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अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...
Wednesday, September 16, 2015
Monday, September 14, 2015
इंसानी गिद्ध (कहानी) - लेखक मोहित शर्मा (ज़हन)
"क्या अम्मा, कैसे हुआ यह?" सहानुभूति भरे स्वर में इलाके के नेता ने पूछा।"
"बस भईया भगवान की मर्ज़ी थी, उन्हें अपने पास बुला लिया।" बुढ़िया ने सुबकते हुए बताया।
गाँव में एक वृद्ध की प्राकृतिक मौत के बाद यह नेता और इसके गुर्गे वैसी ही तेज़ी से वृद्धा के पास पहुंचे जैसे किसी ख़ुशी के अवसर पर जाने कहाँ से किन्नर आ जाते है। यह पहला मौका नहीं था, इस से पहले इस गाँव और आस-पास के गाँवो में अनेकों जगह नेता जी ऐसी शोक की घड़ियों का हिस्सा बने थे।
नेता ने बात बनती देख काम जल्दी निपटाने का फैसला किया। "ओये सुदामा! अम्मा जी को पैसे दे और बॉडी को रखवा गाडी में तरीके से।"
अम्मा को ढाई हज़ार रुपये पकड़ा कर सुदामा एक खरीददार के जैसे हक़ से मृत शरीर की तरफ बढ़ा।
अम्मा संकोच से बोली - "बेटा ज़रा..."
नेता ने आदतानुसार बात काटी - "अम्मा, काका जी, मेरे भी पिता सामान थे। पूरी रीति से करेंगे उनका अंतिम संस्कार, अब कहाँ भागती फिरोगी इंतज़ाम के लिए बुढ़ापे में और यह पैसा सरकार दे रही है आपको, रख लो। यह तो आपका हक़ है।"
यह कहकर वृद्धा का आशीर्वाद लेते हुए टोली वहां से निकली।
नेता - "वाह! आज काम कितनी जल्दी हो गया, इस अम्मा की तरह बाकी सब नहीं मिलते घंटो झिक-झिक करते है। चल अब संभावली को मोड़ गाडी।"
एक जूनियर गुर्गा बोला - "नेता जी वहां लगातार पाँच किये है, किसी और गाँव चलते है।"
फिर इस टोली ने एक अलग गाँव में जगह छाँट कर मृत वृद्ध के गले में फंदा डाल के पेड़ से लटका दिया। अगले दिन तहसीलदार एवम बाकी अधिकारीयों को बताया गया कि एक और कर्ज़े में डूबे किसान ने फसल बर्बाद होने की वजह से आत्महत्या कर ली। वृद्धा के नाम पर मिले एक लाख रुपये का मुआवज़ा कुछ सरकारी अफसरों के साथ बाँट कर नेता एंड पार्टी ने बचे 50 हज़ार गटके और किसी दूर दराज़ इलाके में अगली मौत का इंतज़ार करने लगे। पर नेता अनुसार वो शरीफ था क्योकि कम से कम वो मुआवज़े के लिए लोगो के मरने का इंतज़ार तो करता था, नहीं तो कुछ जगहों पर ऐसे नेता बूढ़े, लाचार और बेसहारा लोगो की हत्या तक कर रहे थे सरकार से राहत राशि पाने के लिए।
समाप्त!
- मोहित शर्मा (ज़हन)
Thursday, September 10, 2015
A Minus vs. B Plus - (#mohitness)
A Minus - "जब-तब लोगो को कहते सुनता हूँ कि फलाना 25 वर्षों से हमारी समिति के सदस्य है, यह वरिष्ठ सदस्या ढिमकानी बहन जी दशको से इस संस्था की सेवा करती आ रही है। इन उदाहरणों में थोड़े वेरिएशंस और जोड़ लो।"
B Plus - "हाँ तो दिक्कत क्या है, कोई वर्षो तक कहीं अपना योगदान दे तो उसका सम्मान होना चाहिए। यह तो लग रहा है तुम जलनवश कह रहे हो प्रादेशिक समिति पुरूस्कार समाहरोह में ऐसे वरिष्ठ लोगो कि धूम देख कर।"
A Minus - "जलन से नहीं अपने विश्लेषण से कह रहा हूँ। अब देखो जैसे तुम समिति से लगभग 4-5 सालों से जुड़े हो जिसमे तुम हर सप्ताह 1-2 बार समिति के कार्यक्रमों, कैंप्स और यहाँ तक कि अवकाश के दिनों में ग्रामीण टूर्स पर भी जाते हो। यानी लगभग सवा 300 सश्रम हाज़िरीयां, अब कई "वरिष्ठ" सदस्य ऐसे होते है जो खानापूर्ति के लिए समिति के वार्षिक समारोह और इक्का-दुक्का ख़ास मौकों पर दिख जाते है और फिर कहते है हम 20 साल से समिति की सेवा में लगे है, यानी 50-60 हाज़िरियां। अब बताओ किस कोण से वो तुमसे अधिक वरिष्ठ हुए?"
B Plus - "पर उनके घर-परिवार भी होंगे, अन्य ज़िम्मेदारियाँ होंगी, क्या पता उनमे कोई-कोई पांच-सात समितियों का भी सदस्य हो। ऐसे कुछ निर्णय सुना देना ठीक नहीं!"
A Minus - "यहीं छिपी है असल बात, जिसने जहाँ जितना योगदान दिया उसको वहां उस अनुपात में फायदा हो, नाम-मान्यता मिले। जो यहाँ नियमित आ रहे है निश्चित ही वो अपनी दूसरी ज़िम्मेदारियों से समय और योगदान बचा कर यहाँ लगा रहे है। अब यह थोड़े ही कि सचिन भी बन जाओ और न्यूटन भी हो लो हवा में। संख्याओं और तुलनात्मक बातों को समझने, उनके पीछे जाने की आदत नहीं है हम सबकी इसलिए आलस में बिना जाँचे फैसले लेते है, इस कारण कई सहायक किरदार भी सुपर हीरो-हीरोइन बना दिए जाते है।
समाप्त!
- मोहित शर्मा (ज़हन)
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Wednesday, September 9, 2015
छद्म मुफ्तखोरी - लेखक मोहित शर्मा ट्रेंडस्टर
"जीवन में कुछ भी मुफ्त का खाने वाले मुझे बिलकुल नहीं पसंद ! अरे मेहनत करो, संघर्ष करो दुनिया में, अपनी पहचान बनाओ।" नीतू ने पिकनिक में लंच करते हुए, यूँ ही डिस्कशन कर रही मित्रमण्डली के सामने अपने विचार रखे।
माहौल हल्का करने के लिए उसकी पुरानी बेस्टी सरिता ने कहा - "देखो मैडम को मुफ्त का खाने वाले नहीं पसंद और बातों-बातों में परांठे के एक कौर में ढक कर मेरा आचार ही गायब कर दिया।"
सबके चेहरों पर मुस्कराहट आ गयी पर बातों को समझने में समय लगाने के कारण ग्रुप की ट्यूबलाइट कही जाने वाली लड़की रीमा अब भी नीतू की बात का विश्लेषण करते हुए बोली - "पर नीतू तुम खुद भी तो कितना मुफ्त का खाती हो! तो दूसरो से शिकायत क्यों?"
सरिता - "लो बहनजी ने सिग्नल लेट तो पकड़ा ही आज गलत भी पकड़ा। तेरा बॉयफ्रेंड निगल लिया क्या नीतू ने फ्री में?"
रीमा ने सरिता को नज़रअंदाज़ करके नीतू से कहा - "देखो नीतू मैं हमेशा तुम्हे किसी समूह की ओट लिये देखती हूँ, उनकी सामूहिक साख या उनके इतिहास का सहारा लिए देखती हूँ। जैसे "मुझे गढ़वाली होने पर गर्व है", "प्राउड टू बी ए गर्ल", "ब्राउन पीपल आर द बेस्ट", "पक्की ठाकुर लड़की हूँ" और भी बहुत कुछ। ऐसा अकेली तुम नहीं करती, ये आम आदत है लोगो में। यह सब क्या है? जिन बातों पर हमारा बस नहीं, केवल हमारे जन्म से हमसे जुड़ गयी...उनपर गर्व या शर्म करने का क्या मतलब? कुछ गिनाना है तो अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियाँ, प्रतिभा, मेहनत से मिली चीज़ें गिनाओ, ऐसे समूह की आड़ लेकर खुद को महान घोषित करना भी अव्वल दर्ज़े की मुफ्तखोरी है।
कुछ देर के लिए बगले झांकती सहेलियाँ आज "ट्यूबलाइट" की चमक में फ़ीकी पड़ गयीं।
समाप्त!
मोहित शर्मा (ज़हन)
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#FTC1516 Info-Announcements
Freelance Talents invites entries (stories / poems) for the Qualification round of Freelance Talents Championship 2015-16. Think you have what it takes to challenge world's top talent? Enter the Qualifiers of 3rd Annual International Freelance Talents Championship for your chance to win gift hampers, cash and get published in Freelance Talents Anthologies.
Rules:
1. One submission per individual, Submissions should consist of one short story or poem or extract from a longer work up to 1500 words in length.
2. Entries should be original works and should not have won previous awards or contests. Email your story/poem to: letsmohit@gmail.com
3. 5 Bonus Brownie points for top 10 Authors of FTC 2013 and FTC 2014.
4. Themes - Thriller, Romance
5. Languages - Hindi / English / Hinglish
6. Deadline - 17 September 2015 (11 PM)
*) - Thriller
Thriller fiction is a genre of fiction that uses suspense and tension to dramatically affect the reader. A thriller can provide surprise, anxiety, terror, anticipation, etc., in order to provide a rush of emotions and excitement that progress a story. It should generally be based around the strength of the villain and the protagonist, as well as their struggle against each other. This category might encompass several other genres, including horror, science fiction, and crime.
*) - Romance
Romance fiction can encompass and draw themes, ideas and premises from other genres and can vary widely in setting, dialogue, characters, etc. Generally, however, romance fiction should include a love story involving two individuals struggling to make their relationship work and an emotionally satisfying ending.
Best of Luck!
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Freelance Talents
Digital artists, Pencillers and Painters looking to make a splash on the international stage (and win exciting gifts, cash) are invited to register for the Freelance Talents Championship 2015-16.
This year, competition format requires artists and authors to collaborate and create one page artwroks / paintings / pinups based on different round-wise themes given by FTC committee.
Please attach few samples artworks or include link(s) of your online art portfolio. E-mail us the following details: 1) - Name, 2) - Type of artist (Digital, Traditional), 3) - I can color my artworks. (YES / NO), 4) - Experience in years to letsmohit@gmail.com or freelancetalents@yahoo.com, Limited spots! Registration is on a first come, first served basis. Hurry!
Tuesday, September 8, 2015
Sunday, September 6, 2015
नशीले शेड्स - लेखक मोहित शर्मा (ज़हन)
"क्या हुआ चौबे साहब, कुछ चिंतित लग रहे है?" तहसीलदार ने शहर के दानी उद्योगपति श्री लोमेश चौबे से पूछा।
चौबे जी ने गंभीर स्वर में कहा, "कुछ लोगो को शहर के रैनबसेरे, धार्मिक स्थलों आदि कहीं पर भी ठोर ठिकाना नहीं दिया जाता था उनके चाल-चलन की वजह से, ऐसे बेसहारा लोगो के लिए शहर में कुछ जगह शेड्स लगवाये थे।"
तहसीलदार उनके सामने अपने पॉइंट्स बनाते हुए बोला, "वाह! धर्मात्मा हो तो आपसा, जिनको सबने दुत्कार दिया उनके लिए आपने सोचा। वैसे कौन अभागे लोग हैं वो?"
लोमेश चौबे - "स्मैकिया-नशेड़ी-चरसी लोग, जो शेड्स लगवाये थे वहां लगे बाकी सामान के साथ बेच कर उन गधो ने उसका भी नशा कर लिया।"
यह बात सुनकर सहमे खड़े तहसीलदार की हँसी नहीं छूटी बल्कि पूरा ठहाका निकल गया। जो पॉइंट्स उसने चौबे जी की तारीफ़ करके बनाये थे उनसे ज़्यादा कट कर उसका अकाउंट माइनस मे चला गया। इधर चौबे जी की ज़मीन पर खुले आकाश के नीचे नशेड़ी लोट लगा रहे थे, ऐसी लोट लोग अपने बाप के यहाँ भी नहीं लगाते।
समाप्त!
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Friday, September 4, 2015
मुदित चोर नहीं है! - लेखक मोहित शर्मा (ज़हन)
"गलती आपकी है जो 150 की जगह 1500 का रिचार्ज कर दिया।" मन ही मन खुश होते मुदित ने दुकानदार से कहा।
दुकानदार - "कभी-कबार जीरो की गलती हो जाती है, आँखें कमज़ोर हो गयी है। अभी सब देने को नहीं कह रहा बाद में जब इस्तेमाल कर लो तब दे देना, या धीरे-धीरे लौटा देना। अब बुढ़ापे में ऐसा तो...."
मुदित - "बूढ़े हो गए है तो घर पर बैठिये। मैंने डेढ़ सौ बोला था उतने ही दूंगा, बाकी आपने क्या देखा, किया उस से मुझे मतलब नहीं। इतनी चलती है आपकी शॉप, अभी दो-चार घंटो में सब वसूल हो जायेगा।" इतना कहकर वृद्ध दुकानदार की बातें अनसुनी करता हुआ मुदित वहाँ से निकल गया। उसने यह भी सोचा कि अब से वह इस जगह टॉपअप-रिचार्ज करवाने नहीं आएगा।
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कुछ दिन बाद व्यथित मुदित फ़ोन पर एक डिश कंपनी के कॉलसेंटर कर्मी पर अपना गुस्सा निकाल रहा था।
मुदित - "अरे ऐसे कैसे काट लिए 75 रुपये मेरे टीवी पैक से?"
कालसेंटर कर्मी - "सर एक महीने के लिए हमारा स्पेशल "महालोलू पैक" फ्री था तब आपने उसका सब्सक्रिप्शन लिया था। समय पूरा होने के बाद भी आपने पैक हटवाया नहीं इसलिए ऑटोमैटिक डिडक्ट हो गए पैसे।"
मुदित - "अच्छा मुझे मत पढ़ा बे! बस लोगो को लूटने के लिए ऑफर्स बना रखें है। हुँह! चोर है सब @#$&% "
समाप्त!
- मोहित शर्मा (ज़हन)
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Wednesday, September 2, 2015
जुग-जुग मरो बेटा! (कटाक्ष) - कवि मोहित शर्मा (ज़हन)
जून 2015 में एक बार फिर महाराष्ट्र में ज़हरीली शराब पीने के बाद कई लोग मारे गए और कई अन्य अंधे हो गए व कुछ की आंतें फट गयी। परिजनों के विरोध के बाद राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को 1 लाख रुपये देने की घोषणा की। पर जो अंधे हुए या जिसकी आँत फटी उनकी सहायता या पुनर्वास के लिए सरकार द्वारा कुछ नहीं किया गया। मृतकों के परिवारों से मेरी सहानुभूति है कि कुछ नियम, कानून और जागरूकता बढ़ा कर ये मौतें कम की जा सकती थी। इस विषय पर ये कटाक्ष काव्य। शब्द जानबूझ कर तीखें किये है, इनका बुरा मानें, इसको दिल पर ज़रूर लें - आवाज़ उठायें.....पर सही जगह!
जुग-जुग मरो बेटा!
रसमलाई क्या जलेबी भी लगे अब फीकी ,
जो शराब लखपति बनायें....
वो ज़हर नहीं अमृत सरीखी।
मलाल है क़ि पूरी क़ि पूरी क्रिकेट टीम को खड़ा क्यों ना किया,
फालतू में "हम दो, हमारे दो" स्लोगन को इतना seriously ले लिया।
जबसे ट्रेजेडी का मुआवजा बँट गया,
तबसे साला हर शराबी चलती फिरती FD बन गया।
अजीब देश है, शहीदो की विधवाएं पैसो के लिए कितनी दौड़ लगातीं है,
जबकि शराबियों के घर सरकार खुद चेक लेकर आती है।
जब लोगो को लाख का चेक मिलते देखा,
चौल का हर बूढा आशीर्वाद देता फिरता - जुग-जुग मरो बेटा!
जनता में अचानक समाजसेवा की जगने लगी है इच्छा,
गोद लेना चाहते है लोग पियक्कड़ यतीम बच्चा।
दहेज़ में कितना सामान मांग रहा है तेरा जीजा,
बिन आँखों के, फटी आँतों से Installment मे मत जी,
बाउजी कुछ पव्वे ब्लैक में लाएं है गटागट पीजा।
किसी करमजले का पेट फटा,
तो कोई धरती का बोझ सूरदास बना,
असली सपूत सिर्फ वो,
जो पिके सीधा शहीद हुआ!
- मोहित शर्मा (ज़हन)
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Tuesday, September 1, 2015
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