अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Monday, December 7, 2015

Micro Fiction Experiment # 04 (Sports) #mohitness


*) - कुछ खिलाडी असल रिकार्ड्स की जगह सिर्फ घरेलु, जूनियर्स लेवल और किवदंतियों का हिस्सा बनने के लिए दुनिया में आते है। हाँ...ये बात और है जिसने भी उन्हें खेलते देखा, वो उन्हें कभी भुला नहीं सका। 

*) - जब फिटनेस थी तब अक़्ल का अकाल था। अब अक़्ल आयी तो शरीर पेट कटा ष सा हो लिया...भक!

*) - कहने को तो रजत पदक, कांस्य पदक से ऊपर माना जाता है पर मेडल सेरेमनी के बाद पता नहीं क्यों कांस्य पदक अर्जित करने वाले खिलाडी की नींद मिलीसेकेंड, आधे पॉइंट् को याद कर करवट बदलते रजत पदक जीतने वालो से गहरी होती है। सबसे बदतर स्थिति, सेमीफाइनल में आकर पदकरहित रहने वालों को तो भैया पूरे मोहल्ले की अनिद्रा एकसाथ लग जाती है। 

*) - टीम के वर्ल्ड कप फाइनल में पहुँचने का ऐसा जश्न मनाया कि नाच-नाच में टीम के MVP का कंधा डिस्लोकेट हो गया और बाद में उसकी अनुपस्तिथि में कप हारे सो अलग। बन ली नचनियां?... ले ले कददू अब...हप!

*) - कल जो अपने प्रशंषको को अक्सर अपनी सिक्योरिटी से पिटवा दिया करता था, आज अपने धूमिल चर्चों के पुराने अख़बारों की कटिंग फेसबुक-ट्विटर पर बड़ी शिद्दत से स्कैन करके डालता है। 

*) - एक औसत देश में पैदा हुआ विश्वस्तरीय खिलाडी अक्सर किसी विश्वस्तरीय (मापदंड देने वाले) देश में पैदा हुए औसत खिलाडी से हार जाया करता है। 

*) - कुछ लोग अपने 5-7 प्रदर्शनों के बल पर सुपरस्टार्स बन जाते है जबकि कई पूरे करियर मज़दूरों की तरह तिनका-तिनका यश-सम्मान बटोरते है।

*) - इंसान के एक से अधिक पसंदीदा खेल होने चाहिए। अगर किसी खेल में निराशाजनक सीज़न चल रहा हो तो अन्य जगह से कुछ दिलासा सा मिल जावे। 

*) - इस खेल में चोटिल होना आम बात है, पर बीच मैदान में उसकी चीत्कार बता रही थी कि वो चोट अलग थी। करियर का क़त्ल करने वाली विरल चोट! 

*) - अगर वो 35 साल तक रिटायर होती तो महान खिलाडी कहलाती पर 42 वर्ष तक खेल को घसीट कर उसने अपने सर्वोत्तम रिकॉर्ड को साधारण बना डाला। 
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#mohitness #mohit_trendster #trendybaba #freelancetalents

Friday, December 4, 2015

कॉमिक फैन फेस्ट (शुद्ध-स्वदेशी) Comic Fan Fest #rant

Comic Fan Fest Page - https://web.facebook.com/ComicFanFestIndia/ वर्ष 2006 से मैं ऑनलाइन सक्रीय हूँ खासकर लेखन, कला और कॉमिक्स से जुड़े ग्रुप्स, कम्युनिटीज और फ़ोरम्स पर। इस क्रम में समय-समय पर कई इवेंट्स में जाने का मौका मिला। इन 9-10 वर्षों में अनेको प्रतिभावान कलाकार, लेखक और पैशनेट प्रशंषक देखें, उनमे से कुछ को सीढ़ी दर सीढ़ी सफलता पर चढ़ते, अपने टैलेंट से दुनिया को विस्मित करते देखा। यहाँ मैं ऐसे फैंस, कला-साहित्य-कॉमिक्स प्रेमियों की बात करूँगा जिनके दीवानेपन ने मुझे चौंकाया और प्रेरित भी किया। यह लेख सिर्फ कॉमिक्स पर केंद्रित करता हूँ। वैसे तो कॉमिक्स फैन्स का वर्गीकरण बहुत तरह से हो सकता है पर सिर्फ एक्टिव फैन्स की बात करें तो कुछ लोग बड़े जोश में एंट्री मारते है ग्रुप्स, डिस्कशन बोर्ड्स आदि पर और कुछ समय के लिए सारे थ्रेड्स जैसे हाईजैक कर लेते है। ऐसा लगने लगता है कि वाकई ये कॉमिक्स जगत में रेवोलुशन ले आएंगे और कई प्रकाशन इन्हे अधिकृत या अनधिकृत रूप से अपना कंसल्टेंट नियुक्त कर देंगे। कुछ हफ्तों में इन्हे ऐसा सुपीरियोरिटी काम्प्लेक्स चढ़ता है कि ये स्वयं को अन्य साथियों यहाँ तक कि नए या छोटे प्रकाशनों से जुड़े क्रिएटिव्स तक से ऊपर समझने लगते है। धीरे-धीरे इनकी हवाई बातें और ऊपरी जुनून जब ठंडा पड़ता है 2-3 वर्षो बाद इनका पता नहीं चलता कहाँ गए। इनके राखी सावंत एन्टिक्स के कारण दूसरे फैन्स को नुक्सान होता है। इनके अलावा अपनी नौकरी, दिनचर्या में व्यस्त फैन्स का एक बड़ा हिस्सा रीड ओनली मोड़ पर रहता है और कभी कबार अपनी उपस्थिति बताता रहता है। अब आते है प्रशंषको के बहुत छोटे पर सबसे ख़ास वर्ग पर जो अपनी जॉब, परिवार व अन्य ज़िम्मेदारियों के बावजूद निरंतर कॉमिक्स प्रेम में डूबे रहते है और निस्वार्थ बहुत से अन्य फैन्स की मदद करते है। मेरा सौभाग्य है कि मैं कॉमिक फैन फेस्ट इवेंट के ज़रिये ऐसे ही एक ग्रुप से रूबरू हो पाया। जिस समाज में कॉमिक्स महत्वहीन समझी जाती है, पर ये लोग किसी किरदार, कॉमिक, कलाकार पर ऐसे सब भूल के मग्न होकर बातें करते है कि कुछ देर को बाकी दुनिया इनकी कॉमिक्स की दुनिया के आगे बौनी लगती है। किसी नयी-पुरानी कॉमिक का नाम लेने पर जाने कहाँ से खंगाल कर ये लोग कवर की डिटेल्स से लेकर अंदर पैनल्स तक का ब्यौरा दे देतें है। आँखों में ऐसी बेचैनी जैसे गिरवी रखे घर-बिज़नस का मुद्दा हो लिये, भूले बिसरे कलाकारों पर चिंतन-मनन और उनकी खैर खबर पर चर्चा चलती है। इसी दिशा में इवेंट के चौथे संस्करण में एक गुमनाम पर गुणी कलाकार श्री मोहन शर्मा जी को सम्मानित किया गया। आशा है आगे भी यह क्रम जारी रहेगा। मैं खुद को एक कॉमिक प्रेमी मानता हूँ पर इन लोगो को देखकर लगता है कि ये है गेम के असली ड्रैगन्स, मैं तो इनके आगे छोटा-मोटा गुंडा हूँ। बीते कुछ वर्षो में यह ग्रुप बहुत से लोगो को प्रेरित करता आ रहा है, मेरी बात ना माने तो ये बात आपको कई कॉमिक्स कलेक्टर्स बताएँगे और अनेको इवेंट्स पर इनके फ़ोटोज़ भी या तस्सल्ली ना हो तो एक बार निष्पक्ष होकर इनसे मिल लें। स्पेशल मेंशन रवि यादव, संजय सिंह, आकाश, मोहनीश, अयाज़ और जय खोहवाल जी का जो हर बार ये इवेंट जीवंत बना देते है। इनके लिए कामचलाऊ से बेहतर काम ना होना है क्योकि इवेंट के प्रारूप से लेकर गुडीज़ के डिज़ाइन तक जैसी कई चीज़ों में ये बेचारे अपने जाने कितने वीकेंड्स और छुट्टियाँ गवां देते है। ऑनलाइन और असल जीवन में कॉमिक कम्युनिटीज में अपने अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ की ये लोग बहुत कुछ है पर नकली कतई नहीं है (जैसा पिछले कुछ दिनों से मैंने कुछ पोस्ट्स पर देखा)...और अगर नकली होना यह होता है तो भगवान सबको नकली बनायें। - मोहित शर्मा ज़हन #comicfanfest #indiancomics

Monday, November 30, 2015

Micro Fiction Experiment # 2 (Mohit Trendster)



Micro Fiction Experiment, Theme: Science

*) - कृतिम रूप से लैब में निर्मित चींटी, दल में घुसपैठ करने के बाद समझ नहीं पा रही थी कि उसकी प्राकृतिक बेवकूफ बहनो में मेहनत और अनुशासन की इतनी सनक क्यों सवार है। 
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*) - रोज़ाना ज़िन्दगी से छोटे-बड़े समझौते करते हुए जिस प्रयोग में उसने अपना जीवन समर्पित कर दिया, जब वह लगभग पूर्णता पर था...तब खबर आयी कि वैसा ही प्रयोग दुनिया के किसी साधन-संपन्न वैज्ञानिक ने कर दिया है। 
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*) - जो प्रजातियां प्रयोग के लिए चाहिए थी, असिस्टेंट उनके बजाये दिहाड़ी मज़दूर ले आया। 
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*) - जेनेटिकली मॉडिफाइड क्रॉप्स (जनुकीय परावर्तित अन्न) फ़ल-सब्जी के सेवन पर व्रत में मनाही थी। सूखा ग्रस्त क्षेत्र में भी उस भोजन का आधार जीवाणु की कोशिका का मांसाहार अंश धर्म-भ्रष्ट करने को काफी थी। 
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*) - जिस हथियार के आविष्कार से उसे विश्व में नाम, मान-सम्मान मिला.....बाद में उसे बनाने की ग्लानि में ही उसने अपनी जान ली। 
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*) - आज को जिन युगों ने इतनी रफ़्तार दी, खैरात में मिली उन रफ्तारों के योग पर सवार यह पीढ़ी पुराने युगों की धीमी रफ्तारों का कितनी आसानी से मज़ाक बना लेती है!
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Wednesday, November 11, 2015

पैरानॉयड मीडिया - मोहित ट्रेंडस्टर

Y - "आखिर हम मीडिया वालो से समस्या क्या है आपको? जो हो रहा है देश में वही तो दिखाया जाता है।"

Z - "तो भाई साधारण लेंस इस्तेमाल क्यों नहीं होता? मैग्नीफाइंग ग्लास क्यों उपयोग करते है आप मीडिया वाले?"

Y - "मैं समझा नहीं!"

Z - "एक उदाहरण, हिंसक अपराधो में भारत का स्थान दुनिया में कहीं बीच में 70-80 रहता है, तो दुनिया को और देशवासियों को ऐसा क्यों लगता है कि ऐसे अपराधों में भारत नंबर एक है? आपकी पैरानॉयड या सेलेक्टिव रिपोर्टिंग के कारण! जैसे एक 800 जनसँख्या वाले इलाके में 50 अपराध होते है और किसी दूसरे 20000 जनसँख्या के इलाके में 500 अपराध होते है। इसका आशय यह नहीं कि 20 हज़ार वाला इलाका ज़्यादा बेकार है बल्कि यह है की 800 लोगो के इलाके में अपराध दर (6.25%) दूसरे इलाके (2.50%) से कहीं अधिक है, ऐसे ही भारत की 130 करोड़ जनता में कम अपराध दर भी दूसरे देशो की तुलना में एक बड़ी संख्या लगती है। पर जब पत्रकारिता नहीं आई तो गणित, अनुपात और तुलनात्मक समझ की क्या उम्मीद करें। आपकी वजह से देश वासियों में बेवजह हीनभावना, गुस्सा और भ्रम की स्थिति रहती है, साथ ही दुनिया भर में भारत से जुड़े सिर्फ नकारात्मक पहलुओं की तस्वीर बनती है। शायद इसी कारण हमसे कहीं छोटे राष्ट्रों में पर्यटन और विदेशी निवेश-व्यापार की स्थिति हमसे बेहतर है। फॉर अ चेंज, औरों पर ज़िम्मेदारी लादने के बजाये खुदपर लादो और सही दिशा में बदलाव लाओ।"

- मोहित शर्मा (ज़हन)

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Tuesday, November 10, 2015

अवचेतन क्रोध (कहानी) - लेखक मोहित शर्मा (ज़हन)

विदित अपने दोस्त नकुल को कुछ दिनों के लिए अपने घर रहने ले आया। नकुल एक मनोचिकित्सक था पर विदित के कहने पर उसे अपना परिचय एक  बेरोज़गार इंजीनियर के रूप में देना पड़ा जो कुछ साक्षात्कार देने के लिए एक हफ्ता विदित के घर रहने आया था। वजह थे विदित के पिता जो पुलिस निरीक्षक पद से कुछ महीनो पहले रिटायर हुए थे। विदित चाहता था कि नकुल उसके पिता के व्यवहार को ओब्ज़र्व करके उनके गुस्सैल, रूखी प्रवित्ति की वजह खोजे। 

हफ्ते भर बाद नकुल ने अपना निष्कर्ष अपने मित्र को बताया। 

"रिटायरमेंट के बाद अक्सर जीवन के इस चरण में ऐसा व्यवहार देखने को मिलता है। पर अंकल का केस अलग है। जीवनभर गावों, देहात में थानेदारी करने के कारण ये दिन के चौबीसों घंटे मुंशी-दीवान, सिपाही, मुखबिर, मुजरिम या आम जनता से घिरे रहते जो या तो इनसे डरते थे या उनका इनसे कोई मतलब रहता था। तो ना कभी इनकी बात काटी जाती, ना इन्हे कोई समझाने की कोशिश करता। कभी-कबार का ऊपर से अधिकारीयों का निरिक्षण इनकी दिनचर्या के आगे ना के बराबर होता होगा। इतने दशको तक ये रूटीन चलता रहा इसलिए अब अपने से अलग कोई और राय या इनकी बात काटता कोई भी इन्हे बर्दाश्त नहीं होता और अक्सर इनके गुस्से का इंस्टेंट नूडल लावा फ़ूट पड़ता है।"

विदित - "हम्म...ऐसा कुछ मुझे लग भी रहा था....फिर इस समस्या का क्या हल है?"

नकुल - "व्यक्ति को 100 प्रतिशत बदलने के बजाये धीरे-धीरे दशमलव में एक सामंजस्य बनाने लायक बीच की स्थिति तक लाने की कोशिश करो। छोटी बातों की टेंशन को उन तक आने से पहले निपटा दो। उनकी दिनचर्या में ध्यान बंटाने के लिए कुछ एक्टिविटीज़ जोड़ो। बस....और कभी-कभी डांट-फटकार, शिकायत सुन भी लो, हमेशा तुम या आंटी भी सही नहीं होते। "

समाप्त!

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Sunday, November 1, 2015

Friday, October 30, 2015

मित्रता की परीक्षा (बालकथा) - लेखक मोहित शर्मा (ज़हन)


मोहन बाज़ और चंचल हिरण राजन वन्य क्षेत्र की शान थे क्योकि अपनी बुद्धिमता और कौशल से वो दोनों लंबे समय से अलग-अलग और संयुक्त रूप से राजन जंगल के लिए कई सामान्य ज्ञान, विज्ञानं, लेखन, क्विज आदि प्रतियोगितायें जीतते आ रहे थे। उम्र और कक्षा बढ़ने के साथ उनकी प्रतियोगिताओं का स्तर बड़ा हो रहा था पर दोनों घनिष्ट मित्र अब भी पहले की भाँती विजयी हो रहे थे। 

राजन जंगल का नन्हू गिद्ध ऐसी प्रतियोगिताओं के लिए आवेदन करता पर मोहन और चंचल के कारण कभी उसके चयन नहीं हो पाता। नन्हू ने स्थिति बदलने के लिए दोनों में फूट डालने की सोची। उसने मोहन बाज़ से कहा कि चंचल पीठ पीछे उसकी निंदा करती है और चंचल को समझाया कि संयुक्त टीम प्रतियोगिताओं में मेहनत तुम करती हो पर श्रेय मोहन को मिलता है, इसके अलावा निंदा और अफवाह से नन्हू ने दोनों के कान भर दिए। धीरे-धीरे मोहन बाज़ और चंचल हिरण में द्वेष, ईर्ष्या की वजह से मतभेद होने लगे, जब भी स्थिति सामान्य होने को या सुलझने को होती तो नन्हू फिर से उनके मतभेद बढ़ा देता और एक दिन बात इतनी बढ़ गयी तीखी बहस के बाद दोनों ने मित्रता तोड़ ली। उन्होंने अपने टीम तोड़ दी और इस बात का असर उनके एकल प्रदर्शन पर पड़ा और दोनों एक के बाद एक प्रतियोगिता हारने लगे। जबकि नन्हू ने अपनी टोली के साथ राजन जंगल के प्रतिनिधित्व में उन दोनों की जगह ले ली। एक बार शेखी में नन्हू गिद्धने यह बात अपनी मंडली को सुनाई कि कैसे उसने दो मित्रों को अलग कर दिया। यह बात पास ही विश्राम कर रही नटखट गिलहरी ने सुनी और मोहन बाज़, चंचल हिरण को कह सुनाई। 

तब चंचल और मोहन में सुलह हुयी और उन्हें पता चला कि ईर्ष्या और संवाद की कमी के कारण कितना नुक्सान होता है। दोनों फिर साथ आये और उन्होंने नन्हू की टीम को हराकर राष्ट्रीय विज्ञानं ओलम्पियाड में क्वालीफाई किया। इस से मोहन, चंचल और हम सबको यह शिक्षा मिलती है कि बिना विचार किये और जाँच-पड़ताल किये दूसरों की बातों पर पूर्ण विश्वास नहीं करना चाहिए, साथ ही मित्रों में संवाद की कमी मित्रता तोड़ सकती है। 

समाप्त!

#mohitness #mohit_trendster #freelance_talents

Wednesday, September 16, 2015

Indian Superheroes Fake FB Convos


*) - Tiranga, Chacha Chaudhary

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*) - Anthony and Tiranga

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Monday, September 14, 2015

इंसानी गिद्ध (कहानी) - लेखक मोहित शर्मा (ज़हन)


"क्या अम्मा, कैसे हुआ यह?" सहानुभूति भरे स्वर में इलाके के नेता ने पूछा।"

"बस भईया भगवान की मर्ज़ी थी, उन्हें अपने पास बुला लिया।" बुढ़िया ने सुबकते हुए बताया।  

गाँव में एक वृद्ध की प्राकृतिक मौत के बाद यह नेता और इसके गुर्गे वैसी ही तेज़ी से वृद्धा के पास पहुंचे जैसे किसी ख़ुशी के अवसर पर जाने कहाँ से किन्नर आ जाते है। यह पहला मौका नहीं था, इस से पहले इस गाँव और आस-पास के गाँवो में अनेकों जगह नेता जी ऐसी शोक की घड़ियों का हिस्सा बने थे। 

नेता ने बात बनती देख काम जल्दी निपटाने का फैसला किया। "ओये सुदामा! अम्मा जी को पैसे दे और बॉडी को रखवा गाडी में तरीके से।"

अम्मा को ढाई हज़ार रुपये पकड़ा कर सुदामा एक खरीददार के जैसे हक़ से मृत शरीर की तरफ बढ़ा। 

 अम्मा संकोच से बोली - "बेटा ज़रा..."

नेता ने आदतानुसार बात काटी - "अम्मा, काका जी, मेरे भी पिता सामान थे। पूरी रीति से करेंगे उनका अंतिम संस्कार, अब कहाँ भागती फिरोगी इंतज़ाम के लिए बुढ़ापे में और यह पैसा सरकार दे रही है आपको, रख लो। यह तो आपका हक़ है।"

यह कहकर वृद्धा का आशीर्वाद लेते हुए टोली वहां से निकली। 

नेता - "वाह! आज काम कितनी जल्दी हो गया, इस अम्मा की तरह बाकी सब नहीं मिलते घंटो झिक-झिक करते है। चल अब संभावली को मोड़ गाडी।"

एक जूनियर गुर्गा बोला - "नेता जी वहां लगातार पाँच किये है, किसी और गाँव चलते है।"

फिर इस टोली ने एक अलग गाँव में जगह छाँट कर मृत वृद्ध के गले में फंदा डाल के पेड़ से लटका दिया। अगले दिन तहसीलदार एवम बाकी अधिकारीयों को बताया गया कि एक और कर्ज़े में डूबे किसान ने फसल बर्बाद होने की वजह से आत्महत्या कर ली। वृद्धा के नाम पर मिले एक लाख रुपये का मुआवज़ा कुछ सरकारी अफसरों के साथ बाँट कर नेता एंड पार्टी ने बचे 50 हज़ार गटके और किसी दूर दराज़ इलाके में अगली मौत का इंतज़ार करने लगे। पर नेता अनुसार वो शरीफ था क्योकि कम से कम वो मुआवज़े के लिए लोगो के मरने का इंतज़ार तो करता था, नहीं तो कुछ जगहों पर ऐसे नेता बूढ़े, लाचार और बेसहारा लोगो की हत्या तक कर रहे थे सरकार से राहत राशि पाने के लिए। 

समाप्त!

- मोहित शर्मा (ज़हन)

Thursday, September 10, 2015

A Minus vs. B Plus - (#mohitness)


A Minus - "जब-तब लोगो को कहते सुनता हूँ कि फलाना 25 वर्षों से हमारी समिति के सदस्य है, यह वरिष्ठ सदस्या ढिमकानी बहन जी दशको से इस संस्था की सेवा करती आ रही है। इन उदाहरणों में थोड़े वेरिएशंस और जोड़ लो।"

B Plus - "हाँ तो दिक्कत क्या है, कोई वर्षो तक कहीं अपना योगदान दे तो उसका सम्मान होना चाहिए। यह तो लग रहा है तुम जलनवश कह रहे हो प्रादेशिक समिति पुरूस्कार समाहरोह में ऐसे वरिष्ठ लोगो कि धूम देख कर।"

A Minus - "जलन से नहीं अपने विश्लेषण से कह रहा हूँ। अब देखो जैसे तुम समिति से लगभग 4-5 सालों से जुड़े हो जिसमे तुम हर सप्ताह 1-2 बार समिति के कार्यक्रमों, कैंप्स और यहाँ तक कि अवकाश के दिनों में ग्रामीण टूर्स पर भी जाते हो। यानी लगभग सवा 300 सश्रम हाज़िरीयां, अब कई "वरिष्ठ" सदस्य ऐसे होते है जो खानापूर्ति के लिए समिति के वार्षिक समारोह और इक्का-दुक्का ख़ास मौकों पर दिख जाते है और फिर कहते है हम 20 साल से समिति की सेवा में लगे है, यानी 50-60 हाज़िरियां। अब बताओ किस कोण से वो तुमसे अधिक वरिष्ठ हुए?"

B Plus - "पर उनके घर-परिवार भी होंगे, अन्य ज़िम्मेदारियाँ होंगी, क्या पता उनमे कोई-कोई पांच-सात समितियों का भी सदस्य हो। ऐसे कुछ निर्णय सुना देना ठीक नहीं!"

A Minus - "यहीं छिपी है असल बात, जिसने जहाँ जितना योगदान दिया उसको वहां उस अनुपात में फायदा हो, नाम-मान्यता मिले। जो यहाँ नियमित आ रहे है निश्चित ही वो अपनी दूसरी ज़िम्मेदारियों से समय और योगदान बचा कर यहाँ लगा रहे है। अब यह थोड़े ही कि सचिन भी बन जाओ और न्यूटन भी हो लो हवा में। संख्याओं और तुलनात्मक बातों को समझने, उनके पीछे जाने की आदत नहीं है हम सबकी इसलिए आलस में बिना जाँचे फैसले लेते है, इस कारण कई सहायक किरदार भी सुपर हीरो-हीरोइन बना दिए जाते है। 

समाप्त!

- मोहित शर्मा (ज़हन) 

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Wednesday, September 9, 2015

छद्म मुफ्तखोरी - लेखक मोहित शर्मा ट्रेंडस्टर


"जीवन में कुछ भी मुफ्त का खाने वाले मुझे बिलकुल नहीं पसंद ! अरे मेहनत करो, संघर्ष करो दुनिया में, अपनी पहचान बनाओ।" नीतू ने पिकनिक में लंच करते हुए, यूँ ही डिस्कशन कर रही मित्रमण्डली के सामने अपने विचार रखे। 

माहौल हल्का करने के लिए उसकी पुरानी बेस्टी सरिता ने कहा - "देखो मैडम को मुफ्त का खाने वाले नहीं पसंद और बातों-बातों में परांठे के एक कौर में ढक कर मेरा आचार ही गायब कर दिया।"

सबके चेहरों पर मुस्कराहट आ गयी पर बातों को समझने में समय लगाने के कारण ग्रुप की ट्यूबलाइट कही जाने वाली लड़की रीमा अब भी नीतू की बात का विश्लेषण करते हुए बोली - "पर नीतू तुम खुद भी तो कितना मुफ्त का खाती हो! तो दूसरो से शिकायत क्यों?"

सरिता - "लो बहनजी ने सिग्नल लेट तो पकड़ा ही आज गलत भी पकड़ा। तेरा बॉयफ्रेंड निगल लिया क्या नीतू ने फ्री में?"

रीमा ने सरिता को नज़रअंदाज़ करके नीतू से कहा - "देखो नीतू मैं हमेशा तुम्हे किसी समूह की ओट लिये देखती हूँ, उनकी सामूहिक साख या उनके इतिहास का सहारा लिए देखती हूँ। जैसे "मुझे गढ़वाली होने पर गर्व है", "प्राउड टू बी ए गर्ल", "ब्राउन पीपल आर द बेस्ट", "पक्की ठाकुर लड़की हूँ" और भी बहुत कुछ। ऐसा अकेली तुम नहीं करती, ये आम आदत है लोगो में। यह सब क्या है? जिन बातों पर हमारा बस नहीं, केवल हमारे जन्म से हमसे जुड़ गयी...उनपर गर्व या शर्म करने का क्या मतलब? कुछ गिनाना है तो अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियाँ, प्रतिभा, मेहनत से मिली चीज़ें गिनाओ, ऐसे समूह की आड़ लेकर खुद को महान घोषित करना भी अव्वल दर्ज़े की मुफ्तखोरी है। 

कुछ देर के लिए बगले झांकती सहेलियाँ आज "ट्यूबलाइट" की चमक में फ़ीकी पड़ गयीं। 

समाप्त!

मोहित शर्मा (ज़हन)
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#FTC1516 Info-Announcements


Freelance Talents invites entries (stories / poems) for the Qualification round of Freelance Talents Championship 2015-16. Think you have what it takes to challenge world's top talent? Enter the Qualifiers of 3rd Annual International Freelance Talents Championship for your chance to win gift hampers, cash and get published in Freelance Talents Anthologies.

Rules:

1. One submission per individual, Submissions should consist of one short story or poem or extract from a longer work up to 1500 words in length.

2. Entries should be original works and should not have won previous awards or contests. Email your story/poem to: letsmohit@gmail.com

3. 5 Bonus Brownie points for top 10 Authors of FTC 2013 and FTC 2014.

4. Themes - Thriller, Romance

5. Languages - Hindi / English / Hinglish

6. Deadline - 17 September 2015 (11 PM)

*) - Thriller
Thriller fiction is a genre of fiction that uses suspense and tension to dramatically affect the reader. A thriller can provide surprise, anxiety, terror, anticipation, etc., in order to provide a rush of emotions and excitement that progress a story. It should generally be based around the strength of the villain and the protagonist, as well as their struggle against each other. This category might encompass several other genres, including horror, science fiction, and crime.

*) - Romance
Romance fiction can encompass and draw themes, ideas and premises from other genres and can vary widely in setting, dialogue, characters, etc. Generally, however, romance fiction should include a love story involving two individuals struggling to make their relationship work and an emotionally satisfying ending.

Best of Luck! 

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Freelance Talents
Digital artists, Pencillers and Painters looking to make a splash on the international stage (and win exciting gifts, cash) are invited to register for the Freelance Talents Championship 2015-16.

This year, competition format requires artists and authors to collaborate and create one page artwroks / paintings / pinups based on different round-wise themes given by FTC committee.

Please attach few samples artworks or include link(s) of your online art portfolio. E-mail us the following details: 1) - Name, 2) - Type of artist (Digital, Traditional), 3) - I can color my artworks. (YES / NO), 4) - Experience in years to letsmohit@gmail.com or freelancetalents@yahoo.com, Limited spots! Registration is on a first come, first served basis. Hurry!

Tuesday, September 8, 2015

Sunday, September 6, 2015

नशीले शेड्स - लेखक मोहित शर्मा (ज़हन)


"क्या हुआ चौबे साहब, कुछ चिंतित लग रहे है?" तहसीलदार ने शहर के दानी उद्योगपति श्री लोमेश चौबे से पूछा। 

चौबे जी ने गंभीर स्वर में कहा, "कुछ लोगो को शहर के रैनबसेरे, धार्मिक स्थलों आदि कहीं पर भी ठोर ठिकाना नहीं दिया जाता था उनके चाल-चलन की वजह से, ऐसे बेसहारा लोगो के लिए शहर में कुछ जगह शेड्स लगवाये थे।"

तहसीलदार उनके सामने अपने पॉइंट्स बनाते हुए बोला, "वाह! धर्मात्मा हो तो आपसा, जिनको सबने दुत्कार दिया उनके लिए आपने सोचा। वैसे कौन अभागे लोग हैं वो?"

लोमेश चौबे - "स्मैकिया-नशेड़ी-चरसी लोग, जो शेड्स लगवाये थे वहां लगे बाकी सामान के साथ बेच कर उन गधो ने उसका भी नशा कर लिया।"

 यह बात सुनकर सहमे खड़े तहसीलदार की हँसी नहीं छूटी बल्कि पूरा ठहाका निकल गया। जो पॉइंट्स उसने चौबे जी की तारीफ़ करके बनाये थे उनसे ज़्यादा कट कर उसका अकाउंट माइनस मे चला गया। इधर चौबे जी की ज़मीन पर खुले आकाश के नीचे नशेड़ी लोट लगा रहे थे, ऐसी लोट लोग अपने बाप के यहाँ भी नहीं लगाते। 

समाप्त!

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Friday, September 4, 2015

मुदित चोर नहीं है! - लेखक मोहित शर्मा (ज़हन)


"गलती आपकी है जो 150 की जगह 1500 का रिचार्ज कर दिया।" मन ही मन खुश होते मुदित ने दुकानदार से कहा। 

दुकानदार - "कभी-कबार जीरो की गलती हो जाती है, आँखें कमज़ोर हो गयी है। अभी सब देने को नहीं कह रहा बाद में जब इस्तेमाल कर लो तब दे देना, या धीरे-धीरे लौटा देना। अब बुढ़ापे में ऐसा तो...."

मुदित - "बूढ़े हो गए है तो घर पर बैठिये। मैंने डेढ़ सौ बोला था उतने ही दूंगा, बाकी आपने क्या देखा, किया उस से मुझे मतलब नहीं। इतनी चलती है आपकी शॉप, अभी दो-चार घंटो में सब वसूल हो जायेगा।" इतना कहकर वृद्ध दुकानदार की बातें अनसुनी करता हुआ मुदित वहाँ से निकल गया। उसने यह भी सोचा कि अब से वह इस जगह टॉपअप-रिचार्ज करवाने नहीं आएगा। 
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कुछ दिन बाद व्यथित मुदित फ़ोन पर एक डिश कंपनी के कॉलसेंटर कर्मी पर अपना गुस्सा निकाल रहा था। 

मुदित - "अरे ऐसे कैसे काट लिए 75 रुपये मेरे टीवी पैक से?"

कालसेंटर कर्मी - "सर एक महीने के लिए हमारा स्पेशल "महालोलू पैक" फ्री था तब आपने उसका सब्सक्रिप्शन लिया था। समय पूरा होने के बाद भी आपने पैक हटवाया नहीं इसलिए ऑटोमैटिक डिडक्ट हो गए पैसे।"

मुदित - "अच्छा मुझे मत पढ़ा बे! बस लोगो को लूटने के लिए ऑफर्स बना रखें है। हुँह! चोर है सब @#$&% "

समाप्त! 

- मोहित शर्मा (ज़हन)
#mohitness #mohit_trendster #laghukatha #message

Wednesday, September 2, 2015

जुग-जुग मरो बेटा! (कटाक्ष) - कवि मोहित शर्मा (ज़हन)


जून 2015 में एक बार फिर महाराष्ट्र में ज़हरीली शराब पीने के बाद कई लोग मारे गए और कई अन्य अंधे हो गए व कुछ की आंतें फट गयी। परिजनों के विरोध के बाद राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को 1 लाख रुपये देने की घोषणा की। पर जो अंधे हुए या जिसकी आँत फटी उनकी सहायता या पुनर्वास के लिए सरकार द्वारा कुछ नहीं किया गया। मृतकों के परिवारों से मेरी सहानुभूति है कि कुछ नियम, कानून और जागरूकता बढ़ा कर ये मौतें कम की जा सकती थी। इस विषय पर ये कटाक्ष काव्य। शब्द जानबूझ कर तीखें किये है, इनका बुरा मानें, इसको दिल पर ज़रूर लें - आवाज़ उठायें.....पर सही जगह!

जुग-जुग मरो बेटा!

रसमलाई क्या जलेबी भी लगे अब फीकी ,
जो शराब लखपति बनायें....  
वो ज़हर नहीं अमृत सरीखी। 

मलाल है क़ि पूरी क़ि पूरी क्रिकेट टीम को खड़ा क्यों ना किया,
फालतू में "हम दो, हमारे दो" स्लोगन को इतना seriously ले लिया। 
जबसे ट्रेजेडी का मुआवजा बँट गया,
तबसे साला हर शराबी चलती फिरती FD बन गया। 

अजीब देश है, शहीदो की विधवाएं पैसो के लिए कितनी दौड़ लगातीं है,
जबकि शराबियों के घर सरकार खुद चेक लेकर आती है। 

जब लोगो को लाख का चेक मिलते देखा,
चौल का हर बूढा आशीर्वाद देता फिरता - जुग-जुग मरो बेटा!
जनता में अचानक समाजसेवा की जगने लगी है इच्छा,
गोद लेना चाहते है लोग पियक्कड़ यतीम बच्चा। 

दहेज़ में कितना सामान मांग रहा है तेरा जीजा,
बिन आँखों के, फटी आँतों से Installment मे मत जी,
बाउजी कुछ पव्वे ब्लैक में लाएं है गटागट पीजा। 

किसी करमजले का पेट फटा,
तो कोई धरती का बोझ सूरदास बना, 
असली सपूत सिर्फ वो,
जो पिके सीधा शहीद हुआ!

- मोहित शर्मा (ज़हन)

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Friday, August 28, 2015

किस्मत से कुश्ती - लेखक मोहित शर्मा ज़हन

छोटे द्वीप समूहों से बने एक गरीब देश के आधा दर्जन खिलाडियों और दर्जन भर स्टाफ के दल में पदक की उम्मीद किसी खिलाडी से नहीं थी, ओलम्पिक में क्वालीफाई करना ही उनके सबके लिए बड़ी बात थी। उनमे एक महिला कुश्ती पहलवान जोएन का लक्ष्य था बेहतर से बेहतर करते हुए स्पर्धा में दूर तक जाना। उसके साथी देशवासी शुरुआती चरणो में ही बाहर हो गए और 4 राउंड्स जीत कर जोएन अपने भार वर्ग के सेमी फाइनल्स में पहुँच गयी। यहाँ उसका सामना पूर्व चैंपियन अमेरिकी पहलवान मार्था से था। मुक़ाबला तगड़ा और बराबरी का चला जिसमे मार्था ने बातों और चीप दावों से जोएन को विचलित करने की भरसक कोशिश की, मैच में बीच-बीच में अपनी संभावित हार देख रही परेशान मार्था की विवशता और गुस्सा साफ़ दिख रहे थे। अंततः परिणाम निर्णायक मंडल में मतभेद के साथ लगभग बराबरी का रहा जिसमे एक पॉइंट के मार्जिन से मार्था को विजय प्रदान की गयी।
जीत के नशे में चूर मार्था निराश जोएन का मज़ाक बनाती और अपशब्दों की बौछार करती निकल गयी। कांस्य पदक के मुकाबले से पहले केवल एक मैच के लिए जोएन को एक प्रायोजक मिल गया। पर 2 सपोर्ट स्टाफ सदस्यों को छोड़ कर देश के कैंप के बाकी लोग पहले ही स्वदेश लौट गए थे। सीमित साधनो और बदले कड़े माहौल में इतने दिन रहने के कारण जोएन की तबियत मैच से पहले बिगड़ गयी। पैसो के लालच में वह मैच में उतरी और तगड़ी प्रतिद्वंदी ने आसानी से उसे हरा दिया। इसके बाद मार्था ने इस वर्ग का स्वर्ण पदक अपने नाम किया।
कुछ वर्षो बाद कई अन्य उपलब्धियाँ बटोर चुकी मार्था का नाम विश्व के महानतम और अमीर एथलीट्स में लिया जाता है और जोएन ने अपने देश लौटकर प्रायोजक से मिले पैसों से वो फल-सब्ज़ी की दुकान खरीद ली जो वह पहले किराये पर लेकर चलाती थी। उस ओलम्पिक के बाद जोएन फिर कभी किसी कुश्ती प्रतियोगिता में नहीं दिखी।  
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Monday, August 24, 2015

मोहल्ले का (कु)तर्क गुम हो गया - मोहित शर्मा ज़हन

लघुकथा 
"माना राजनीती में कुछ ऊँच-नीच हो जाती है, पर नेता जी हमारे लिए तो अच्छे है। हम लोगो से तो व्यवहार अच्छा है, छोटे-मोटे काम करवा देते है मोहल्ले के और क्या चाहिए? अब समाज का ठेका थोड़े ही ले रखा है हम लोगो ने!"

ऐसे तर्क होते थे वर्धा ब्लॉक मोहल्ले वालो के जब उन्हें शहर और उसके आस-पास के गाँव-देहात में उनके मोहल्ले की भव्य महलनुमा कोठी मे निवास कर रहे नेता जी एवम उनके गुर्गो की गुंडई, मनमानी के किस्से सुनने को मिलते थे। एक दिन नेता जी द्वारा दर्जनो व्यापारियों से की गयी मारपीट, वसूली के बाद शहर के हज़ारो उपद्रवी व्यापारियों और ऐसा कोई मौका ढूँढ रहे नेता जी के विरोधियों  ने मोहल्ले पर धावा बोल, भीड़ का फायदा उठाकर वहाँ के स्थानीय निवासियों से मारपीट, कई गाड़ियों एवम संपत्ति में आगजनी करते हुए  नेता जी के घर पर धावा बोल दिया जिसमे उनके कुछ समर्थको, परिवार समेत बर्बर हत्या कर दी गयी। 

इस घटना में गंभीर रूप से घायल नेता जी के शुभचिंतक पडोसी सिंह साहब ठीक होने के बाद दिवंगत नेता जी के लिए कोई तर्क नहीं रखते। उनके दिमाग के उस हिस्से पर गहरी चोट आई जो तर्क समझता और प्रेषित करता है, इस कारण अब वो किसी भी तरह का तर्क नहीं रख पाते....बाकी मोहल्ले वालो के सर में चोटें नहीं आयीं....पर वो भी अब तर्कों को दूर से नमस्ते करते है!

- मोहित शर्मा ज़हन

Wednesday, August 19, 2015

मोहित ट्रेंडी बाबा - "अब पछताय क्या होत है जब...ऊपर वाले की बेआवाज़ लाठी पड़ी"

मैंने लोगो को मलाल करते देखा है कि वो किन्ही कारणवश औरों के सामने अपना पक्ष ठीक से नहीं रख पाये, या अपनी बात नहीं समझा पाये और सामने वाला अपनी गलत सोच, बात, कुतर्क, उदाहरण आदि पर खुश होते हुए, यह सोचता हुआ आगे निकल गया कि वह सही था  और उसे समझाने वाले या उसके विरोध में खड़े लोग गलत। अगर ऐसा कुछ दफ़े हो जाये तो अपने अभिमान में लोग यह तक मान बैठते है कि वो हमेशा सही होते है जिस कारण अक्सर वो विषय को पूरा समझना ही नहीं चाहते। ऑनलाइन जगत का जैसे-जैसे प्रभाव मानवीय जीवन पर बढ़ा है उसमे ऐसी बातें रोज़मर्रा की सी हो गयी है। बात यहाँ ख़त्म नहीं होती, वह व्यक्ति जो किसी विषय/विषयों पर अपनी सोच अनेक वर्षो से सही मानता और अमल में लाता आ रहा है उसको अगर कोई समझा नहीं पाता, या वह किसी की नहीं सुनता तो भी उसे समय द्वारा गहरा सबक मिलता है। अगर बात बड़ी है जिस से उसका लाभ या मतलब जुड़ा है तो सबक और बुरी चोट करके जाता है। 

जैसे मेरे एक रिश्तेदार को लगता था कि संयुक्त परिवार में स्वर्ग है बिलकुल हम साथ-साथ है, हम आपके है कौन वाली छवि, साथ ही आजकल कि न्युक्लीअर फैमिलीज़ (एकल परिवार) कलियुग! लोगो ने समझाया कि जल्दबाज़ी ना करें थोड़ा और देख-समझ कर रिश्ता करें पर आँखें चकाचौंध तो लगी रही गौंद, और जल्दबाज़ी में उनकी लड़की का रिश्ता एक संयुक्त परिवार में हुआ। अब उस परिवार में भाइयों-उनकी पत्नियों और माता-पिता में छोटी-छोटी बातों में क्लेश, पैसो-संपत्ति पर विवाद, घर की मरम्मत से लेकर राशन की खरीद तक कोई पैसे नहीं खर्चना चाहता क्योकि वो तो "पब्लिक प्रॉपर्टी" हो जायेगी जो सब इस्तेमाल करेंगे। जिस स्तर पर उनकी पुत्री उनके साथ रह रही थी वह अब उस से काफी दयनीय हालत में किसी तरह समझौता करके रह रही है। इस दौर में सपनो के (या टेलीविजन, फिल्मो वाले) संयुक्त परिवार तब होते है जब आपकी आय और संपत्ति अच्छी-खासी हो ताकि ऐसी छोटी बातों पर रोज़ की झिक-झिक ना हो इसका मतलब यह नहीं कि बाकी संयुक्त परिवार सब बेकार और एकल परिवार बेहतर, यहाँ तात्पर्य यह है कि एक बँधे दायरे कि सोच में बड़े फैसले ना लें। चाहे मेरे रिश्तेदार अपने अहं के चलते खुद को अब भी सही कहें पर अंदर ही अंदर वो सच जानते है, उन्हें गहरी चोट के साथ सबक  मिला जो अब उनके किसी काम का नहीं। 

यह सिर्फ एक उदाहरण था जीवन में ऐसे छोटे-बड़े सबक लोगो को मिलते रहते है, कोशिश यह रहनी चाहिए कि हम ऐसी सीख मिलने से पहले संभल जाएँ। किसी के हित में उसे समझाने कि कोशिश करें अगर वह अड़ा रहे तो वक़्त और ईश्वर पर छोड़ दें और बाद में उसे चिढ़ाएं... :p :) (kidding)

- मोहित ट्रेंडी बाबा 

Monday, August 17, 2015

महत्वपूर्ण मैत्री - मोहित ट्रेंडस्टर


अपनी आँखों से थोड़ा दूर अपनी हथेली ऐसे लाएं की वो आपकी दृष्टि का बड़ा हिस्सा बाधित कर दे, कुछ क्षणों में आप पायेंगे कि आपकी आँखों ने उस बाधा के होते हुए भी आस-पास और आगे देखने की आदत बना ली है। जीवन में मित्रता का महत्व हम देखते-सुनते ही रहते है पर कुछ बातें इतनी प्रत्यक्ष होती है हमारे सामने कि व्यस्त दिनचर्या के चलते उनकी भूमिका हम सभी अनदेखी कर दिया करते है। संगती के प्रभाव पर यह तक कहा गया है कि मनुष्य का व्यक्तित्व मुख्यतः अपने करीबी 5-7 लोगो का मिश्रण होता है जिनके साथ वह सबसे अधिक समय व्यतीत करता है। ऑनलाइन मैत्री ने ऐसी परिभाषाओं और समीकरणों को बदला ज़रूर है पर बात की महत्ता अब भी कम नहीं हुयी है। हाँ, अब उन करीबी लोगो में यांत्रिक उपकरण और उनकी दुनिया भी शामिल हो गयी है। 

मानव अपने पूर्वज बंदर कि भांति किसी की सीधी नक़ल तो नहीं करता पर अवचेतन मस्तिष्क में किसको देखा, किस से सीखा, क्या अनुभव हुए की खिचड़ी बन जाती है और हम अनजाने में अपने मित्रों, परिवार जन और सहकर्मियों के अच्छे-बुरे गुण, हाव-भाव, बोली पकड़ते चलते है जिससे अपने व्यक्तित्व में कई बदलाव आते है। एक बड़ा और करीबी दोस्तों का दल अत्यंत आवश्यक है बच्चो एवम किशोरों के लिए, क्योकि बड़े दल की विविधता हर तरह से एक बच्चे का दायरा बढ़ाती है और जीवन को देखने के नज़रिये में संतुलन प्रदान करती है। मैंने अपने स्कूल, कॉलेज, लेखन तथा कार्यक्षेत्र के मित्रों से अनेको बातें, सबक सीखें है। किसी की दशमलव प्रतिशत में किसी की दहाई प्रतिशत में मेरे जीवन पर पड़ी छाप अब मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा है। अलग-अलग कारकों से किन्ही दो व्यक्तियों के जीवन पर उनके निकट दोस्तों का असर समान नहीं होता पर यह निश्चित है की ऑनलाइन या आमने-सामने आपकी दिनचर्या में अच्छे मित्र आपके जीवन पर बड़ा सकारात्मक प्रभाव छोड़ेंगे और बुरे मित्रों से कई अनचाही बातें आपको तब तक घेरें रहेंगी जब तक आप उनके साथ रहने के आदि होकर जीवन में कई समझौते नहीं कर लेते। "अच्छे" से मतलब आपके लक्ष्य, जीवन की दिशा में प्रेरणा देने वाले। अगर आप टाइप ए या टाइप बी केटेगरी में फसें हों तो सही मित्र आपको दोनों पर्सनालिटी वर्गीकरण का बढ़िया मिश्रण प्रदान कर सकता/सकते है। यहाँ यह भी विचारणीय है कि आप कितने लोगो के जीवन को प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से किन दिशाओं में प्रभावित कर रहे है, कितने लोग आपको अपना अच्छा मित्र मानते है। यहाँ परोक्ष अधिक महत्व लिए है क्योकि कम समय में आपको अपने जीवन पर ध्यान देना है इसलिए कइयों के करीबी होने में आपका समय बहुत व्यय होगा। 

- मोहित शर्मा (ज़हन) #mohitness #mohit_trendster #trendybaba #freelance_talents

Friday, August 14, 2015

Aazadi Poetry - #‎मोहित_ज़हन‬

बिना शिकन वो पूछ रहे "देश बर्बाद है! किस बात की आज़ादी? कैसी आज़ादी?"
कि कॉन्फिडेंस से पूरी क्रिकेट टीम पैदा कर लो.... 
कि सालों-दशको-सदियों पुराने "बदलो" के हिसाब में लड़-मरलो.... 
कि कुतिया में परिवर्तित होकर औरों का हक़ मारने में उसेन बोल्ट का रिकॉर्ड हरलो... 
और ज़िम्मेदारी निभाने में 'पहले आप - पहले आप' करलो...

कि न्यूज़ रिपोर्ट्स से देश को कोसते हुए AC में दूध ठंडा करलो....
अपने गिरेबां में झाँको तो पाओगे तुम हिन्द नहीं सोमालिया डिज़र्व करते हो सालो!

और अजब है अपना भारत भी...
जो इतने कमीनों के होते हुए भी 200 मुल्कों में डेढ़ सौ से बेहतर है अपनी "आज़ादी"
अनगिनत पाप की आज़ादी, आस्तीन के सांप की आज़ादी! 
जय हिन्द! First deserve, then desire...

P.S. Artwork from latest Kavya Comic "Desh Maange Mujhe"
— celebrating Indian Independence

Sunday, August 2, 2015

Saturday, July 18, 2015

क्रॉस कनेक्शन (लघुकथा) - मोहित शर्मा ज़हन


बगल के घर से आती आवाज़ों को सुन सुमेर सोच रहा था कि लोगो को उसके पडोसी मनसुख लाल की तरह नहीं होना चाहिए जो अपने परिवार की खातिर और कानून के डर से अपनी हिंसक बीवी सुशीला के हाथो पिटता रहे और कानो मे काँच सा घोलते तानो को ताउम्र सहता चला जाये। इधर शाम को आसमान को एकटक निहारते अपने पडोसी को देख कर मनसुख लाल सोचने लगा कि लोगो को सुमेर कुमार जैसा नहीं होना चाहिए जो पत्नी राधा के 2-4 तानो को अपनी मर्दानगी पर ले उसे दोमंज़िल से नीचे फ़ेंक दें और फिर हादसे का बहाना बना कर जीवन भर कोमा में पड़ी बीवी का बिल भरता रहे, ससुराल वालो से केस लड़ता रहे। तीसरे-चौथे पडोसी आपस में बातें कर रहे थे कि सुमेर की शादी सुशीला से होनी चाहिए थी और मनसुख का बंधन राधा से बंधना चाहिए था, तब कम से कम एक जोड़ा सुखी रहता और सुमेर -सुशीला के भी दिमाग ठिकाने रहते। 

समाप्त!

टिप्पणी - जीवन में संतुलन हमेशा पूरा व्यक्तित्व बदल कर नहीं बल्कि अक्सर व्यक्ति में कुछ गुण, व्यवहार बदल कर भी लाया जा सकता है। 

- मोहित शर्मा (ज़हन) 
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Thursday, July 9, 2015

Comics Theory Anthology Contest

मेरा सौभाग्य है कि अनुसंधानकर्ता, कलाकार-लेखक श्री शंभूनाथ महतो के "कॉमिक्स थ्योरी" संकलन प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में मुझे श्री अनुराग सिंह के साथ शामिल किया गया है। अधिक जानकारी के लिए Comics Theory पेज, ब्लॉग विजिट करें।