मैंने स्कूली ज्ञान को कभी ज्यादा महत्व नहीं दिया, इसलिए ऑन रिकार्ड्स ठीक-ठाक नंबर ही आते थे। भारत मे शिक्षा के लिए अलग ही पद्धति है, मैंने ऐसे बहुत से "होनहार छात्र" देखे जिनमे व्यावहारिक और ज़रूरी ज्ञान की कमी थी (अभी भी होनी चाहिए). जैसे किताबो की बाहर अगर कोई इंस्पेक्शन वाले सर/मैडम कुछ पूछ लें तो सामान्य ज्ञान तक की बातों का उनके पास जवाब नहीं होता, उनका तर्क होता की जो कोर्स में नहीं उसको पढ के क्या फायदा?
जैसे सातवी कक्षा में बाहर से आये सर ने पूछा किसी भी सरकारी डिपार्टमेंट या कंपनी, विभाग का नाम बताओ। टीचर ने 2-4 होनहार बच्चो को पूछा, फिर सर ने कुछ बच्चो को खड़ा किया जिनमे मै भी था इतने निरुतर बच्चो को देख सर को थोडा गुस्सा आया। टीचर भी अब गिव अप कर चुकी थी क्योकि उनके इक्के-बादशाह शहीद हो चुके थे ...अब तो क्लास के अठ्ठे-नेहलो का इंटेरोगेशन चल रहा था। मेरी बारी आई तो मैंने डरते हुए कहा "रेलवेज ...."
सर ने चिल्ला कर कहा गलत है.
मैंने कहा "तो रोडवेज ...."
"गलत"...ऐसे करके मैंने पुलिस, सचिवालय, दूरदर्शन, सेना कहा और वो गलत-गलत बोलते रहे।
जब मै चुप हुआ तो वो मेरी तरफ बढ़े, मैंने सोचा हमेशा की तरह गयी भैंस पानी में। फिर उन्होंने कहा तुमने जो भी विभाग बताये सब सही है। थोड़ी तालियाँ बजी, सर ने शाबाशी दी .....मै 2-3 क्लासेज मे खुश रहा बस फिर सब पहले के ढर्रे पर वापस।
"मोहित, अभ्यास पुस्तिका मे काम पूरा क्यों नहीं हुआ? हाथ ऊपर करके दिग्विजय और गंगा के साथ जाके खड़े हो जाओ।"
चलिए स्कूल को छोडिये अब MBA में भी सहपाठी फेकल्टी की दी प्रेजेंटेशन स्लाइड्स, pdfs, hand-outs, booklets रट कर परीक्षा देते है, अपने असाइंमेंटस करते है ....ज़रा सी बाहर से आई बात या कांसेप्टस पर अधिकतर छोटे बच्चो की तरह ये मटेरियल में नहीं था जैसी शिकायत करते है।
मै ये नहीं कह रहा की पढाई मत करो या जो पढाई करते है वो गलत है, मै बस इतना कह रहा हूँ की अपना दिमाग खुला रखो और भी चीज़ों के लिए। भारतीय शिक्षा पद्धति में बड़े बदलावों की ज़रुरत है।
- मोहित शर्मा (ट्रेंडी बाबा)