कहानी लिखते समय कभी-कभी एक दुविधा का सामना करना पड़ता है। एक विचार को आधार बनाकर एक कहानी (या लेख) गढ़ी गयी। उस विचार से बहुत से अन्य बातें, विचार, उदाहरण और निष्कर्ष जुड़े होते हैं। अब लेखक के पास दो विकल्प हैं या तो केवल उस मूल विचार को उभार कर कहानी लिख दे या फिर उस विचार के साथ बढ़ती बातों को उस कहानी में शामिल करे। विचार को मुख्य आकर्षण की तरह प्रस्तुत करने में ये संशय नहीं रहता कि पाठक का ध्यान उस विचार पर नहीं जाएगा। साथ ही पाठक को कुछ नयेपन का अनुभव होता है। इसका मतलब ये नहीं कि मूल विचार से अलग कुछ लिखा ही ना जाए। ये कुछ वैसा ही है जैसे दवाओं या रसायनों को जलमिश्रित (डायल्यूट) कर उनका सही अनुपात बनाया जाता है। विचार को घटनाओं एवम किरदारों से इतना डायल्यूट किया जाए कि उसका प्रभाव बना रहे और वो अधपका ना लगे।
कथा में पूरा ध्यान आईडिया पर होने का एक घाटा यह है कि पाठक को उस रचना में अधूरापन लग सकता है। उन्हें प्रभावी विचार वाली कहानी पढ़कर ये लग सकता है कि इस कहानी में और बहुत कुछ होना चाहिए था। कहानी की घटनाएं और पात्र एक औपचारिकता से लग सकते हैं। वहीं अधिक डायल्यूट होने पर घटनाओं, किरदारों की अन्य बातों में विचार कहीं घुल सा जाता है। कभी-कभार तो पाठक का रडार विचार को पकड़ ही नहीं पाता। कुछ अपवाद में ऐसा इच्छित हो सकता है पर अधिकतर कहानी को 'कहानी' बनाने में उसका आधार गुम हो जाता है।
विचारों से कथा या लेख बनाने के इन प्रयोगों में कभी मैं आईडिया को प्राथमिकता देता हूँ तो कभी अन्य घटकों से मिश्रित कहानी को लिखता हूँ। स्थिति अनुसार दोनों तरीके आज़माते रहना चाहिए। अगर किसी विचार में काफी सम्भावना दिखे तो उसपर दोनों तरीकों से लिखना चाहिए। वैसे एक बार किसी विचार पर कुछ लिखने के बाद तुरंत ही दोबारा (चाहे अलग तरीके से सही) उसपर लिखने का मन नहीं करता...अगर ऐसा कुछ है, तो भी उस आईडिया को आगे के लिए बचा कर रख लें। बाद में कभी जब मन करे तब अन्य तरीके से लिखने का प्रयास करें।
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Art - Anastasia Glushkova
Art - Anastasia Glushkova
#ज़हन