अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Sunday, November 20, 2016

अपना उधार ले जाना! (नज़्म) - मोहित शर्मा ज़हन


अपना उधार ले जाना!

तेरी औकात पूछने वालो का जहां, 
सीरत पर ज़ीनत रखने वाले रहते जहाँ, 
अव्वल खूबसूरत होना तेरा गुनाह, 
उसपर पंखो को फड़फड़ाना क्यों चुना?
अबकी आकर अपना उधार ले जाना!

पत्थर को पिघलाती ज़ख्मी आहें,
आँचल में बच्चो को सहलाती बाहें,
तेरे दामन के दाग का हिसाब माँगती वो चलती-फिरती लाशें। 
किस हक़ से देखा उन्होंने कि चल रही हैं तेरी साँसे?
तसल्ली से उन सबको खरी-खोटी सुना आना,
अबकी आकर अपना उधार ले जाना!
माँ-पापा के मन को कुरेदती उसकी यादें धुँधली,
देखो कितनो पर कर्ज़ा छोड़ गई पगली।
ये सब तो ऐसे ही एहसानफरामोश रहेंगे,
पीठ पीछे-मिट्टी ऊपर बातें कहेंगे,
तेरी सादगी को बेवकूफी बताकर हँसेंगे,
बूढे होकर बोर ज़िन्दगी मरेंगे।
इनके कहे पर मत जाना,
अपनी दुनिया में खोई दुनिया को माफ़ कर देना,
अबकी आकर अपना उधार ले जाना!

ख्वाबों ने कितना सिखाया, 
और मौके पर आँखें ज़ुबां बन गयीं...
रात दीदार में बही,
हाय! कुछ बोलने चली तो सहरिश रह गई...
अब ख्वाब पूछते हैं....जिनको निकले अरसा हुआ,
उनकी राह तकती तू किस दौर में अटकी रह गई....
कितना सामान काम का नहीं कबसे,
उन यादों से चिपका जो दिल के पास हैं सबसे,
पुराने ठिकाने पर ...ज़िन्दगी से चुरा कर कुछ दिन रखे होंगे,
दोबारा उन्हें चैन से जी लेना...
इस बार अपना जीवन अपने लिए जीना,
अबकी आकर अपना उधार ले जाना!

बेगैरत पति को छोडने पर पड़े थे जिनके ताने, 
अखबारों में शहादत पढ़, 
लगे बेशर्म तेरे किस्से गाने। 
ज़रा से कंधो पर साढ़े तीन सौ लोग लाद लाई,
हम तेरे लायक नहीं,
फिर क्यों यहाँ पर आई?
जैसे कुछ लम्हो के लिए सारे मज़हब मिला दिए तूने,
किसी का बड़ा कर्म होगा जो फ़रिश्ते दुआ लगे सुनने.... 
छूटे सावन की मल्हार पूरी कर आना,
....और हाँ नीरजा! अबकी आकर अपना उधार ले जाना!

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*नीरजा भनोट को नज़्म से श्रद्धांजलि*, कल प्रकाशित हुई ट्रिब्यूट कॉमिक "इंसानी परी" में यह नज़्म शामिल है।

Tuesday, November 15, 2016

Anik Planet (अनिक प्लैनेट) - Issue #01


Cover story for Comics Our Passion magazine Anik Planet - अनिक प्लैनेट (Issue # 01), November 2016. They were kind enough to advertise my upcoming projects "Kadr" and "Peripheral Angel" in this issue.

Saturday, November 5, 2016

सेलेब्रिटी पी.आर. का घपला (लेख) - मोहित शर्मा ज़हन

पैसा और सफलता अक्सर अपने साथ कुछ बुरी आदते लाते हैं। कुछ लोग इनसे पार पाकर अपने क्षेत्र में और समाज में ज़बरदस्त योगदान देते हैं वहीं कई शुरुआती सफलता के बाद भटक जाते हैं। एक बड़े स्तर पर आने के बाद प्रतिष्ठित व्यक्ति पर इमेज, ब्रांड मैनेजमेंट की ज़िम्मेदारी आ जाती है लोगो पर, अब या तो आप मेहनत और साफ़-सुथरे तरीके से ये काम करे या फिर अपनी मन-मर्ज़ी का जीवन जीते हुए बाद मे अपने कृत्यों को सही ठहराने की कोशिश करें। इन्ही में कुछ विख्यात लोग लोकप्रियता बढ़ाने के लिए अपने पीआर एजेंट या नेटवर्क का सहारा लेते हैं। जैसे अगर कोई सेलिब्रिटी कोई गलत बात, काम करता पकड़ा जाए या उसकी वजह से जनता, समाज को कोई नुक्सान हो तो अपनी टीम की मदद से वो ये बातें प्रचारित करने की कोशिश करेगा कि उसका ये मतलब नहीं था वो तो इस काम से समाज की मानसिकता दिखाना चाहता/चाहती थी या उसे सेलिब्रिटी होने की सज़ा मिल रही है। ये सही है....सेलिब्रिटी होने के मज़े तक सब ठीक पर उस लाइफ में एडजस्ट करने वाले हिस्सो में शिकायत करो। 

उदाहरण के लिए किसी सेलिब्रिटी ने एक मुद्दे पर बिना जानकारी के कोई बेवकूफी भरी बात कही अब उसका सोशल मीडिया आदि जगह मज़ाक उड़ा। तो उसकी बेवकूफी गयी एक तरफ और उसने निकाल लिया अपने अल्पसंख्यक, महिला या किसी अन्य मजबूरी का कार्ड, फिर क्या मीडिया, जनता का ध्यान कहीं और गया। यानी अगर उस बात की तारीफ़ होती तब कोई दिक्कत नहीं थी, जहाँ एक वर्ग ने मज़ाक उडा दिया तो घुमा-फिरा कर बात अपने ऊपर मत आने दो। 

साथ ही ये लोग समय, स्थिति के अनुसार नए-नए स्टंट सोचते हैं। जैसे अपने बीते जीवन में किसी दुखद काल्पनिक घटना को जोड़ देना या किसी बीमारी (खासकर मानसिक) से जूझकर उस से जीतना दिखाना। क्या यार....आपके एक जीवन में घटनाओ का घनत्व कुछ अधिक नहीं हो गया? मैं यह नहीं कह रहा कि सब बड़े लोग ऐसा दिखावा करते है पर ऐसा करने वाले लोगो का अनुपात बहुत ज़्यादा है। आम जन - ख़ास लोग सबका जीवन चुनौतियों, संघर्षो वाला होता है पर ज़बरदस्ती के पीआर स्टंट कर के कम से कम खुद से झूठ मत बोलिये। इस नौटंकी के बिना भी आप लोकप्रिय और महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर जनता का ध्यान ला सकते हैं (बशर्ते आप वैसा करना चाहें ना की केवल अपनी पब्लिसिटी के चक्कर में पड़े रहे)। हालांकि, पैसे के पीछे भागते मीडिया को नैतिक-अनैतिक से कोई मतलब नहीं होता। हर दिन कुछ नया वायरल करने की होड़ में मीडिया के लिए कुछ नैतिकता की सोचना पाप है। वैसे व्यक्ति के बारे में थोड़ी रिसर्च और पहले का रिकॉर्ड देख कर आप जान सकते हैं कि कौन सही दावा कर रहा है और कौन पीआर के रथ पर सवार है। 

जो पाठक सोच रहे है कि क्या फर्क पड़ता है? बेकार में मुद्दा बनाया जा रहा है! अगर ऐसा करने से किसी को नुक्सान नहीं पहुँच रहा तो क्या गलत है? उन मित्रो से मेरा यह कहना है कि कभी-कभी किसी वर्ग को लंबे समय से छद्म रूप से हो रहा नुक्सान सीधे नुक्सान से बड़ा होता है। जिन लोगो को वाकई मीडिया, जनता के ध्यान-पैसे की आवश्यकता है वो बेचारे तरसते रह जाते हैं और उनका हिस्सा, उनकी फुटेज गलत संस्थाएं, लोग खा लेते हैं। मुश्किल है पर सबसे निवेदन है कि अपरंपरागत न्यूज़ सोर्सेज पर ध्यान दें, सही लोगो-संस्थाओ को आगे बढ़ने मे हर संभव मदद करें। छोटे बदलाव से धीरे-धीरे ही सही पर बड़ा असर पड़ेगा। 

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Wednesday, November 2, 2016

डूम प्लाटून रिटर्न्स (मोहित शर्मा ज़हन)



Challenge - Include horror, comedy, dark, crime fiction, superhero genres in 1 story.
Semi Finalists - 9

सन् 1947 में रूपनगर के पास जंगलों एवम समुद्र से सटे तटवर्ती इलाके मे दो बड़े स्थानीय कबीलों तरजाक और रीमाली ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह के कारण वहाँ से गुजरने वाले जहाज़ और आस-पास के बंदरगाहों के व्यापार पर असर पड़ने लगा। शांत कबीलों के अप्रत्याशित विद्रोह के दमन के लिए कर्नल मार्क डिकोस्टा के नेत्रत्व मे 71 लोगो की 'डूम प्लाटून' को भेजा गया। उनका लक्ष्य था हालात को सामान्य बनाना और उस स्थान और कबीले मे ब्रिटिश राज को फिर से कायम करना।

मिशन जब एक हफ्ते से लंबा खिंच गया तो मार्क सोच में पड़ गया। जिस ऑपरेशन को वह 4 दिन की बात समझ रहा था, उसमे इतना समय कैसे लग सकता था। वरिष्ठ सदस्यों की मीटिंग के बाद जब कोई निष्कर्ष नहीं निकला तो मार्क ने अपने 2 ख़ास गुप्तचरों को प्लाटून की जासूसी पर लगाया साथ ही वह खुद भी रात में रूप बदल कर प्लाटून की गतिविधियां जांचने लगा। रात के पौने तीन बजे उसे जंगलों में कुछ हलचल दिखाई दी। उस स्थान के पास पहुँचने पर उसे प्लाटून का मेजर रसल और एक कबीले की स्त्री बात करते दिखे। वह महिला रसल के लिए फलों की टोकरी लाई थी और दोनों टूटी-फूटी बोली में एक-दूसरे के आलिंगन में प्यार भरी बातें कर रहे थे। कर्नल ने तुरंत ही पहरा दे रहे सैनिको के साथ मेजर और उस महिला को बंदी बना लिया। सुबह उनकी पेशी में मेजर रसल ने सफाई देते हुए कहा कि व्यापार के लालच में पड़ी ब्रिटिश सरकार की गतिविधियों के कारण इन क़बीलों का प्राकृतिक निवास, खाने और रहने के साधन धीरे-धीरे नष्ट होते जा रहे हैं। यही कारण है कि अब तक ब्रिटिश राज की सभी बातों का पालन करने वाले कबीलों के विद्रोह का बिगुल बजाया। प्लाटून के आने पर जब युद्ध की स्थिति बनने लगी तो अपने जान की परवाह किये बिना रीमाली कबीले की एक साधारण स्त्री शीबा जंगल में बढ़ रहे मेजर को समझाने आई। शीबा के भोलेपन और जज़्बे ने रसल को सुपर मोहित कर दिया। इस वजह से रसल गलत जानकारी देकर प्लाटून को गलत दिशाओं में भटका रहा था। रसल के आश्वासन, धैर्य से शीबा की बात सुनने और निस्वार्थ कबीलों की मदद करने से शीबा को भी उस से प्रेम हो गया। क्रोधित मार्क ने रसल को समझाया की प्लाटून के पास बस 2-3 हफ़्तों लायक राशन बचा है इस दूर-दराज़ के इलाके में, चार-पांच सौ कबीलेवासीयों और अपने प्रेम के चक्कर में वह अपने साथियों की जान दांव पर नहीं लगा सकता। धरती पर बोझ ऐसे नाकारा कई कबीलों और भारतियों को ख़त्म कर ब्रिटिश सरकार ने इस देश पर एहसान ही किया है। जब मेजर रसल ने आर्डर मानने से इंकार कर दिया तब कर्नल मार्क ने उन्हें मौत का फरमान सुनाया। रसल और शीबा की अंतिम इच्छा एक आखरी बार एक-दूसरे से लिपटकर मरने की थी। मुस्कुराते हुए रसल ने शीबा को बंदूकधारियों से मुंह फिराकर अपनी ओर देखने को कहा, कुछ पल को रसल की आँखों में देख रही शीबा जैसे भूल गई की यह उसके अंतिम पल हैं। कितनी शांत और दिलासे भरी आँखें थी वो जो ना जाने कैसे मन में चल रहे तूफ़ान को खुद तक आने से रोकें हुए थी? चलो बहुत हो गया यह इमोशनल ड्रामा इन दोनों का, उड़ा दो इन बेचारे प्यार में पागल पंछियों को…हा हा हा...कर्नल के डार्क ह्यूमर पर उसके अलावा और कोई नहीं हँसा। मार्क के निर्देशों पर उसके सैनिको ने अन्य सैनिको सामने उन 2 प्रेमियों को गोलियों से भून दिया। कुछ दिनों के प्यार में जैसे दोनों ने पूरा जीवन जी लिया था इसलिए आखरी वक़्त में एक-दूसरे से लिपटे रसल और शीबा के चेहरों पर संतोष के भाव थे। कर्नल मार्क का ऐसा निर्दयी रूप और साथी मेजर रसल की मौत देख कर कर कई सैनिकों ने उसका साथ छोड़ कर वापस जाने का निर्णय लिया। आदेशों की अवहेलना और खुद के नेतृत्व पर इतने सवाल उठते देख कर मार्क आगबबूला हो उठा। वापस लौटते हुए सैनिको पर उसने अपने वफादार सैनिको से गोलियों की बरसात करवा दी।

मार्क ने मन ही मन सोचा कि चलो अच्छा हुआ अब राशन ज़्यादा दिन चलेगा और मिशन से लौटने पर इतने सैनिको का शहीद हो जाने पर उसकी बहादुरी, अडिगता के चर्चे होंगे। हालाँकि, मिशन के लगभग तीन हफ़्तों बाद ही इंग्लैंड की सरकार ने भारत छोड़ने की आधिकारिक घोषणा की, पर डूम प्लाटून का दस्ता अपने मिशन के बीच में था और दुर्गम क्षेत्र, दूरदराज़ के मिशन में उन्हें भारत की स्वतंत्रता की जानकारी नहीं मिली। मार्क की हरकत से चिढे उस स्थान के आस-पास के बाकी कबीले भी डूम प्लाटून को मिलकर ख़त्म करने में तरजाक और रीमाली कबीलों के साथ शामिल हो गए। डूम प्लाटून पर चारो तरफ से आक्रमण हो गया। समय के हिसाब से प्लाटून के पास अत्याधुनिक हथियार थे पर इतने जंगलवासियों की संख्या के सामने प्लाटून कमज़ोर पड़ रही थी। प्लाटून को उम्मीद थी कि इतना समय बीत जाने के कारण उनकी मदद के लिए इंग्लैंड सरकार ज़रूर कुछ करेगी पर भारत की आज़ादी के समय बड़े स्तर पर हुई इतनी अधिक घटनाओ के बीच यह बात दब सी गयी और डूम पलाटून के सारे सिपाही कुछ दिनों के संघर्ष के बाद मारे गए। मार्क चाहता तो कबीलों के सामने आत्मसमर्पण कर सकता था पर उसका अहंकार उसकी मौत की वजह बना। जंगलवासियों को भी आज़ादी भारत के साथ मिली पर जंगलियों को आज़ादी मिलने का तरीका भारत जैसा नहीं था।
कुछ दिनों तक सब सामान्य रहने के बाद उन तटवर्ती इलाकों मे बसे कबीलों और जंगलो मे अजीब घटनाये होने लगी। एक-एक कर कबीलों के सरदारों को भ्रामक, डरावने दृश्य नज़र आने लगे, फिर सबकी हरकतें भूतहा होने लगी। कुछ तो अपने ही भाई-बंधुओं को मारकर उनके खून को कटोरी में भर उसके साथ रोटी, खाना खाने लगे। अगर त्रस्त आकर कबीले का सरदार बदला जाता तो उसमे भी वैसा पागलपन आ जाता। हर जगह यह बात फैली की मार्क और उसके ख़ास साथियों की आत्माएं कबीलों के सरदारों के शरीर में आ जाती हैं और उन्हें मारने के बाद ही हटती हैं। जब हर जगह कबीले का कोई सरदार ना होने की बात पर सहमति बनी तो फिर कुछ दिन सामान्य बीते। कुछ दिन बात फिर आत्माओं द्वारा लोगो को सम्मोहन से दलदल में बुलाकर खींच लेने के मामले आम होने लगे। अगर कोई जगह छोड़ कर मुख्य भारत में जाता, कुछ समय बाद उसके भी मरने की खबर आती। नवजात शिशु पेड़ों पर उलटे लटक कर कबीले वालों को इंग्लिश में गालियां देने लगे। इन्ही शिशुओं में से कुछ दूध पीते हुए अपनी माताओं के वक्षस्थल से मांस नोचकर खाने लगे। इतनी घटनाओ के बीच वहां के कई कबीले एक के बाद एक रहस्यमय तरीके से ख़त्म होते चले गए। कुछ महीनो बाद वहां रूपनगर से गुज़रती नदी की बाढ़ का ऐसा असर हुआ की वो पूरा इलाका जलमग्न हो गया। बचे हुए कबीलों को भारतीय सरकार ने रूपनगर शहर में पुनर्स्थापित किया।



कई दशकों बाद जलमग्न जंगली इलाका धीरे-धीरे सामान्य हुआ। प्रगति कई ओर अग्रसर रूपनगर शहर का विस्तार करने को जगह ढूँढ रहे उद्योगपतियों और सरकार की नज़र उस तटवर्ती इलाके और जंगलो पर पड़ी। जंगल के कुछ हिस्सों की कटाई और निर्माण का काम शुरू हुआ। जहाँ हजारो मजदूरों के सामने फिर से आई डूम पलाटून की दहशत क्योकि वो अभी भी ब्रिटिश सरकार के आदेशानुसार उन इलाकों मे सिर्फ ब्रिटिश राज स्थापित करना चाहते थे। पहले तो ऐसी अनियमित घटनाओं को कल्पना मानकर नज़रअंदाज़ किया जाता रहा फिर भूतहा बातों का होना आम हो गया जिसके चलते कई मज़दूर और सुपरवाइज़र जगह छोड़ कर भाग गए। अपने पापों और दहशत से बढ़ी शक्ति के फलस्वरूप एक दिन डूम प्लाटून साकार रूप में आई, हजारो मजदूरों मे से कुछ को सबके सामने निर्दयता से मार कर डूम पलाटून ने मजदूरों मे अपनी दहशत फैलाई और वहाँ आई बहुत सी निर्माण सामग्री से मजदूरों को ब्रिटिश कालीन इमारते बनाने का निर्देश दिया। उन्होंने मजदूरों और उनके मालिको मे कोई भेद-भाव नहीं किया और सभी से बंधवा मजदूरी शुरू करवायी।
अपने साथियों की मदद से एंथोनी के कौवे प्रिंस ने इतनी जानकारी जुटायी। -

क्या है डूम प्लाटून  

*) - डूम प्लाटून के सभी सैनिक अपनी लाल वर्दी मे है और उनका मुखिया है कर्नल मार्क डिकोस्टा।

*) - ये मार्क और उसके वफादार 1947 में रूपनगर के तटवर्ती और जंगली इलाकों मे मर चुके है। प्लाटून में आंतरिक मतभेद के बाद मार्क ने अपने ही कई सैनिको को जंगल में मरवा डाला।

*) - इनके हथियार इनकी पुरानी बंदूके है जिनकी गोलियां कभी ख़त्म नहीं होती।

*) - इस पलाटून को इंग्लैंड सरकार से आदेश मिला था की उन तटवर्ती और जंगली इलाकों मे ब्रिटिश राज दोबारा स्थापित हो ये आज भी उस आदेश पर चल रहे है और जो भी इनके रास्ते मे आएगा उसे ये मार देंगे।
*) - ये बिना थके सालो से उस इलाके की रक्षा कर रहे है और ब्रिटिश सरकार की मदद का इंतज़ार कर रहे हैं।
*) - जंगल में अलग-अलग स्थान पर लाल वर्दी में कुछ आत्माएं और भटकती हैं (मेजर रसल और कर्नल द्वारा मारे गए अन्य सैनिक) वो आत्माएं किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाती।]

प्रिंस के ज़रिये यह खबर कुछ ही देर मे एंथोनी तक पहुंची और एंथोनी तुंरत रूपनगर के उस निर्जन इलाके तक पहुंचा जहाँ आज काफी हलचल थी। एंथोनी को डूम पलाटून की कहानी और इतिहास पता चल चुका था। उसने अंदाज़ा लगाया कि डूम प्लाटून और मार्क उसके समझाने पर नहीं मानेंगे। उसकी आशा अनुरूप उनको समझाने की एंथोनी की सारी कोशिशें, तर्क बेकार गए। अंततः उसका और डूम पलाटून का संघर्ष शुरू हो गया। एंथोनी एक शक्तिशाली मुर्दा था पर इतनी आत्माओं से यह संघर्ष अंतहीन सा लग रहा था। वह कुछ आत्माओं को ठंडी आग में जकड़ता तो कुछ उसपर पीछे से हमला कर देती पर जल्द ही प्रिंस की खबर पर एंथोनी की पुरानी मित्र वेनू उर्फ़ सजा भी अपने आत्मा रूप में एंथोनी की मदद करने आ गयी। एंथोनी ने वेनू के तिलिस्म की मदद से डूम प्लाटून को एक जगह बांध कर उन पर एकसाथ ठंडी आग का प्रहार किया वो आत्मायें कुछ देर तड़पने के बाद गायब हो गयी. एंथोनी को लगा की समस्या सुलझ गयी और उसने वहाँ फसे हुए लोगो को निकाला और वापस रूपनगर शहर के मुख्य इलाकों की और चल पड़ा। कुछ ही समय बाद उसे पता चला की उस जंगली इलाके के आस-पास बनी रिहाइशी कॉलोनियों मे डूम प्लाटून फिर से अपना आतंक मचा रही है और वहाँ के लोगो को ज़बरदस्ती पकड़ कर जंगल मे अधूरे पड़े निर्माण को बंनाने में लगा रही है। ऐसा इसलिए हो रहा था क्योकि उद्योगपतियों और सरकार ने जंगली इलाकों की काफी कटाई करवा दी थी जिस वजह से डूम पलाटून को वो कॉलोनियां भी अपने क्षेत्र का हिस्सा लगने लगी थी। एंथोनी फिर वहाँ पहुंचा और एक बार फिर से थोड़े संघर्ष के बाद डूम प्लाटून गायब हो गयी। यह सिलसिला चलता रहा। एक लडाई के दौरान एंथोनी के ये पूछने पर की सब ख़त्म हो जाने के इतने साल बाद भी  डूम पलाटून वो क्षेत्र छोड़ कर जाती क्यों नहीं तो कर्नल मार्क डिकोस्टा का कहना था की उन्हें ब्रिटिश सरकार का आदेश मिला है। काफी सोच-विचार के बाद एंथोनी अपने दोस्त रूपनगर डीएसपी इतिहास की मदद से दिल्ली से इंग्लैंड के दूतावास से कुछ ब्रिटिश अधिकारीयों को लाया और उनसे आतंक मचा रही डूम पलाटून को ये आदेश दिलवाया की वो अब किसी भारतीय को परेशान ना करे और ये क्षेत्र छोड़ कर पास ही समुद्र मे बने छोटे से निर्जन दहलवी द्वीप पर रहे। आखिरकार एक संघर्षपूर्ण भयावह अध्याय की समाप्ति के बाद एंथोनी की आत्मा अपनी कब्र में सोने चली। अगले दिन जब वह वापस कब्र फाड़कर निकलने को हुआ तो एक तिलिस्म ने उसे रोक लिया। सज़ा के शरीर को कब्ज़े में लेकर कर्नल मार्क ने एंथोनी की कब्र को तिलिस्म से बांध दिया था। अब तक अहंकार में चूर मार्क ने बदली सरकार का आदेश मानने से इंकार कर दिया। उसके अनुसार ब्रिटिश राज की सरकार अलग थी, वह इस कठपुतली सरकार का आदेश मानने को बाध्य नहीं था। तिलिस्म की सीमा के अंदर आये बगैर कब्र के ऊपर चिल्लाते प्रिंस ने ये बातें एंथोनी तक प्रेषित की।

इधर डूम प्लाटून अपने अधूरे निर्माण कार्य को पूरे करने में लग गयी। सरकार का ध्यान इस दिशा में गया और अर्धसैनिक बल भेजे गए लेकिन अदृश्य दुश्मन से भला वो कैसे लड़ पाते। उन सबके हथियार छीन कर, डूम प्लाटून ने उन्हें मज़दूरी पर लगा दिया। स्थिति गंभीर हो रही थी और मदद आने तक सरकार, स्थानीय प्रशासन को विचार-विमर्श करना था। ऐसा संभव था कि अपने सफलता से उत्साहित होकर मार्क अपनी प्लाटून के साथ रूपनगर शहर की तरफ कूच करे। अब या तो उस क्षेत्र को क्वारंटाइन घोषित कर सब खाली करवा सकती थी या और मदद भेजने का जोखिम उठा सकती थी, लेकिन हर गुज़रता पल उनकी मुश्किलें और शहर को नुक्सान बढ़ा रहा था। एंथोनी ने प्रिंस को सज़ा की आत्मा से तिलिस्म तोड़ने का तरीका सुझाया। सज़ा के द्वारा तिलिस्म तोड़ने का तरीका जानकर प्रिंस ने तिलिस्म के चारो ओर अपनी चोंच से एक बड़ा तिलिस्म बनाकर उसे निष्फल किया और आखिरकार एंथोनी अपनी कब्र से बाहर आ पाया। मौके की गंभीरता के बाद भी ज़मीन पर तिलिस्म बनाने में प्रिंस की घिसी हुई चोंच देखकर कुछ पलों के लिए एंथोनी अपनी हँसी रोक नहीं पाया, मदद करने के बाद भी एंथोनी को उसपर हंसता देख प्रिंस ने अपनी उबड़-खाबड़ चोंच एंथोनी को चुभाई और कान पकड़ते हुए माफ़ी मांगते एंथोनी ने प्रिंस की चोंच की मरहम-पट्टी की।

कुछ देर में ही एंथोनी एक बार फिर डूम प्लाटून ने सामने था। इस बार कर्नल मार्क ने उस पर तंज कसा, "इस तरह कब तक यह खेल चलता रहेगा मुर्दे एंथोनी? तू एक शक्तिशाली आत्मा है लेकिन हमारी संख्या के आगे तू हमे रोक नहीं सकता। तू अपनी साथी सज़ा के साथ हमारे काम में बाधा डालेगा, हमे रोकेगा। कुछ देर अपनी ठंडी आग में तड़पा लेगा और हम लोग गायब हो जाएंगे। तेरी इतनी मेहनत का फायदा क्या है? हमे मारा नहीं जा सकता, जबकि हम धीरे-धीरे तेरे शरीर को नुक्सान पहुंचा सकते हैं। हम एक जगह से भागेंगे तो फिर कहीं ना कहीं आ जाएंगे! पिछली बार तिलिस्म से कब्र में तेरा शरीर रोका था, अगर अब भी तू ना माना तो इस बार यह सुनिश्चित करूँगा की तेरा शरीर नष्ट हो जाए। सबकी भलाई इसमें ही है कि तू बार-बार हमारे रास्ते में आना छोड़ दे।"

एंथोनी - "तेरे जैसों के मुँह से सबकी भलाई की बातें शोभा नहीं देती कर्नल! एक बात मेरी भी जान ले, तुझसे पहले तेरे जैसी कई ढीट आत्माओं से पाला पड़ा है। एंथोनी का शरीर नष्ट करेगा तो आत्मा रूप में तेरे काम को रोकने आऊंगा। मुझे कभी मुक्ति मिल भी गयी तो इतना याद रख कि इंसाफ और मज़लूम की चीखों का हिसाब लेने के लिए एंथोनी स्वर्ग छोड़ कर आ सकता है। बड़े किस्से सुने हैं तेरी ईगो के जिसे तू प्रेम और लोगो की जान से ऊपर रखता है, देखते हैं पहले मैं डिगता हूँ या तू रास्ता देता है!"

कर्नल मार्क - "ठीक है! जैसी तेरी मर्ज़ी..."

एंथोनी - "एक मिनट! एक बात रह गयी...ज़रा गिनकर बताना तुझे मिलाकर तेरे सैनिक कितने हैं?"

कर्नल मार्क - "35...क्यों? अब इनके लिए कोई नया तिलिस्म लाया है?"

एंथोनी - "नहीं! 71 लोगो की डूम प्लाटून में से 35 निकले तो बचे 36! आओ तुम्हे बाकी सदस्यों से मिलवाता हूँ। मिलो दिल, भावनाओं वाले डूम प्लाटून के दूसरे हिस्से से जिसका नेतृत्व कर रहें हैं मेजर रसल। अब हुई कुछ बराबर की टक्कर। सज़ा की मदद से तुम्हारा इतिहास जानने के बाद जंगल में कहाँ-कहाँ भटकती इन आत्माओं को ढूंढकर एकसाथ, एक नेतृत्व में लाना था बस।"

सज़ा ने तट के पास निर्जन दहलवी द्वीप पर एक रास्ते को छोड़कर तिलिस्म से बांध दिया। मेजर रसल ने नेतृत्व में सैनिक मार्क के वफादार सैनिकों को उस तरफ धकेलने लगे। वहीं अपने पापों की वजह से अन्य आत्माओं से कहीं शक्तिशाली दुरात्मा मार्क को एंथोनी और सज़ा अपने सधे हुए वारों से उस ओर ले जाने लगे। सभी सैनिको के द्वीप के अंदर पहुँचने के बाद सज़ा ने बाहर से तिलिस्मी द्वार बंद कर उन्हें दहलवी द्वीप में कैद कर दिया। इसके बाद तुरंत ही डीएसपी इतिहास और अन्य अधिकारियों की सिफारिश पर द्वीप को आधिकारिक रूप से संक्रमित एव खतरनाक घोषित कर दिया गया।

....अब अगर कोई भटकी नौका या यात्री इस द्वीप पर आता है तो उसे 2 बराबर संख्या के गुट निरंतर युद्ध करते दिखाई देते हैं। बराबर क्यों? शायद इसलिए की मेजर रसल द्वीप पर नहीं जंगलों में शीबा के पास था और दोनों आत्माएं लगभग सत्तर साल पहले की उस रात की तरह ही टूटी-फूटी भाषा में प्यार भरा संवाद कर रहीं थी। ....क्या आप दहलवी द्वीप पर जाना चाहेंगे?

समाप्त!

Tuesday, October 11, 2016

ICF Awards 2016 #news #articles

Indian Comics Fandom Awards 2016 covered by many websites, magazines and newspapers. :)


Jazyl Homavazir - "Yesterday I was covered by a weekly Parsi Community newspaper the Jame Jamshed with a small write up regarding The Beast Legion winning the Best Webcomic. The response I've received from people living around me after that has been amazing. Here's hoping even more people come to know about my work & my series. Here's a scan... :) Thank you for the feature."


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Friday, October 7, 2016

इंडी आर्टिस्ट का मतलब क्या है? - मोहित शर्मा ज़हन

Art - Thomas Lepine


किसी रचनात्मक क्षेत्र में किये गए स्वतंत्र काम को इंडी (Indie/Indy) यानी इंडिपेंडेंट रचना कहा जाता है। इंडी काम कई प्रकार और स्तर का हो सकता है, कभी न्यूनतम या बिना किसी निवेश के बनी रचना केवल कला के बल पर अनेक लोगो तक पहुंच सकती है और धन अर्जित कर सकती है, तो कभी कलाकार का काफी पैसा लगने के बाद भी असफल हो सकती है। किसी लेबल, कंपनी या प्रकाशक के ना होने के कारण इंडी रचनाओं में कलाकार पर उसके दिमाग में उपजे विचारों को बाजार के हिसाब से बदलने का दबाव कम हो जाता है। वहीं कभी-कभी अपनी मर्ज़ी चलने का घाटा यह होता है कि जनता कलाकार के विज़न को पूरी तरह समझ नही पाती। मुझे लगता है हर लेखक, कवि या कलाकार को इंडी चरण से गुज़ारना ही चाहिए, सीधे किसी बड़े लेबल से चिपकना भी अच्छा नहीं। अपनी कला के विकास के लिए तो स्वत्रंत रहकर अलग-अलग शैलियों, स्थितियों और अन्य कलाकारों के साथ प्रयोग करना बेहद आवश्यक है। ऐसा करने से व्यक्ति को पता चलता है कि उसे अपना समय किन बातों में देना चाहिए और किन बातों में उसकी मेहनत अधिक लगती है पर परिणाम कम आता है। जैसे लेखन में ही दर्जनों शैलियाँ हैं, कहने को तो लेखक सबमे लिख ले पर किनमें उसे सहजता है और किन शैलियों के संगम में वह कमाल करता है ये बातें धीरे-धीरे प्रयोग करते रहने से ही समझ आती है। कई मामलों में कम बजट वाली छोटी कंपनियों के लेबल के साथ प्रकाशित हुए काम को कम मुनाफे और पहुँच की वजह से इंडी श्रेणी में रखा जाता है। 

अब भाग्य के फेर से कुछ लोग इंडी चरण में कुछ समय के लिए नाम को आते हैं और सीधा बड़ा टिकेट पाते हैं। जबकि कई इक्का-दुक्का मौको को छोड़ कर जीवनभर इंडी रह जाते हैं। कला का स्तर और कीमत सामने खड़े व्यक्ति के नज़रिये पर निर्भर करता है, फिर भी अगर 100 में से 70 से अधिक लोग किसी चीज़ पर एक राय रखते हैं तो उसको एक मापदंड माना जा सकता है। मापदंड ये कि यह कलाकृतियां, रचनाएं क्या पैसा कमा पाएंगी या नहीं। यह सवाल कई कलाकारों को दुख देता है लेकिन इसका सामना सबको करना पड़ता है बशर्ते आपकी पैतृक संपत्ति भयंकर हो या आप मनमौजी कलाकार हो, जो एक के बाद एक रचना निर्माण में मगन रहता है। पैसा आये तो अच्छा, पैसा ना आये तो खाना तो मिल ही रहा है! मनमौजी कलाकारों को भगवान् तेज़ स्मृति देते हैं जो सारी की सारी वो अपने काम में लगा देते हैं। उन्हें आस-पास की दुनिया में हुए पिछले क्षण चाहे याद ना हों पर 11 वर्ष पहले अगर उन्होंने कोई आईडिया कहीं इस्तेमाल किया तो उसमे क्या दिमागी दांव-पेंच हुए और क्या परिणाम आया सब याद रहेगा। अक्सर पैसों और मार्गदर्शन के अभाव में कई आर्टिस्ट संघर्ष के शुरुआती वर्षों में ही कोई और राह चुन लेते हैं, फिर कुछ ऐसे हैं जो कला से संन्यास तो नहीं होते पर सेमी-रिटायर होकर कभी-कभार कुछ काम दिखा देते हैं। ये कलाकार अपने जैसे अन्य कलाकारों, लेखको को पसंद करते हैं पर अपने क्षेत्र और हरदम मस्तिष्क के रचनात्मक जाल में उलझे होने के कारण ढंग से प्रोत्साहित नहीं कर पाते हैं। स्वयं पर निर्भर होने के कारण सफलता मिलने में अधिक समय लगता है। जो लोग पैसे को प्राथमिकताओं में नही रखते उनके लिए रास्ता मुश्किल है। धन से आप अपनी रचनाओं की पहुंच परिवर्धित कर सकते हैं, पैसे के साथ आप सिर्फ अपनी कला पर ध्यान लगा सकते हैं, नही तो एक बार का दाल-पेट्रोल का भाव नापने में आपके 4 आईडिया सुसाइड कर लेंगे। अपने कलात्मक सफर के बीच-बीच में एक नज़र आर्थिक पहलुओं पर रखना फायदे का सौदा है। 

आप सभी से निवेदन है कि अपनी रूचि के विषयों में सक्रीय इंडी लेखको, कलाकारों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी जुटाएं, उस जानकारी के आधार पर उनकी रचना, किताबें, कलाकृतियां खरीदकर, खरीदने में सक्षम नही तो अन्य लोगो को बताकर इन कलाकारों के विकास में अपना सहयोग दें।

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कॉमिक्स फैन फिक्शन लेखकों के लिए कुछ सुझाव - मोहित शर्मा ज़हन

Sunday, September 4, 2016

बागेश्वरी # 13 पत्रिका अपडेट


बागेश्वरी पत्रिका के नए अंक #13 (सितंबर-अक्टूबर 2016) में मेरी हॉरर कहानी, रचना प्रकाशित हुई। प्रकाशक योगेश जी को धन्यवाद!

Wednesday, August 24, 2016

ज़हनजोरी (कहानी संग्रह) - Zahanjori Back Cover


Back cover


Zahanjori is now available worldwide. Grab your own copy now. In India, it is available in Amazon, Flipkart, BooksCamel and many other online retailers.

Monday, August 22, 2016

निर्णय (लघुकथा)

प्रांप्ट - "टूटती शाखें" प्रतियोगिता के लिए

शोल कबीले के सरदार का निर्णय सभी सदस्यों के लिए एक झटका था। उनका प्रमुख जिसने दशकों इस कबीले का नेतृत्व किया, हर सदस्य को जीने के गुर सिखाये...आज उनके द्वीप पर 7 जहाज़ों से आये बाहरी लोगो का प्रस्ताव मान रहा था। सरदार ने स्थिति भांप अपना पक्ष रखा - "मेरा तो जीवन कट गया, पर अपने गार्सिया द्वीप के बदले बाहर ये विदेशी आप सबको बेहतर जीवन और ठिकाना देंगे..."

सरदार की बात एक युवक ने काटी - "...पर अपना सब कुछ छोड़कर उनकी शर्तों पर जीना कहाँ का इंसाफ है? इतने साल आपसे युद्ध कौशल सीखने का क्या लाभ? धिक्कार है ऐसी कायरता पर!"

सरदार - "एक बार मेरे बचपन में कुछ विदेशीयों ने ऐसी शर्त मेरे जन्मस्थान द्वीप टाइगा पर रखी थी। 450 से अधिक कबीलेवासी शर्त न मान कर लड़े और क्या खूब लड़े। उनमे मेरे परिवार समेत सिर्फ 8 परिवार टाइगा से पलायन कर बच पाए। तब जहाज़ 2 थे और इन जहाज़ों से बहुत छोटे थे। उस समय विशाल वृक्ष से टूटी धूलधूसरित शाखें किसी तरह फिर से कोपल सींच पाईं पर ज़रूरी नहीं हर बार ऐसा हो। बाहर जाओ और शोल वृक्ष को समृद्ध करो, इतना की आज उनकी शर्त पर जियो और कल सक्षम बन उनको अपनी शर्त पर झुकाओ। आज ख़ाक हो जाओगे तो कल कभी नही आएगा।"

- मोहित शर्मा ज़हन

Wednesday, August 3, 2016

Interview with Writer Anurag Kumar Singh

Originally Published - http://www.culturepopcorn.com/

श्री अनुराग कुमार सिंह पिछले 8 वर्षो से राज कॉमिक्स के साथ जुड़े हुए हैं। इस बीच उन्होंने कई कॉमिक्स की परिकल्पना, संपादन और लेखन में योगदान दिया। जनवरी 2008 के एक इवेंट में इनसे मिला और पाया कि अनुराग जी एक मृदुभाषी, हँसमुख, मिलनसार व्यक्ति है, जो निरंतर अपनी प्रतिभा को निखारने और नए आईडिया सोचने में लगे रहते हैं। कहानी गढ़ने और सीन-अनुक्रम जोड़ने का इनका तरीका मुझे काफी पसंद है। हालांकि, जितने परिकल्पनाओं का इनके पास भंडार है उस अनुपात में कॉमिक नहीं आयी है अबतक पर आशा करता हूँ आने वाले समय में वो इसकी भरपाई कर देंगे। पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंश। - मोहित शर्मा ज़हन

Q) - अपने बारे में बताएं - आपका बचपन, शिक्षा, गांव-शहर, ननिहाल आदि। 
अनुराग - मेरा नाम अनुराग कुमार सिंह है! मैं किशनगंज, बिहार का रहने वाला हूँ! मेरी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा मेरे ननिहाल पूर्णिया में हुई है! वहीँ मेरा बचपन बीता है! मैंने रसायन शास्त्र से स्नातक किया है! और अब राज कॉमिक्स के लिए कहानियां लिखता हूँ!

Q) - कॉमिक्स प्रेम कब जागा और आपकी पहली कॉमिक कौनसी थी?
अनुराग - कॉमिक्स के प्रति प्रेम मेरे अंदर 7 साल की उम्र में ही जाग गया था! मेरे घर में सभी कॉमिक्स नॉवेल्स और पत्र पत्रिकाओं को पढ़ने के शौक़ीन रहे हैं! मेरे पापा फैंटम और मेंड्रेक के फैन रहे हैं! मेरे ननिहाल में भी सभी ऐसे ही रहे हैं! सो मुझे भी पढ़ने की लत शुरू से ही लग गई! मेरी पहली कॉमिक ताऊ जी की कोई कॉमिक्स थी जिसका नाम मुझे याद नहीं है! उसके बाद चाचा चौधरी और डायमंड के अन्य किरदार भी पढ़ लेता था! राज कॉमिक्स की पहली कॉमिक्स जो मैंने पढ़ी थी वो थी कातिलों का क्लब जिसका अगला भाग आज तक नहीं पढ़ पाया! नागराज की पहली कॉमिक जो मैंने पढ़ी थी वो थी प्रलयंकारी मणि और शंकर शहंशाह! तब मुझे पता भी नहीं था कि नागराज क्या चीज है!

Q) - आपके पसंदीदा किरदार कौन हैं और क्यों?
अनुराग - मेरा पसंदीदा किरदार है परमाणु जो हमेशा से मेरा प्रिय किरदार रहा है! इसको लिखने की अतृप्त इच्छा अब भी मेरे मन में दबी है! हालाँकि मल्टीस्टार कॉमिक्स पुनरुत्थान और विस्तार सीरिज़ में मैं परमाणु को लिख चुका हूँ पर सोलो में अब तक कोई मौका नहीं मिल पाया है मुझे! इसको पसन्द करने के कई कारण है! एक तो ये विज्ञान से जुड़ा किरदार है और मैं खुद भी विज्ञान का छात्र रहा हूँ तो इसके प्रति मेरा झुकाव स्वभाविक है! दूसरा मनु जी ने परमाणु/विनय और उनके सभी किरदारों को इतने सुंदर तरीके से चित्रित किया है कि कोई भी कॉमिक रीडर इससे सहज ही जुड़ जायेगा! तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण है कि परमाणु की स्टोरीज और आर्ट का जो स्टैंडर्ड हुआ करता था उसके नीचे गिरने की जो फ्रस्टेशन थी उसने मुझे परमाणु की कहानियों से और ज्यादा जुड़ने और उसे ठीक करने के लिए प्रेरित किया! आप ऐसा भी कह सकते हैं कि मेरे राइटिंग के क्षेत्र में आने का कारण सिर्फ और सिर्फ परमाणु ही था!

Q) - लेखन के क्षेत्र में कैसे कूदना हुआ?
अनुराग - उपरोक्त प्रश्न में मैं ये बता ही चुका हूँ कि लेखन के क्षेत्र में आने का का कारण क्या था! सन 2006 में राज कॉमिक्स ने फोरम की शुरुआत की थी! फोरम से जुड़ने के बाद मुझे मेरे जैसे अन्य मित्र मिले जो राज कॉमिक्स के वर्तमान स्थिति से नाखुश थे! वो उनको सुझाव देते शिकायतें करते! हम आपस में बहस करते! उनमें से कुछ स्टोरी  भी लिखते थे! उनको देख कर मेरे अंदर का राइटर भी बाहर आने को आतुर होने लगा! पर एक पूरी स्टोरी लिखनी मुझे आती नहीं थी और नेट के साधन भी सिमित थे! इसलिए मैं सिर्फ शॉर्ट में आइडियाज लिख कर देता था! तब 2008 में फैन मीटिंग में शामिल होने दिल्ली जाने का मौका मिला! जहाँ संजय जी से मिलने के बाद पक्का मन बना लिया कि अब राइटर ही बनना है! और फिर उसके कुछ महीनों बाद ही मैंने राज कॉमिक्स ज्वाइन कर लिया!

Q) - राज कॉमिक्स फोरम के दौर के बारे में नए पाठकों को बताएं। 
अनुराग - फोरम के बारे में क्या कहूँ? जितना भी कहूंगा कम लगेगा! ये एक ऐसा मंच था जो हम जैसे पाठकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं था! इस मंच ने मुझे खुद को व्यक्त करना सिखाया! अपनी भावनाओं को जाहिर करने का इससे अच्छा मंच हो ही नहीं सकता! नहीं तो इससे पहले कॉमिक पढ़ कर जो भी विचार मन में आते थे वो मन में ही घुमड़ते रहते थे किसी प्रेत की तरह! कहने को बहुत कुछ होता था पर कोई सुनने वाला नहीं होता! फोरम में कई अच्छे दोस्त मिले जो मेरी तरह समान रूचि रखते थे! जिनके साथ खुल कर अपने विचार रख सकता था! बहस कर सकता था! 

Q) - जीवन और लेखन में किन कलाकारों, लेखकों और लोगो को अपना आदर्श मानते हैं?
अनुराग -  राइटिंग में अनुपम जी, वाही जी और संजय जी को मैं अपना आदर्श मानता हूँ! आर्टिस्ट में अनुपम जी, मनु जी का कोई तोड़ नहीं है!

Q) - अबतक की आपकी सर्वश्रेष्ठ रचना किसे मानते हैं?
अनुराग - जलजीवनी को मैं अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना मानता  हूँ! ये कहानी मैंने बहुत मन से लिखी थी और भेड़िया से मानसिक जुड़ाव होने  के बाद ये एकमात्र ऐसी स्टोरी है जिसकी परिकल्पना और लेखन सबकुछ मेरा अपना था!

Q) - कई पाठकों को शिकायत है कि आपका काम काफी कम देखने को मिलता है, उनसे क्या कहेंगे?
अनुराग - इसको आप मेरा आलस्य कह सकते हैं या मन की दुविधा! जब तक कोई कांसेप्ट मुझे रोमांचित नहीं करता मैं उससे जुड़ नहीं पाता! मैंने बेमन से भी कई बार लिखने की कोशिश की है पर या तो वो पूरी नहीं हो पाती या फिर आशानुकूल नहीं होती!

Q) - आगामी प्रोजेक्ट्स के बारे में कुछ बताएं। 
अनुराग - सर्वनायक विस्तार की आगामी कहानी पर काम कर रहा हूँ!

Q) - युवा लेखकों के लिए आपके क्या सुझाव हैं?
अनुराग - एक ही सुझाव है एडिटिंग प्रोसेस से भयभीत न हों! आपकी कहानी कितनी भी अच्छी हो उसमें गड़बड़ियां सम्भव है! उनको दूर करके ही आपका बेस्ट बाहर आयेगा! इसलिए बीच में ही कोशिश करना बन्द न करें!

Q) - कॉमिक्स परिदृश्य में आपके आने के बाद से क्या बदलाव महसूस किये?
अनुराग - कॉमिक्स अब सहज रूप से उपलब्ध नहीं होता! और अब ये आम लोगों की पहुँच से दूर हो चुका है!

Q) - कॉमिक बेस के सिकुड़ने का क्या कारण है और आपके मत में स्थिति में किस तरह सुधार किया जा सकता है?
अनुराग - कई कारण है! नए रीडर्स का न जुड़ना! पुराने रीडर्स का दूर जाना! महंगा और सहज उपलब्ध न होना! कहावत है जो दिखेगा वही बिकेगा! कॉमिक्स कैरक्टर्स का एनिमेशन, टीवी सीरीज या मूवीज में न आ पाना! सुधार के लिए सबसे जरूरी है नए रीडर्स को जोड़ना! इसके लिए मोशन कॉमिक और एनिमेशन बननी चाहिए। बुक फेयर और कॉमिक कॉन जैसे इवेंट ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए। पेंटिंग कॉम्पिटिशन जैसी एक्टिविटी द्वारा भी छोटे बच्चों को कॉमिक्स से जोड़ा जा सकते हैं।

Q) - कॉसप्ले, कॉमिक कॉमिक इवेंट्स पर आपका क्या नजरिया है?
अनुराग - कॉस्प्ले और कॉमिक इवेंट्स कॉमिक इंडस्ट्री के लिए संजीवनी का काम कर सकते हैं। पर इसे छोटे शहरों में भी आयोजित करवाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि उन रीडर्स को भी कॉमिक्स से जोड़ सकें जो किन्ही कारणवश कॉमिक्स से दूर चले गए हैं।

Q) - कोई पुराना, बंद हो चुका किरदार लिखने का अवसर मिले तो किसे चुनेंगे?
अनुराग - राज कॉमिक्स में मैं निःसंदेह परमाणु को ही चुनूँगा। अगर दूसरे पब्लिकेशन की बात करूँ तो राम रहीम और तौसी।

Sunday, July 24, 2016

99 का फेर (कहानी) #mohitness


एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत हितेश कंपनी की तरफ से मिले टूर पर अपने माता-पिता को यूरोप के कुछ देश घुमाने लाया था। टूर के दूसरे दिन उसके अभिभावक सूरज कुमार और वीणा गहन विषय पर चिंतन कर रहे थे। 

सूरज कुमार - "टूर तो कंपनी का है पर फिर भी यहाँ घूमने-फिरने में काफी खर्चा हो जाएगा।"

वीणा - "हाँ! कल लंच का बिल देखा आपने? ऐसे तो इन 15 दिनों के टूर में हितेश 2-3 लाख खर्च कर देगा। आज से कम से कम लंच का खर्च तो बचा ही लेंगे हम...तुम्हे पता नहीं मैं घर से क्या लायी हूँ?"

कुछ देर बाद हितेश के कमरे के बाहर होटल स्टाफ के कुछ लोग खड़े थे। वीणा ने लंच बचाने के लिए कमरे में ही मैगी नूडल बनाने का प्रयास किया, जिसकी गंध और धुआं आने पर हाउसकीपिंग ने होटल मैनेजर को रिपोर्ट किया। मैनेजर को भारी-भरकम जुर्माना चुका कर हितेश सहमे हुए माँ बाप के पास पहुंचा। 

हितेश - "किसके लिए बचा रहें है आप लोग पैसा और कब तक बचाते रहेंगे? बिना पैसे का बोझ रखे सांस लेना कितना मुश्किल है? लाखो में कमाता हूँ और अगर निठल्ला होता तब भी बैठ कर खाता पूरी ज़िन्दगी, इतना पैसा-प्रॉपर्टी सब जोड़ रखा है आप दोनों ने! कम से कम जीवन के एक पड़ाव में तो इस निन्यानवें के फेर से निकलिए। मैं आपका बच्चा हूँ और मुझे यह बात बतानी पड़ रही है आपको जबकि उल्टा होना चाहिए। आपको पता है यह होटल, घूमना, प्लेन की टिकट सब मैंने खरीदा क्योकि मुझे पता था अगर टूर कंपनी की तरफ से न बताता तो आप लोग कोई न कोई बहाना बना देते।"

फिर हितेश और उसके माता-पिता ने पिन ड्राप साइलेंस में मैगी खायी। 

समाप्त!
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- मोहित शर्मा ज़हन

Tuesday, July 19, 2016

टप...टप...टप...(हॉरर कहानी) #mohitness


चन्द्रप्रकाश को पानी बहने से चिढ थी और पानी बहना तो वो सह लेता था पर कहीं से धीमे-धीमे पानी का रिसना या नल से पानी टपकना...

टप...टप...टप...

जैसे हर टपकती बूँद उसके मस्तिष्क पर गहरे वार करती थी। जब तक चन्द्रप्रकाश पानी का टपकना बंद न कर देता तब तक वह किसी बात पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता था। कभी भी 1 मिनट से ज़्यादा नहीं हुआ होगा जो वह पानी बहने पर दौड़कर नल बंद करे न गया हुआ। अगर कुछ ही सेकण्ड्स में कोई बात सिर में दर्द करने लगे तो किसी की भी प्रतिक्रिया ऐसी ही होगी। 

टप...टप...टप...

एक छुट्टी के दिन वह घर में अकेला था और बाथरूम की टंकी बहने लगी। वह अपनी धुन में तुरंत उसे बंद कर आया। फिर एक-एक कर के घर के सभी नल बहते और वह खीज कर उन्हें बंद कर आता। एक-दो बार उसे भ्रम हुआ की बाथरूम में या बाहर के नल के पास उसने किसी परछाई को देखा पर मोबाइल पर व्यस्त उसने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।

टप...टप...टप...

लो हद ही हो गयी, अब रसोई का नल चलने लगा। चन्द्रप्रकाश के सिर में दर्द शुरू हो चुका था, उसने रसोई की टंकी कसकर बंद की और मुँह उठाया तो देखा दीवार से चिपकी चिथड़े हुए शरीर और सफ़ेद रक्तरहित चेहरे वाली लड़की उसको घूर रही है। डर के झटके से चन्द्रप्रकाश पीछे जाकर गिरा। लड़की ने हल्की मुस्कान के साथ नल थोड़ा सा घुमाया...

टप...टप...टप...

अब चन्द्रप्रकाश का दिमागी मीनिया और सामने दीवार पर लटकी लड़की का डर आपस में जूझने लगे। अपनी स्थिति में जड़ हाथ बढ़ाये वह खुद से ही संघर्ष कर रहा था। 

टप...टप...टप...

हर टपकती बूँद लावे की तरह सीधे उसके दिमाग पर पड रही थी। कुछ ही देर में उसका शरीर काफी ऊर्जा व्यय कर चुका था। 

टप...टप...टप...

किसी तरह घिसटते चन्द्रप्रकाश ने लड़की से नज़रें बचाते हुए टंकी बंद की और निढाल होकर गिर गया। अचानक लड़की गायब हो गयी, चन्द्रप्रकाश को लगा कि उसने अपने डर पर विजय पा ली लेकिन तभी पानी बहने की आवाज़ आने लगी और अत्यधिक मानसिक-शारीरिक दबाव में चन्द्रप्रकाश के दिमाग की नस फटने से उसकी मौत हो गयी। अपने जीवन के आखरी क्षणों में उसने जो पानी की आवाज़ सुनी वो बाहर शुरू हुई बारिश की थी पर कमज़ोरी के कारण उस आवाज़ में उसका दिमाग अंतर नहीं कर पाया। 
नल से पानी फिर टपकने लगा। 
टप...टप...टप...

समाप्त!

- मोहित शर्मा ज़हन

Monday, July 18, 2016

राष्ट्र-रक्षक (कहानी)


उफनते समुद्र से फामित देश के राष्ट्रपति और उनके परिवार को नौका में बचा कर लाते लाओस कोस्ट गार्ड (तटरक्षक) प्रमुख को उनकी टीम के सदस्य घृणा भाव से देख रहे थे। अब तक जिस व्यक्ति को उन्होंने अपना आदर्श माना, आज उसपर से उनका भरोसा उठ गया था। कुछ देर पहले प्रमुख को 2 आपातकाल संदेश आए थे और सीमित साधनों के साथ वो सिर्फ एक जगह जा सकते थे। अचानक ख़राब हुए मौसम में एक संदेश राष्ट्रपति की नाव से था और दूसरा विपरीत दिशा में डूब रहे एक छोटे जहाज़ से जिसमे लगभग 150 लोग थे। टीम राष्ट्रपति और उनके परिवार को तट पर पहुंचा कर उस जहाज़ की दिशा में गए और 120 में से 72 लोगो को बचा पाये। 48 लोगो की जान चली गयी पर सबको पता था कि तटरक्षक प्रमुख पर राष्ट्रपति की तरफ से इनामो की बौछार होने वाली है। सब कुछ निपटाने के बाद कोस्ट गार्ड प्रमुख ने अपना पक्ष बताने के लिए टीम मीटिंग रखी। 

"मैं यहाँ सबकी आँखों में पढ़ सकता हूँ कि आप लोग मुझसे नाराज़ हैं। सबको लगता है की राष्ट्रपति की जान बचाने का फैसला मैंने पैसे, प्रोमोशन के लालच में लिया और 5 लोगो को बचाने में 48 लोगो की जान गंवा दी। फामित देश में नाम का लोकतंत्र हैं और राजनैतिक उथल-पुथल मची रहती है। राष्ट्रपति के कारण इतने समय बाद कुछ समय से देश में स्थिरता आई है। अगर ये मर जाते तो गृहयुद्ध निश्चित था, जिसमे हज़ारों-लाखों लोग मरते। गृहयुद्ध की स्थिति ना भी होती तो सिर्फ नए सिरे से चुनाव होने पर पहले ही मंदी के दबाव में झुके देश पर अरबों डॉलर का बोझ पड़ता। जिसका असर पूरे फामित के लाखो-करोडो लोगो के जीवन पर पड़ता और उनमे किस्मत के मारे हज़ारों लोग भुखमरी, आत्महत्या, बेरोज़गारी में मारे जाते। किसी ट्रैन ट्रैक पर अगर कोई जीवित व्यक्ति हो तो क्या ट्रैन का ड्राइवर उसकी जान बचाने के लिए ट्रैन पटरी से उतारने का जोखिम लेगा? मुझे उन लोगो की मौत का बहुत दुख है और शायद आज के बाद मुझे कभी चैन की नींद ना आये पर उस समय मैं 2 में से एक ही राह चुन सकता था।"

समाप्त!
- मोहित शर्मा ज़हन

Saturday, July 16, 2016

परिवार बहुजन (कहानी)


एक छोटे कस्बे की आबाद कॉलोनी में औरतों की मंडली बातों में मग्न थी। 
"बताओ आंगनबाड़ी की दीदी जी, बच्चों के स्कूल की टीचर लोग हम बाइस-पच्चीस साल वाली औरतों को समझाती फिरती हैं कि आज के समय में एक-दो बच्चे बहुत हैं और यहाँ 48 साल की मुनिया काकी पेट फुलाए घूम रहीं हैं। घोर कलियुग है!"

"मैं तो सुने रही के 45 तक जन सकत हैं औरत लोग?"

"नहीं कुछ औरतों में रजोनिवृत्ति जल्दी हो जाती है और कुछ में 4-5 साल लग जाते हैं। फिर भी, क्या ज़रुरत थी काका-काकी को इस उम्र में यह सब सोचने की?"

यह बात सुनकर पास से गुज़रती उस दम्पति की पडोसी बोली। 

"अरे! उन कुछ बेचारों की तरफ से भी सोच कर देखो। आज इस कॉलोनी में कितने बूढ़े जोड़ों के साथ उनके बच्चे रहते हैं? इनके भी दोनों बच्चे बाहर हैं जो तीज-त्योहारों पर खानापूर्ति को आते हैं। अब इनकी बाकी उम्र होने वाले शिशु को पाल-पोस कर काबिल बनाने में कट ही जायेगी। घर में पैसे की तंगी नहीं है तो इनमे से किसी एक को या दोनों को कुछ होता भी है तो बच्चे का काम चल जाएगा।"

बात फैली और आस-पास के इलाके के आर्थिक रूप से ठीक दम्पति  प्राकृतिक या टेस्ट ट्यूब विधि से उम्र के इस पड़ाव में संतान करने लगे। पैसों और संपत्ति के लालच में कई बच्चे माँ-बाप का अधिक ध्यान रखने लगे कि कहीं उनके अभिभावक दुनिया में उनके छोटे भाई-बहन न ले आएं। 
समाप्त!
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मोहित शर्मा ज़हन

Wednesday, July 13, 2016

राष्ट्र-प्रकृति (कहानी) #mohitness


दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक सीन की राजधानी चीबिंग में 5 दिवसीय विश्व सम्मलेन होने वाला था जिसमे लाखों की संख्या में लोग आने की सम्भावना थी। लगभग उसी समय चीबिंग और आस-पास के क्षेत्रों में लगातार कुछ दिन भारी बारिश होने के आसार बन रहे थे। सीन के तानाशाह राष्ट्रपति ने वैज्ञानिकों से एक मौसमी प्रयोग करने को कहा जिस से इन 5 दिनों के सम्मलेन में मौसम का कोई व्यवधान ना पड़े। बड़े कार्गो हवाई जहाज़ों की मदद से लगातार हवा की ऊपरी परतों में रसायन छोड़े गए और तरह-तरह के वैज्ञानिक चोचले हुए। आखिरकार दबाव का क्षेत्र बदला और बादल-बरखा चीबिंग से छितर गए। 

सम्मेलन अच्छी तरह निपटा और अहम मौके पर मौसम को मात देने की ख़ुशी में राष्ट्रपति छुट्टी मनाने देश के तटीय छोर पर आ गए। दबाव के क्षेत्र में बदलाव से देश का वातावरण उलट-पुलट हो गया। विश्व सम्मलेन में मौसम से की गयी छेड़छाड के कारण अचानक एक ऐसा तूफ़ान तेज़ी से सीन के तटीय क्षेत्रों की तरफ खिंचा चला आया जो सामान्य स्थिति में समुद्र तक सीमित रहता। ग्लाइडर पर प्रकृति का आनंद ले रहे राष्ट्रपति का प्रकृति ने आनंद ले लिया और उन्हें एक क्षतिग्रस्त न्यूक्लियर संयंत्र के कोर में ला पटका। सीन में भारी जान-माल का नुक्सान हुआ और बचाव कर्मियों ने विकिरण स्नान किये राष्ट्रपति को कोमा की हालत में पाया। 

समाप्त!

- मोहित शर्मा ज़हन

Tuesday, July 12, 2016

Beta Testing Units (Indian Comics)

नमस्ते! यह विचार काफी समय से मन में है और संजय गुप्ता जी से साझा कर चूका हूँ हालांकि उस समय विस्तार से समझा नहीं पाया था पर जितना उन्होंने सुना था उन्हें पसंद आया था। मित्रों, प्रो रसलिंग आप देखते होंगे या उसके बारे में थोड़ा बहुत अंदाज़ा होगा। वर्ल्ड रसलिंग एंटरटेनमेंट या डब्लू.डब्लू.ई. के अलावा अमेरिका और विश्व में कई छोटे-बड़े रसलिंग प्रोमोशन्स हैं। दक्षिण अमेरिका, जापान और यूरोप में कुछ राष्ट्र स्तर की कंपनी कई दशकों से लोगो का मनोरंजन कर रहीं हैं। इन बड़ी कंपनियों की सफलता इनके रोस्टर (इनके लिए काम करने वाले सभी रसलर) और इनकी शैली पर निर्भर करती है। अपने शोज़ में 2 लोगो के बीच में फ्यूड (रंजिश) बनाने के लिए लड़ाई के अलावा एक सीरियल की तरह यहाँ कई सेगमेंट वाली स्टोरीलाइन होती है, जिसमें रसलिंग के दांव-पेंच के साथ अभिनय, जनता में अपना पक्ष रखना जैसी बातें ज़रूरी होती हैं। इस सबकी मदद से व्यक्ति एक पहलवान से एक किरदार बनता है जो लोगो से अच्छी या बुरी चरम प्रतिक्रिया निकलवाता है। जिसे लोग जीतते हुए या बुरी तरह मार खाते हुए देखना चाहते हैं।

डब्लू.डब्लू.ई. जैसे बड़े प्रोमोशन नए या सीख रहे पहलवान को पहले अपनी डेवलपमेंटल टेरिटरी भेजते हैं। यहाँ सुरक्षित रसलिंग छोटे-छोटे गुर सीखने के अलावा रसलर अपनी क्षमता अनुसार यह जान पाता है कि वह क्या कर सकता है? कौन से किरदार उसपर बेहतर लगेंगे, क्या पहनावा होना चाहिए, बोलने की कौनसी शैली उसपर फब्ती है आदि। इतना ही नहीं अगर किसी अन्य कंपनी से कोई जाना-पहचाना सितारा आता है तो पहले उसे भी डेवलपमेंटल यूनिट में समय बिताना पड़ता है ताकि वो कंपनी के माहौल, शैली से सामंजस्य बिठा सके। अब आती है पते कि बात, अन्य क्षेत्रों की ट्रेनिंग से उलट यहाँ रसलर जनता के बीच और टेलीवजन पर शोज़ करते हैं, सीखते हैं। इसका मतलब मुख्य कंपनी के स्केल से छोटा दूसरे दर्जे का शो जिसमे लोग आते हैं, टेलीविजन पर प्रसारित होता है। डब्लू.डब्लू.ई. में NXT ऐसा शो है, जो कंपनी को काफी मुनाफा और पब्लिसिटी देता है। इन ट्रेनिंग यूनिट्स के कुछ फायदें हैं -

1. अगर ट्रेनिंग यूनिट अच्छा करती है तो मुख्य कंपनी श्रेय लेती है कि "आखिर यूनिट किसकी है?" और अगर यूनिट का प्रदर्शन अच्छा नहीं तो भी मुख्य कंपनी उसको दोयम दर्जे की ट्रेनिंग यूनिट बता कर पल्ला झाड़ लेती है कि ट्रेनिंग फेज में ऊंच-नीच चलती है।
2. इस माध्यम से बहुत से ऐसे प्रयोग किये जा सकते हैं जो मुख्य कंपनी के प्रारूप में संभव नहीं या जिनपर शक है कि यह प्रयोगात्मक आईडिया चलेगा या नहीं? फिर वही ऊपर लिखी बात प्रयोग सफल हुआ तो मुख्य कंपनी के चैनल में वाहवाही लो, नहीं हुआ तो आई-गयी बात!
3. यहाँ कई युवा, प्रतिभावान लोगो का काम देखने का मौका मिलता है। 2 या अधिक लोगो के साथ किये काम का अवलोकन किया जा सकता है कि क्या ये दोनों मुख्य रोस्टर में फिट बैठेंगे।
4. यूनिट अगर चल निकले तो अच्छा पैसा भी बनाया जा सकता है।

मेरा विचार यह था कि ऐसी डेवलपमेंटल यूनिट की तरह अगर बड़ी कॉमिक कंपनी जैसे राज कॉमिक्स, कैंपफायर उभरते कलाकारों, लेखकों के लिए ऐसा कुछ करें तो यह सबके लिए फायदे का सौदा होगा। जैसे युवा कलाकार, लेखक, इंकर और कलरिस्ट की कॉमिक्स को अपनी वेबसाइट, पेज पर जगह देना या अलग नाम से (जैसे RC Gen-Next, Campfire Yuva) साइट और पेज पर पोस्ट करना, प्रिंट ऑन डिमांड या सीमित संख्या में प्रकाशित करना। इस से कलाकारों को बड़ी कंपनी का बैनर मिलेगा, 2 सेट या इवेंट के बीच में जो लंबा गैप होता है वो भर जाएगा और यह माध्यम ज़्यादा लोगों तक कॉमिक्स को पहुंचाएगा।
यह विचार कितना व्यवहारिक है? आप लोगो को यह जंच रहा है ज़रूर बताएं! धन्यवाद!

- मोहित शर्मा ज़हन

Thursday, July 7, 2016

Interview With Comics Artist Tadam Gyadu (Comics Reel)

Tadam Gyadu is a self learnt young emerging comics artist from Arunachal Pradesh, one of the north-eastern states of India. His second comics Brahmaand Vikhandan released this month, previously he was credited in Adrishya Shadyantra earlier this year, both comics of Nagraj by Raj Comics. He has been a part of many independent comics and freelance works in past and goes by the pseudonym PencilDude.
In an exclusive interview with Mohit Sharma, Tadam talks about his art and inspirations.
Q) – Who inspired you to become an artist & how old were you when you started sketching/art?
Tadam – I always had a keen interest in art. When I was in kindergarten, long before comics came into my life, I used to copy the illustrations from my textbooks. Apples, bananas, planes and stuff, We also had some “life of the Buddha” books in our home, I copied their illustrations too. later, when passed to class three, i got my first comic book- So Ja Nagraj – illustrated by Anupam Sinha sir. i instantly fell in love with comics. And started copying those illustrations. I think I was 9 or 10 years old when I first started drawing comic heroes.
Q) – What is the story behind your pseudonym PencilDude?
Tadam – Actually there is no story behind my pseudonym. I know some great artists and writers like munshi premchand , artgerm, manu sir etc who use pseudonyms and I find it kinda cool to have one. So I did some brainstorming and came up with my very own alias – pencildude.
Q) – Were you involved in any creative, extra curricular activities in school?
Tadam – I used to sing, dance, draw and write at school. We had some good extra- curricular activities in school and I took part in most of them except sports, I am terrible at it.
Q) – What is/are your favorite genre(s)?
Tadam – My favorite genres are fantasy and sci-fi with some philosophy.
Q) – Other hobbies and pastimes besides art?
 Tadam – Other than art, I like to enjoy music, movies and books.
Q) – Tell us more about your upcoming projects?
Tadam – As of now, I am not involved in any project. I am focusing on honing my skills. So I am taking some time off. I will be back pretty soon.
Q) – Who are your role models or people you look up to in art & life (and why)?
Tadam – In art, there is not a particular one whom I consider my role model. Anupam sir, who drove me into comics art. Sir David finch, from whose tutorial videos I learnt a lot of technical things of comic art. Dheeraj dkboss kumar, Lalit Sharma, Sumit kumar, abhishek malsuni sir are some who taught me many things. In short, I follow whoever is good and try to use their plus points into my own style. In life, my mother and my Grandpa are my role models. They inspire me to do whatever I do and I would not have been I, if they were not with me.
Q) – Where do you see yourself 10 years from now?
Tadam – I see myself practicing to make myself better.
Q) – What advice would you give to young artists who want to pursue art as career?
Tadam – Well, I am an amateur myself, so I don’t have anything of my own to say. But I would like to pass on something, which the great Mukesh singh had said in an interview for the newcomers : be the first __________. (fill your name on the blank).
Q) – Your best artwork till date?
Tadam – I can’t decide which is the best artwork I did till date because whichever artwork I do, at first it seems pleasing but when I look at it after few days then I laugh at myself, seeing so many silly mistakes. So, I guess that best artwork is yet to come.
Q) – Tell us more about Arunachal’s art scene.
Tadam – As I said already, there is not much scope for an artist in Arunachal. There are no good art colleges, neither are there any publishing houses or production houses which would hire artists. The aspiring artists, who do not have much knowledge about the carriers they can pursue in art, either get interested in other things or become sign board painters, because there is nobody who can guide them. I hope people will get aware soon.
Q) – Share some interesting items from your ‘Bucketlist’ & few random facts about yourself?
Tadam – Let me share them one by one.  (a) I myself came to know about art as a carrier after I passed out class 10 and went out for further studies in Assam. (b) Once I was planning to be an Engineer. Thank God, I wasn’t that Good in studies. (c) I don’t like living in cities, maybe because I lived most of my life in village. I think that’s all in my mind right now.
Interview by Mohit Trendster

Wednesday, July 6, 2016

लोड शैडिंग (कहानी) - मोहित शर्मा ज़हन

यमराज के सामने एक छोटे द्वीप समूह देश का बड़ा अर्थशास्त्री (इकोनॉमिस्ट) बंदी बना खड़ा था। उसपर (उस व्यक्ति के भूत पर) 700 लोगो को डराकर मारने का आरोप था, जो उसने तुरंत मान भी लिया था। उसने बताया कि मरने के बाद उसकी अतृप्त आत्मा देश की अर्थव्यवस्था की बिगड़ी हालत से परेशान थी। दुनिया से जाते-जाते उसने सोचा कि देश के लिए कुछ कर के जाना चाहिए। तब उसने कई परम्यूटेशन-कॉम्बिनेशन पर विचार किया और एक तरीका सोचा जो उसके हिसाब से देश की अर्थव्यवस्था से भार कम कर सकता था। 

मॉर्निंग या इवनिंग वॉक को जाने वाले बुज़ुर्ग लोगो को वह अपना मुँह बिगाड़कर और मुंडी, खून की कटोरी जैसे प्रॉप्स के साथ डरावना धप्पा करता था। यह भूतहा धप्पा इतना डरावना होता था कि ज़्यादातर बुड्ढे-बुड्ढीयां हार्ट अटैक से मर जाते। 2 दिन के अंदर उसने देश के 700 वरिष्ठ नागरिकों को चलता किया। यह असामान्य गतिविधि ऊपर देवलोक में देखी गई और उसे तुरंत बंदी बना लिया गया। 

यमदूत ने अर्थशास्त्री को समझाया - "आइडिया कागज़ पर अच्छा है पर जीवनचक्र में कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। इन 700 लोगो में 246 लोगो ने देर से शादी की थी जिस कारण इनमे से कई की कई ज़िम्मेदारियाँ अभी पूरी नहीं हुई थी। इनमे कई लोग सेवानिवृत होने के बाद भी देश के लिए लाभ वाले काम कर रहे थे। तो इतना आसान नहीं है कि बुड्ढे उड़ा दो और देश का भार कम। बूढ़ा व्यक्ति समाज का बोझ नहीं ज़रूरत है। अब तुम्हारी सज़ा यह है कि इन 700 बुड्ढे-बुड्ढीयों की लिखा-पढ़ी तुम ही करोगे। नासपिटे! किसने दी तुम्हे डॉक्टरेट की उपाधि? जूत ही जूत बजा दें उसके!"

समाप्त!

Tuesday, July 5, 2016

बाहरी परत (कहानी) - मोहित शर्मा ज़हन

ओलम्पिक 800 मीटर दौड़ क्वालीफाइंग राउंड में रमन ने गिर कर भी रस पूरी की और क्वालीफाई किया। हालांकि, गिरने के दौरान रमन की कुछ पसलियां टूट गईं, और अंदरूनी चोटें लगी। अन्य राउंड के दौरान यह अपडेट दुनियाभर में दर्शकों को मिली। उन्हें यह भी बताया गया कि रमन ने फाइनल राउंड  में दौड़ने का फैसला लिया है। इस हालत में और दौड़ने का मतलब था नुकसान को बढ़ाना। अपने घर पर ओलम्पिक खेलों का सीधा प्रसारण देख रहा आलोक बोला - "सरफिरा है यह इंसान! दौड़ के लिए जान दांव पर लगा रहा है।" 

फाइनल में रमन ने दर्द से लड़ते हुए रजत पदक जीता। फिर साक्षात्कार के एक सवाल में जैसे उसने घर बैठे आलोक को उत्तर दिया। 

"मेरी उम्र 29 साल है, 4 साल रुकने का कोई औचित्य नहीं था क्योंकि 33 वर्ष का एथलीट अब ओलम्पिक की इस श्रेणी में नहीं दिखता। पिछले 22 वर्षों से मैं इस मंच पर आने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा हूँ। रोज़ सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक मेरी ट्रैनिंग, खान-पान, विचार सब ओलम्पिक मेडल की तरफ केंद्रित रहे। यहाँ आने के लिए मैंने दोस्तो के कई प्लान मिस किए हैं, मेरे जीवन में कॉलेज-प्यार जैसे पड़ाव मैंने स्किप कर डाले, परिवार के साथ तसल्ली से बैठकर बातें करना-समय बिताना छोड़ा है....सपनो की चुभन से रोज़ चैन की नींद छोड़ी है। अब यहाँ तक आकर कैसे लौट जाता? मैंने आगे के जीवन में चैन की नींद चुनी, मैंने अपने घरवालों, मित्रों और चाहनेवालो से आँखें मिलाना चुना।"

आलोक को समझ आया कि अक्सर बातों और लोगो की दिखाई दे रही बाहरी परत के अलावा भी दुनिया होती है। 

समाप्त!
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