मेरठ में घर के पास एक शांत स्थान है जहाँ आस-पास शिव जी-दुर्गा माता का एक मंदिर, शनि देव का मंदिर, हनुमान जी का मंदिर और साईं बाबा की कुटी है। वहाँ सोमवार को शिव भक्तो का जमावड़ा रहता है, मंगल को बजरंग बलि महाराज के भक्तो का गुरूवार को साईं बाबा को मानने वालो की भीड़ रहती है और शनिवार को शनि देव और हनुमान जी के भक्तो की।
तो एक शनिवार मेरा एक नास्तिक दोस्त मेरे साथ था और हमे थोडा समय लग गया सड़क पर भक्तो की भीड़ से निकलने मे। दोस्त ने कहा की सब नौटंकी है, ये लोग आस्था या श्रद्धा से नहीं आते बल्कि डर से आते है की शनि देव सब भला करें इनका या शिव भगवान, बजरंग बलि इनके किये पापो से छुटकारा दे दें इनको। उसने मुझसे पूछा इस सबमे कोई भी सकारात्मक बात है या सब पाखण्ड है।
अब आजकल एक तो फेशन बन गया है भगवान की बेईज्ज़ती करना और खुद को नास्तिक बताना। उसको भगवान के बारे मे समझाना व्यर्थ था इसलिए मैंने इस भीड़-जमावड़े से जुडी सकारात्मक बात बताई उसको।
मैंने कहा यहाँ रास्ते मे दर्जनों गरीब परिवारों को ये भक्त लोग (चाहे भगवान के डर से या आस्था से) खाना, प्रसाद और पैसे देते है, जिस से इतने सारे गरीबों का जीवन चलता है सिर्फ यहाँ ही नहीं देश भर मे। उसने तुरंत कहा की ऐसा तो हफ्ते के 3-4 दिन ही रहता है बाकी के दिनों का क्या? अगर भक्ति करनी ही है तो उसके लिए कोई दिन या समय निश्चित करने से क्या फायदा? जब मन आये तब करो पूजा, भक्ति। इसपर गृह-नक्षत्रो की बात करता तो फिर वो प्रूफ मांगता इसलिए मैंने यहाँ भी उसी की जुबां मे बोलना ठीक समझा।
मैंने कहा तुम्हारी बात सही है बिना दिन-समय देखे भी भक्ति करने वाले बहुत से लोग है रही आम जनता की बात तो उनका यह डर या नियत समय पर किसी ख़ास देव की पूजा अर्चना करना भी इन गरीबों के हित मे है। कैसे? ये मानवीय सोच है उसका व्यवहार है ...जैसे अधिकतर बच्चे परीक्षा की तिथि आने पर ही पढना शुरू करते है, अगर कुछ नियत न हो तो दिमाग मनुष्य को दिलासा देता रहता है की अभी तो काफी समय है आराम करो। इसी तरह ज़्यादातर लोगो को अगर ये बताया जाए की रोज़ हर बड़े देव या अपने इष्ट देव-देवी की पूजा-आराधना करो तो दिनचर्या समझ कर वो इसको गंभीरता से नहीं लेंगे और जो हफ्ते मे 4 दिन ये गरीब सही से खा-पी लेते है वो भी अनियमित हो जाएगा, और सिर्फ बड़े त्योहारों तक सीमित होकर रह जाएगा। पर जब उनके इष्ट देव के लिए हफ्ते मे एक ख़ास दिन निश्चित होता है तो वो अपने देव को खुश करने के लिए वो सही से पूजा करने के अलावा दान पुण्य भी करते है जिस से इन गरीबो का और आस-पास पूजा से जुडी सामग्री बेचने वालो का भला करते है। कुछ स्थान ऐसे भी है जहाँ हफ्ते के सातो दिन मेला सा लगा रहता है और हर दिन किसी ख़ास भगवान् मे आस्था रखने वाली या तुम्हारी भाषा मे डरने वाली भीड़ इन गरीबो का, दुकानदारों का भला कर जाती है।
- मोहित शर्मा (ट्रेंडस्टर / ट्रेंडी बाबा)
तो एक शनिवार मेरा एक नास्तिक दोस्त मेरे साथ था और हमे थोडा समय लग गया सड़क पर भक्तो की भीड़ से निकलने मे। दोस्त ने कहा की सब नौटंकी है, ये लोग आस्था या श्रद्धा से नहीं आते बल्कि डर से आते है की शनि देव सब भला करें इनका या शिव भगवान, बजरंग बलि इनके किये पापो से छुटकारा दे दें इनको। उसने मुझसे पूछा इस सबमे कोई भी सकारात्मक बात है या सब पाखण्ड है।
अब आजकल एक तो फेशन बन गया है भगवान की बेईज्ज़ती करना और खुद को नास्तिक बताना। उसको भगवान के बारे मे समझाना व्यर्थ था इसलिए मैंने इस भीड़-जमावड़े से जुडी सकारात्मक बात बताई उसको।
मैंने कहा यहाँ रास्ते मे दर्जनों गरीब परिवारों को ये भक्त लोग (चाहे भगवान के डर से या आस्था से) खाना, प्रसाद और पैसे देते है, जिस से इतने सारे गरीबों का जीवन चलता है सिर्फ यहाँ ही नहीं देश भर मे। उसने तुरंत कहा की ऐसा तो हफ्ते के 3-4 दिन ही रहता है बाकी के दिनों का क्या? अगर भक्ति करनी ही है तो उसके लिए कोई दिन या समय निश्चित करने से क्या फायदा? जब मन आये तब करो पूजा, भक्ति। इसपर गृह-नक्षत्रो की बात करता तो फिर वो प्रूफ मांगता इसलिए मैंने यहाँ भी उसी की जुबां मे बोलना ठीक समझा।
मैंने कहा तुम्हारी बात सही है बिना दिन-समय देखे भी भक्ति करने वाले बहुत से लोग है रही आम जनता की बात तो उनका यह डर या नियत समय पर किसी ख़ास देव की पूजा अर्चना करना भी इन गरीबों के हित मे है। कैसे? ये मानवीय सोच है उसका व्यवहार है ...जैसे अधिकतर बच्चे परीक्षा की तिथि आने पर ही पढना शुरू करते है, अगर कुछ नियत न हो तो दिमाग मनुष्य को दिलासा देता रहता है की अभी तो काफी समय है आराम करो। इसी तरह ज़्यादातर लोगो को अगर ये बताया जाए की रोज़ हर बड़े देव या अपने इष्ट देव-देवी की पूजा-आराधना करो तो दिनचर्या समझ कर वो इसको गंभीरता से नहीं लेंगे और जो हफ्ते मे 4 दिन ये गरीब सही से खा-पी लेते है वो भी अनियमित हो जाएगा, और सिर्फ बड़े त्योहारों तक सीमित होकर रह जाएगा। पर जब उनके इष्ट देव के लिए हफ्ते मे एक ख़ास दिन निश्चित होता है तो वो अपने देव को खुश करने के लिए वो सही से पूजा करने के अलावा दान पुण्य भी करते है जिस से इन गरीबो का और आस-पास पूजा से जुडी सामग्री बेचने वालो का भला करते है। कुछ स्थान ऐसे भी है जहाँ हफ्ते के सातो दिन मेला सा लगा रहता है और हर दिन किसी ख़ास भगवान् मे आस्था रखने वाली या तुम्हारी भाषा मे डरने वाली भीड़ इन गरीबो का, दुकानदारों का भला कर जाती है।
- मोहित शर्मा (ट्रेंडस्टर / ट्रेंडी बाबा)
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