चा।
दहेज़ में कितना सामान मांग रहा है तेरा जीजा,
बिन आँखों के, फटी आँतों से Installment मे मत जी,
बाउजी कुछ पव्वे ब्लैक में लाएं है गटागट पीजा।
किसी करमजले का पेट फटा,
तो कोई धरती का बोझ सूरदास बना,
असली सपूत सिर्फ वो,
जो पिके सीधा शहीद हुआ!
- मोहित शर्मा (ज़हन)
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